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मई, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कतका झन देखे हें-

हम

हमरो खुशी अब नइये कोखरो ले कम । अपने हाथ म अपने भाग संवारत हन हम ।। काही बात के कमी नईये मेहनत घला नईये कम, पथरा म पानी ओगरत जंगल घला संवारत हन हम । खेती के रकबा भले पहिली ले होगे हे कम, फेर आगू ले ज्यादा फसल उगावत हन हम ।। पढ़ईयांमन के कमी नइये गुरूजीमन घला नईये कम, हाथ ले हाथ जोरीके षिक्षा के दिया जलावत हन हम । करिया अक्षर भईस बरोबर कहइय अब होगे हे कम, आखर आखर जोड़ के पोथी पतरा बनावत हन हम ।।  षहर बर सड़क के कमी नइये गांव बर रद्दा नईये कम, गांव ल घला शहर संग जोर के शहर बनावत हन हम । जंगल पहाड़ के रहईयामन के जिनगी म खुशी कहां हे कम, जंगल-झांड़ी पहाड़-खाई सबो मिलके गीत गांवत हन हम ।। हमर विकास म कमी नईये फेर जलनहा मन कहां हे कम, चारो कोती नक्सवाद के आगी तेमा जर भुंजावत हन हम । ऊखर मेर बंदूक गोली के कमी नईये बारूद घला नईये कम, जेनेला पावत हे मार गिरावत हे आंसू बहावत हन हम ।। ऊखर पाप मा कमी नइये पापीमन नई होवत हे कम, अपन ल हमर हितैशी बतावय अऊ बहकत हन हम । ताने बंदूक नगरा नाचत ये आतंक ह नई होवय कम, जब तक जुर मिलके दृढ़ इच्छा षक्ति नई जगाबो हम ।।

काबर हे

काबर हे मोर हरियर भुईया के रंग, लाल होवत काबर हे । मोर सोनचिरईयां कस ये धरती, रोवत काबर हे ।। हमर मन के विकास इखर आंखी म गड़त काबर हे । जब पाथे तब ऐमन लाल सलाम देवत काबर हे । का इखर तरक्की के सोच हमर ले आगर हे । त तरक्की के रद्दा छोड बंदूक धरे काबर हे । जंगल के संगी निच्चट भोला-भाला शांति के सागर हे । तेखरमन के मन म अशांति के बीजा बोवत काबर हे । जंगली के पक्का हितैशी अपन ल देखावत काबर हे । बंदूक के छांव म घिरार घिरार के जियावत काबर हे । लोकतंत्र के देश म अपन तानाशाही चलावत काबर हे । लोकतंत्र के रखवार ल मौत के घाट उतारत काबर हे । हिम्मत हे त आगू म आके हाथ दू चार करय, ओधा बेधा पाछू ले झगरा ल चलावत काबर हे । भोला भाला जनता, लाचार करमचारी जवान नेता, कोखरो होय बलिदान अबतक बेकार होवत काबर हे । जब कंधा ले कंधा मिलाके के हमला चलना हे, त हमार ये नेता मन अपनेच म लड़त काबर हे । अइसन अत्याचारी मन ल कोनो मन भोभरावत काबर हे । हमर देश के सरकार अपन इच्छाशक्ति ल लुकावत काबर हे । मोर धान के कटोरा म ऐमन खून भरत काबर हे । मोर भुईंया के मनखे मन बेखबर  सोवत काबर हे ।

सांझ

.बेरा ऐती न  ओती बेरा बुडत रहीस, करिया रंग बादर ले सुघ्घर उतरत रहिस, वो सांझ, सुघ्घर परी असन, धीरे धीरे धीरे............... बुड़ती म, फेर कोनो मेर नईये चंचलता के आभास, ओखर दुनो होट ले टपकत हे मधुरस, फेर कतका हे गंभीर .... न हसी न ठिठोली, हंसत  हे त एकेठन तारा, करीया करीया चूंददी म , संझारानी के मांग संवारत। ..........रमेश........

आसो के घाम

आगी के अंगरा कस दहकत हे आसो के घाम, अब ए जीवरा ल, अब ए जीवरा ल कहां-कहां लुकान । झुलसत हे तन, अऊ तड़पत हे मन, बिजली खेलय आंख मिचोली अब कइसे करी जतन । बिन पानी के मछरी कस तड़पत हे बदन, पेट के खतीर कुछु न कुछु करे ल पड़ते काम ।। आगी के अंगरा कस ...... धरती के जम्मो पानी अटावत हे, जम्मो रूख राई के पाना ह लेसावत हे । लहक लहक लहकत हे गाय गरूवां अऊ कुकुर, चिरई चिरगुन बईठे अब कउन ठांव ।। आगी के अंगरा कस ........ अब तो महंगाई सुरसा कस मुंह ल बढ़ावत हे, ये महंगाई अइसन घाम ले घला जादा जनावत है। घिरर घिरर के खिचत हन ये जिनगी के गाड़ी, अब कहां मिलय हमन शांति सुकुन के छांव ।। आगी के अंगरा कस ........ ................रमेश..............................

जय हो दारू

  ऐती ओती चारो कोती एकेच जयकारा हे । जय हो दारू, जय हो दारू, जय हो दारू।। कोनो कहय ये नवा जमाना के चलन हे, त कोनो कोनो कहय ये काम हे शैतानी । आज के मनखे तोर संग करे हे मितानी , लइका सीयान या होय जवान सबो हे तोर मयारू ।। जय हो दारू, जय हो दारू, जय हो दारू दूघ गली गली बेचाये हे, तभो ऐला कहां कोनो भाये हे । तोला पाये बर मनखे अपन थारी लोटा ल मड़ाय हे, ऐखरी सेती करम ल ठठाय हे, घर के मेहरारू ।। जय हो दारू, जय हो दारू, जय हो दारू तोर ठौर ल मिले हे मंदिर के सानी, गीरा गंभीर हे तोर भगत मन के कहानी । तोर भगत सुत उठ के तोरे दरस ल पाथे, बिहनिया, मझनिया,अऊ संझा तीनों बेर हाजरी लगाथे । तभो ले तोर भक्तन मन तोला पाय बर अऊ अऊ ललचाथे, तोर भगत मन के भगती ह हवय चारू-चारू ।। जय हो दारू, जय हो दारू, जय हो दारू कोनो कोनो भगतन अपन घर-कुरीया घला चढ़ाये हे, कोनो कोनो दुरपती कस अपन बाई ल दाव म लगाये हे । लइका बच्चा के घला ओला चिंता कहां सताये हे, तभे तो जम्मा घर के जिनीस वो ह बेच खाये हे । अब तो वो तोर दुवारी म लगावत हे झाडू ।। जय हो दारू, जय हो दारू, जय हो दारू तोर भगती म कुछ भगतन एइ

कोशिश करईया मन के कभु हार नई होवय

                       कोशिश करईया मन के कभु हार नई होवय (श्री हरिवंशराय बच्चन की अमर कृति ‘‘कोशिश करने वालो की हार नही होती‘‘ का अनुवाद) लहरा ले डरराये  म डोंगा पार नई होवय, कोशिश करईया मन के कभु हार नई होवय । नान्हे नान्हे चिटीमन जब दाना लेके चलते, एक बार ल कोन कहिस घेरी घेरी गिरते तभो सम्हलते । मन चंगा त कठौती म गंगा, मन के जिते जित हे मन के हारे हार, मन कहू हरियर हे तौ का गिरना अऊ का चढना कोन करथे परवाह । कइसनो होय ओखर मेहनत बेकार नई होवय, कोशिश करईया मन के कभु हार नई होवय । डुबकी समुददर म  गोताखोर ह लगाथे, फेर फेर डुबथे फेर फेर खोजथ खालीच हाथ आथे । अतका सहज कहां हे मोती खोजना  गहरा पानी म, बढथे तभो ले उत्साह ह दुगुना दुगुना ऐही हरानी म । मुठठी हरबार ओखर खाली नई होवय, कोशिश करईया मन के कभु हार नई होवय । नकामी घला एक चुनौती हे ऐला तै मान, का कमी रहिगे, का गलती होगे तेनला तै जान । जब तक न होबो सफल आराम हराम हे, संघर्ष ले झन भागव ऐही चारो धाम हे । कुछु करे बिना कभू जय जयकार नई होवय, कोशिश करईया मन के कभु हार नई होवय । .................‘‘रमेश‘‘.............

आसो के होरी म

                         आसो के होरी म         आसो के होरी म, मोरो मन  हे हरियर ।     मोरो  मन के, प्रित के रंग  हे गोरियर ।     गोरी के गाले ल, आज करिहव पिरीयर ।     मया प्रित के, गोठ हेरिहव आज फरियर ।     तै मोर राधा गोई, मै तोर श्याम करियर ।     तही मोर करेजा गोई, मै तोर धड़कन बर ।     तोर बीना जोही मोर, जिनगी हवय करियर ।     मया के होरी म, बन जई गोरी जावरजियर ।     ...................‘‘रमेश‘‘.........................

-ःःमेघा काबर छाय हेःः-

    माघ के उतरति म अऊ बेरा के बूडती म,     मेघा काबर छाय हे ये बसंत बर काबर मंतियायें  हे ।     लूहूर तूहूर अपन बिदाई म आसू  बहावत हे,     सुरूर सुरूर पुरवाही ओखर साथ निभावत हे ।     अभी बरफ ह बरोबर टघले नईये,     ओला ये फेर काबर जमाय है ।     अभी अभी लइका के दाई सेटर ल संदूक म धरे हे,     तेला ये बादर रोगहा फेर निलकलवाये बर परे हे ।     ओनाहारी अभीच्चे फूल धरे हे तेंला ये काबर झर्राय हे ।     सुघ्घर सपना देखत किसान ल हिलोर के काबर जगायें है।         सावन भादों जब ऐखर जरूरत रहिस त अब्बड़ तरसाये हे ।     आज चनामन के माते हे फूल तेन ल झर्रायेबर आये हे ।     जइसे गांव के गौटिया काम म पइसा नई देवय,     अऊ अपन काम बर फोकट म दारू पियाये हे ।     ये बादर काम बर ठेंगा देखायें हे,     अऊ आज फोकट के बरसाय हे ।     ...................‘‘रमेश‘‘.........................

नान्हेपन म

नान्हेपन म ममादाई अब्बड किस्सा सुनावय, रात रात जाग के ओ ह हमला मनावय । कभु सुनावय किस्सा भोले बबा के नादानी, कभु सुनावय राजा रानी के सुघ्घर कहानी । कभु सुनावय कइसे ढेला पथरा निभाईन मितानी, कभु सुनावय भूत प्रेत अऊ राक्षस मन के शैतानी । ओखर हर किस्सा हमर आंखी म नवा चमक लावय, दाई ऊंघावत ऊंघावत हमला नवा किस्सा सुनावय । ओ जमाना म कहा टी.वी. अऊ सिनेमा के परदा, तब तो रहिस किस्सा अऊ नाचा पइखन के जादा दरजा । न चमक न दमक तभो अच्छा लगय हमर मन, आज चारो कोती के चमक दमक घलो उदास हे मोरो मन । .................‘‘रमेश‘‘.......................

//कोनो काही कहय //

कोनो प्रतिभा गुलाम नई होवय अमीरी के, रददा रोक नइ सकय कांटा गरीबी के । कोनो काही कहय चिखले म कमलदल ह खिलथे, अऊ हर तकलीफ ले जुझेच म सफलता ह मिलथे । हर खुशी कहां मिलथे अमीरी ले, कोनो खुशी कहां अटकथे गरीबी ले । कोनो काही कहय खुशी तो मनेच ले मिलथे, तभे तो मन चंगा त कठौति म गंगा कहिथे । सुरूज निकलथे दुनो बर, पुरवाही बहिथे दुनो बर । कोनो काही कहय बरसा घाम दुनो बर बरिसथे, जेखर जतका बर गागर ओतके पानी भरथे । अमीर सदा अमीर नई रहय गरीब सदा गरीबी नई सहय । कोनो काही कहय भाग करम के गुलाम रहिथे । सियान मन धन दोगानी ला हाथ के मइल कहिथे । सफल होय बर हिम्मत के दरकार हे, जेन सहय आंच तेन खाय पांच कहाय हे । कोनो काही कहय जांगर टोर जेन कमाथे, अपन मुठ्ठी म करम किस्मत ल पाथे । -रमेशकुमार सिंह चौहान

जइसन ल तइसन

               जइसन ल तइसनहम कहिथन कइसन, फेर लगते हे हमार सरकार ल नई भावय अइसन ।     कोनो हमर मुडी काटय,     अऊ हमन देखन कऊवां कुकुर असन,     भुकत हन ये तुहरे करे, ये तुहरे करे     फेर दुश्मन चलत हे हाथी असन । बहुत होगे अब चाबे नइ सकत त एक  बेर तो फुफकार, कही दे एक  बेर सौ सुनार के त एक  बेर लुहार ।     अभी कुछु नई कर सकेन त     हमार पिढी ला का सिखाबो,     दुश्मन काटे मुडी दु चार त     एक एक करके हमन मुडी ल दताबो । ................‘‘रमेश‘‘........................

बिचार

      1. कोनो काम छोटे बड़े नई होवय, जऊन काम म मन लगय ओही काम करव । बघवा कइसे छोटे बड़े शिकार म ध्यान लगाये हे, ऐमा जरूर विचार करव ।। 2. सिखे के कहू ललक होही, मनखे कोनो मेर ले रद्दा खोज लेही । भवरा जइसे फूल ऊपर होही, त मधु मधु मधुर परागेच ल पिही ।। 3. भगवान चंदन के फर फूर कहां बनाये हे, तभो चारो कोती खुशी बगराये हे । इही त्याग अऊ तपस्या ले, भगवान ऐला अपन माथे म चढ़ाय हे ।। 4. सज्जन पुरूष ओइसने होथे, जइसे होथे रूख । ठाड़हे च रहिथे चाहे बारीश होवय के धूप ।। दूसरेच बर फरथे अऊ फूलथे, चाहे जिनगी जावय सूख ।। 5. बगुला कइसे ध्यान लगाये हे, जम्मो इंद्रिल अपन काम म लाये हे । अइसने जऊन मनखे अपन काम म मन लगाये हे, जम्मो सुख ल पाये हे ।। 6. जेन करम के करे म  बडे ल नई दे सकय दोस ।   उही करम ल छोटे के करे म उतार देही रोस ।। 7. मुह ले निकले हर भाखा कोई न कोई बात होथे,   कोनो फूलवा के महक त कोनो दिल म  अघात होथे । 8. मोह जम्मो दुख के जर म हे, माया मन हे थांगा म ।   लालच म जेने  आये हे, तेने च ह फसे हे फांदा म ।। .............‘‘रमेश‘‘........................

विदेशी सिक्षा

 सिक्षा सिक्षा ये विदेशी सिक्षा से का होय ।  न कौढी के न काम के घुम घुम के बदनाम होय ।।  न ओला पुरखा के मान हे न देश धरम के ज्ञान ।  विदेसी सिक्षा लेवत हे अऊ विदेसी संस्कृति के अभिमान ।।  दाई-ददा मोर लईका पढथ हे कहिके नई कराव कुछु काम ।  नान्हेपन ले जांगर नई चलाय हे अब कोन जांगर ले होही काम ।।  पूजा-पाठ, कथा-भागवत सब ल देवत हे अंधविश्वास के नाम ।  लईका पढिस लिखिस  अऊ होगें कइसन ओ हर विदवान ।। पागे कहु नौकरी चाकरी त होगे परदेशिया नई आवय कुछु काम  न पाइंच कहु काम धाम त परबुधिया होके होवथ हे बदनाम ।। गांव-गांव अऊ गली-गली नेता अऊ ऊखर चम्मच के भरमार हे  जेन कहावय भाई-दादा जेखर करम ले ये देश शरमसार हे ।।  सिरतुन कहव चाहे कोनो गारी देवव के गल्ला ।  इंकरे आये ले होवत हे भ्रष्टाचार के अतका हल्ला ।। ................‘‘रमेश‘‘........................

मोर मईया के जगराता हे

आगे आगे नवरात्रि तिहार, सब मिल के करव जयजय कार । मंदिर मंदिर दाई करत हे बिहार, मोर मईया के जगराता हे । कोनो जलाव जोत मनौती, त कोनो करावय पूजा पाठ । कोनो गावय जसगीत मनोहर, त कोनो लेवय साट । भक्तन मन करत हे गोहार, मोर मईया के जगराता हे । कोनो हवय निर्जला उपास, त कोनो लेवय फरहार । कोनो साधय जतंर मंतर, त कोनो करय करिया करंजस । भक्तन मन के हवय नाना प्रकार, मोर मईया के जगराता हे । कोनो जावय माॅ के पहाडि़या, त कोनो बोवय घर म फुलवरिया । कोनो चढ़ाव धजा नरियर, त कोनो लावय फूल लाली पिरियर । कोनो चढ़ाव मईया ल सिंगार, मोर मईया के जगराता हे । कोनो मांगय धन दोगनी, त कोनो मांगय काम म बरकत महारानी । कोनो मांगय आद औलाद, भक्तन मन के हे नाना फरियाद । कोनो चाहय केवल भक्ति तुहार, मोर मईया के जगराता हे । ....................‘‘रमेश‘‘..........................

-ः मोर छत्तीसगढ के सुघ्घर गांव:ः-

जिहां चिरई-चिरगुन करे चांव-चांव, जिहां कऊंवा मन करें कांव-कांव । जिहां कोलिहा-कुकुर मन करे हांव-हांव, ऊंहें बस्ते मोर छत्तीसगढ के सुघ्घर गांव । गाय बछरू कुकरा कुकरी अऊ छेरी पठरू, घर घर नरियावय मिमीयावय कुकरू कू कुकरू । दूध दूहे बर बइठे पहटिया दोहनी धरे उघरू, गाय चाटय पूछी उठाय दूघ पियत हे बछरू । बारी बखरी म बंधय कोनो रूखवा के छांव, ऊंहें बस्ते मोर छत्तीसगढ के सुघ्घर गांव । बाबूमन खेलय बाटी ईब्बा, नोनी मन खेलय फुग्गडी, कोनो खेलय तास चैसर त कोनो करय चारी-चुगली । पनिहारिन म करय हंसी ठिठोली मुडी म बोहें गगरी , जिहां के घर संग भावय परछी अंगना म लहरावय तुलसी । जिहां तुलसी के कतका मान , जेखर कतका सुघ्घर छांव, ऊंहें बस्ते मोर छत्तीसगढ के सुघ्घर गांव । गोरसी धरे बईठे बबा नातीमन ल धरे बुढ़ही दाई, नागर जोते ल गे हे ददा कांदी लुये बर दाई । चैपाल म बईठे पंच पटइल अऊ गौटिया, संग म बईठे पंडित बाबू जेखर हे चुटिया । गौतरिहा मन बैईठे सुघ्धर आमा के छांव, ऊंहें बस्ते मोर छत्तीसगढ के सुघ्घर गांव । मया म गावय करमा ददरिया, लइका होंय  म गावय सोहर, बिहाव म गावय भडौनी गीत, संग छोडवनी

माटी मा

लईकापन म खूब खेलेंव अऊ सनायेंव माटी मा । पुतरा पुतरी अऊ घरघुंदिया बनायेंव धुर्रा माटी मा ।। डंडा पंचरंगा अऊ भवरा बाटी खेलयेंव माटी मा घोर घोर रानी अऊ छपक छपक खेलयेंव माटी मा । जवानी म जांगर टोर कमायेंव मिल के माटी मा । मुंधरहा ले संझा तक नांगर जोतेयेंव माटी मा ।। ईटा भिथिया अऊ खपरा बनायंव माटी मा ।। सुघ्घर सुघ्घर घर कुरीया संवारेंव माटी मा । संगी जहुरिया अऊ सगा नाता बनायेंव माटी मा । दुनियादारी निभऐंव, गुलछर्रा उडायेंव माटी मा ।। आगे बुढापा कांपत हाथ गोड माढ़त नईये माटी मा । खांसी खखांर ला लुकावत हंव अब मैं माटी मा ।। बुढ़ापा के मोर संगी नाती मन खेलत हे माटी मा। कोनो सगा संगी नईये आंखी गडांयेंव हंव माटी मा ।। फूलत हे सास जीये के नइये आस समाना हे माटी मा । उतार दव खटिया सोवा दव मोला अब माटी मा ।।

हे जगत जननी महामाई

हे जगत जननी महामाई, सदा रहव सहाई । मैं तोर नान्हे नादान लईका, अऊ तही मोर दाई । तोरेच किरपा म ये जिंनगी पाय हव । तोहीच ल अपन मन मंदिर म बसाय हव । श्रद्धा के फूल मईया तोला मै चढ़ाय हव । विश्वास के दिया मईया मै ह जलाय हव । तोरेच आशीषले ये दुनिया हे सुहाई । हे जगत जननी महामाई, सदा रहव सहाई । जब ले होश सम्हालेव तब ले तोला जानेव । जिनगी के जम्मो दुख ल तोरे चैखट म लानेव । तोर नाम के सिवाय पूजा पाठ मैं नई जानेव । चंचल मन अऊ चंचल तन ऐला कहा सम्हालेव ।  क्षमा करिहव मोर जम्मो अपराध बिसराई ।  हे जगत जननी महामाई, सदा रहव सहाई । हे जगत जननी महामाई, सदा रहव सहाई ।   ...............रमेश...............

बचपना तो बचपना ये

आज मोर लइका दिन  भर, विडियो गेम म बिपतियाय हे, पढत न लिखत देख ओला, मोरो दिमाग ह मंतियाय हे । गुस्सा म ओला का कहव, का नई कहव कहिके गुनत हंव, लइका के दाई हर लईका ले, देवत हे गारी तेला सुनत हंव। गुनत गुनत मोर दिमाक म, मोरे बचपना के धुंधरा छाय हे, अऊ लइका बने के साध ले,एक बार फेर मोरो मन हरियाय हे ।। संतोश मन संग बांटी खेलंव, नेतू मन संग ईब्बा , सब लईका मिल के खेलेन, छु-छुवाल छिप्पा । नरवा मा पूरा आये हे, तऊंरे बर रवि राकेष ह बुलाये हे, मोरो मन ह ललचाय हे, फेर मोरो दाई ह मंतियाय हे ।।        तऊडे के बड साध , ओधा बेधा ले मैं गेंव भाग , पडहेना आगे राकेश के हाथ, होगे आज के साग । कूद -कूद  के खेलई अऊ कूद कूद के तवरईय , संगी मन के मोर घर अऊ, मोर उखर घर जवईय । बचपना तो बचपना ये, खेलई म अऊ सुघराये हे ऐही सोच सोच अब मोरो मन बने हरियाये हे ।।     रूपेश गनपत मोर स्कूल के संगी     पढ़े म नई करेन हम एको तंगी     हमू खेल कूद के पढ़े हन     अपन जिंनगी ला गढ़े हन बेटा मानव मोरो कहना, खेलव कूदव खोर अंगना तन मन बने रहिहीं, फेर पढ़व घला संगे संग ना बात मान के मोरो लइका, पुस्तक मा

अब जमाना ह बदल गेहे बाबू ..........

सुरता आवत हे मोला एक बात के, बबा ह मोर ले कहे रहिस हे एक रात के । का मजा आवत रहिस हे आगू, अब जमाना ह बदल गेहे बाबू । अब कदर कहां हे दीन ईमान के, अब किमत कहां हे जुबान के । अब कहां छोटे बड़े के मान हे, ऐखर मान होत रहिस हे आगू ।। अब जमाना ह बदल गेहे बाबू .... कोनो ल कोनो घेपय नही, कोनो ल कोनो टोकय नही । जेखर मन म जइसे आत हे, ओइसने करत जात हे । माथा धर के मंय गुनत हंव अब का होही आगू ।। अब जमाना ह बदल गेहे बाबू ......... . नान्हेपन म होत रहिस हे बिहाव तेन कुरिती होगे, बाढे़ बाढ़े नोनी बाबू उडावत हे गुलछर्रा तेने रिति होगे । परिवार नियोजन के अब्बड़ अकन साधन, अब कुँवारी कुँवारा ल कइसे करके बांधन । मुॅह अब सफेद होवय न करिया, मुॅह करिया होत रहिस हे आगू ।। अब जमाना ह बदल गेहे बाबू ......... बलात्कारीमन ग्वालीन किरा कस सिगबिगावत हे, कोन जवान त कोन कोरा के लइका चिन्ह नई पावत हे । सरकार आनी बानी के कानून बनावते हे, तभो ऐमन एक्को नइ डर्रावत हे । संस्कार ले खसले म नई सुझय आगू पाछू ।। अब जमाना ह बदल गेहे बाबू .... कानून के डंडा ले संस्कार नई आवय, विदेशी संस्कृति ह नगर

आवत हे चुनाव...........

आवत हे चुनाव आवत हे चुनाव नेतामन अब आही हमर गांव । कऊवा कुकुरमन कस अब करही कांव-कांव ।। गांव-गांव अऊ गली-गली, उखर बेनर पोस्टर पटही, लिपे पोते हमर दीवार ह, उखर झूठा नारा ले पुतही । जस जादूगर बसुरी बजा के, मुंदथे हमर आंखी कान, आश्‍वासन के झुनझुना धराके, कइसे बनाथे गा ठांव ।। आवत हे चुनाव......... नवा नवा सपना सजा के कहय, करीहव तुहार काम, तुहीमन हमर दाई ददा अऊ तुहीमन  चारो धाम । तुहरे किरपा ले करत हव, तुहरे सेवा के काम, गुतुर गुतुर गोठ गोठियाही अऊ परही गा पांव ।। आवत हे चुनाव......... घर-घर जाही अऊ जइसे देवता तइसे मनाही, कइसनो करके ओमन हमन ल तो गा रिझाही । दाई माईमन बर बिछीया खिनवा, सुघ्घर लुगरा ददा भाईमन बर बाटय गा दारू पाव-पाव ।। आवत हे चुनाव......... साम-दाम, दण्ड भेद के जम्मो नियम ल अजमाही, जात-पात, धरम-करम क्षेत्रवाद के आगी लगाही । विकास के गोठ गोठिया के, आंखी म सपना सजाहीं, अऊ जुवारी कस लगाही अपन गा जम्मो दांव ।। आवत हे चुनाव......... जइसे बोहू तइसे पाहू तुहीमन तो अडबड कहिथव, फेर अइसन लबरा मनला, लालच मा काबर चुनथव । हमर गांव के चतुर सियान, लगावव थोकिन ध्य

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