माघ के उतरति म अऊ बेरा के बूडती म,
मेघा काबर छाय हे ये बसंत बर काबर मंतियायें हे ।
लूहूर तूहूर अपन बिदाई म आसू बहावत हे,
सुरूर सुरूर पुरवाही ओखर साथ निभावत हे ।
अभी बरफ ह बरोबर टघले नईये,
ओला ये फेर काबर जमाय है ।
अभी अभी लइका के दाई सेटर ल संदूक म धरे हे,
तेला ये बादर रोगहा फेर निलकलवाये बर परे हे ।
ओनाहारी अभीच्चे फूल धरे हे तेंला ये काबर झर्राय हे ।
सुघ्घर सपना देखत किसान ल हिलोर के काबर जगायें है।
सावन भादों जब ऐखर जरूरत रहिस त अब्बड़ तरसाये हे ।
आज चनामन के माते हे फूल तेन ल झर्रायेबर आये हे ।
जइसे गांव के गौटिया काम म पइसा नई देवय,
अऊ अपन काम बर फोकट म दारू पियाये हे ।
ये बादर काम बर ठेंगा देखायें हे,
अऊ आज फोकट के बरसाय हे ।
...................‘‘रमेश‘‘.........................
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