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जून, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कतका झन देखे हें-

छत्तीसगढ़ी हाइकु

अरे पगली, मै होगेव पगला, तोर मया म । तोर सुरता, निंद भूख हरागे, मया म तोर । रात के चंदा, चांदनी ल देखव, एकटक रे । कब होही रे, मया संग मिलाप , गुनत हव । मया नई हे, गोरी के अंतस म, सुर्रत हव । एक नजर, देख तो मोरो कोती, मया के संगी । ....‘रमेश‘...

मिलईया हे मोला पगार

गुतुर गुतुर भाखा बोलय, अंतस म मधुरस घोलय, मोर सुवारी करे सिंगार, मिलईया हे मोला पगार । कईसे लगहूं जी कहू होही, कान म खिनवा, कनिहा म करधनिया, अऊ गर म होही सोनहा हार, मिलईया हे मोला पगार । फलनिया ह बनवाय हे, मोरो मन ललचाय हे, पूरा कर दौ ना जी मोरो साध, होही तुहार बड़ उपकार, मिलईया हे मोला पगार । ददा गो कापी पेन सिरागे हे, स्कूल के फिस ह आगे हे, लइकामन करत हे पुकार, मिलईया हे मोला पगार । मोर स्कूल बस्ता ह चिरागे हे, पेंट कुरता ह जुन्नागे हे, लइकामन करत हे मनुहार, मिलईया हे मोला पगार । रंधनही कुरीया ह चिल्लावत हे, घेरी घेरी चेतावत हे, सिरागे हे चाऊर दार, मिलईया हे मोला पगार । पाछू महिना बड़ सधायेंव, अपन बर मोटर साइकिल ले आयेंव, दुवारी म खड़े हे लगवार, मिलईया हे मोला पगार । का करव कइसे करव कहिके गुनत हव, अपने माथा ल अपने हाथ म धुनत हव, काबर एतके तनखा देते सरकार, मिलईया हे मोला पगार । .......‘‘रमेश‘‘...........

अब कहां लुकागे

मया प्रित के बोली, तोर हसी अऊ ठिठोली, अब कहां लुकागे......... तोला देखे के बड़ साध, ओधा बेधा ले रहंव मै ताक, ओ तकई, अब कहां लुकागे .......... कनेखी आंखी ले तोर देखई, संग म सुघ्घर तोर मुच मुचई, ओ मुच मुचई, अब कहां लुकागे ........ ओ छुप छुप के मिलई मया मा  खिलखिलई, ओ खिलखिलई अब कहां लुकागे......... तोर संग जीना अऊ संग मरना, तोर संग रेंगना अऊ संग घुमना, ओ घुमई , अब कहां लुकागे............ तोर रूठना मोर मनाना ओ मनई अब कहां लुकागे......... बिहाव करे हन के पाप का ये होगे हे अभिषाप, हाय रे रात दिन के कमई  ओ दिन अब कहां लुकागे....... लइका मन गे हे बाढ़, चिंता मुड़ी म गे हे माढ लइकामन संग खेलई, अब कहां लुकागे.................. लइका मन ल पढ़ाना हे लिखाना हे, जिनगी ल जिये बेर कुछु बनाना हे, हमर बनई, अब कहां लुकागे ............... जिये बर जियत हन, मया घला करत हन चिंता म चिचीयावत हन, अपन गीत कहां गावत हन, हमर मया प्रित के गीत, ओ गुनगुनई, अब कहां लुकागे.......

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