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जुलाई, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कतका झन देखे हें-

मोरो मन हरियर

तोर मया के छांवे म, गोरी मोरो मन हे हरियर । चंदा कस तोर बरन, देख मोरो मन हे हरियर ।। करिया हिरा कस चुन्दी, पाटी पारे लगाये फुन्दी, तोर खोपा के बगिया म, भवरा कस मन हे हरियर । तरिया म फूले कमल, ओइसने हे तोर नयन, देख कमल सरोवर ल, गावय मोर मन ये हरियर । ओट तोर गुलाब के पंखुडी, करत हे महक झड़ी, ये गुलागी महक म, झुमय मोरो मन हरियर । माथे के टिकली, टिमटिमात हे मोर अंतस भितरी, ऐखर ऐ अंजोर म, दमकत हे मोर मन हरियर । कभू कान म झुमका, कभू येमा डोलय बाली, विश्मामित्र के मेनका कस, डोलावय मोरो मन हरियर । कनिहा के करधनिया, अऊ गोडे के पैयजनिया, बोलय छुम छुम छनानना, नाचय गावय मोर मन हरियर । कोयल कस गुतुर बोली, अऊ गुतुर गुतुर तोर ठिठोली, बोली अऊ ठिठोली के, समुदर म गोता खावय मोर मन हरियर । तै कही सकथस मोला कुछु कुछु, तै तो मोरे सबे कुछु, तोर बिना नई जानव काहीं कुछु मोर मन हरियर । ..........‘‘रमेश‘‘.........................

सपना म तैं

देखत हव, कब ले गोरी तोला, आंखी पिरागे । काबर कहे, आवत हव मै ह, ले मुरझागे । हाथ के फूल, संजोय रहेव मै, बिहनीया के । होगे रे सांझ, मन मीत आबे रे, सपना म तैं । ..‘‘रमेश‘‘....

अब का देखव

मोर मन ल इही ह भाये हे कोनो परी ल अब का देखव । ओखर सिरत ले मन गदगदाये हे सुरत ल अब का देखव ।। जब ले जाने हव ओला अपन सुरता कहां हे मोला .. मोर अंतस म होही समाय हे मुहाटी ल अब का देखव ।। जइसे मोर छांव मोर संग रेंगथे सुटुर सुटुर......... मोर मन करथे धुकुर धुकुर ओखर मन ल अब का देखव ।। चंदा के संगे संग चांदनी चंदा ल देखे चकोर.... पतंगा के दिया संग जरई अपन जरई ल अब का देखव ।। मोर मया ओखर बर ओखर मया मोर बर. मया घुर गे जस शक्कर म पानी अपन पानी ल अब का देखव ।। ............‘‘रमेश‘‘.......................

मीठ -मीठ सुरता

ये मीठ -मीठ सुरता, नई बनतये कुछु कहासी रे । कभू कभू आथे मोला हासी, कभू आथे रोवासी रे ।। दाई के कोरा, गोरस पियेव अचरा के ओरा । कइसन  अब मोला आवत हे खिलखिलासी रे ।। दाई  के मया, पाये पाये खेलाय खवाय । अपन हाथ ले बोरे अऊ बासी रे ।। दाई ल छोड़के, नई भाइस मोला कहूं जवासी रे । लगत रहिस येही मथुरा अऊ येही काषी रे ।। ददा के अंगरी, धर के रेंगेंव जस ठेंगड़ी । गिरत अपटत देख ददा के छुटे हासी रे ।। ददा कभू बनय घोड़ा-घोड़ी , कभू करय हसी ठिठोली । कभू कभू संग म खेलय भौरा बाटी रे ।। कभू कभू ददा खिसयावय कभू दाई देवय गारी रे । करेव गलती अब सुरता म आथे रोवासी रे ।। निगोटिया संगी, संग चलय जस पवन सतरंगी । पानी संग पानी बन खेलेन माटी संग माटी रे ।। आनी बानी के खेल खेलेन कभू बने बने त कभू कभू झगरेन । कभू बोलन कभू कभू अनबोलना रह करेन ठिठोली रे ।। ओ लइकापन के सुरता अब तो मोला आथे मिठ मिठ हासी रे । गय जमाना लउटय नही सोच के आवत हे रोवासी रे ।। .-रमेशकुमार सिंह चैहान

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