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कतका झन देखे हें-

नवा साल

नवा साल के करव सब, परघौनी दिल खोल । नाचव कूदव बने तुम, बजा नगाड़ा ढोल ।। बजा नगाड़ा ढोल, खुशी के अइसन बेरा । पाछू झन तै देख, हवय आगू मा डेरा ।। ‘रमेश‘ गा ले गीत, खुशी के गढ़ ताल नवा । होही बड़ फुरमान, सबो ला ये साल नवा ।।

मोर सुवारी

मोर सुवारी के मया, घर परिवार बनाय । संगी पीरा के बनय, अर्धांगनी कहाय ।। अर्धांगनी कहाय, काम मा हाथ बटा के । घर के बूता संग, खेत मा घला कमा के ।। सास ससुर के मान, करय बन ओखर प्यारी । ‘रमेश‘ करथे मान, हवय धन धन मोर सुवारी ।।

पुसवा के जाड़

बिहनिया बिहनिया, सुत उठ के देख ले,  अपन तै चारो कोती, नवा नवा घाम मा । हरियर हरियर, धरती के लुगरा मा,  सीत जरी कस लागे, पुसवा ये धाम मा ।। निकाल मुॅंह ले धुॅवा, चोंगी के नकल करे,  चिढ़ावत हे बबा ला,  माखुर के नाम मा । भुरी तापत बइठे, चाय चुहकत बबा,  उठ उठ चिल्लावय,  चलव रेे काम मा  ।

बात मत कर जहर सने

बने चलत ये काम हा, तोला नई सुहाय । होके ओखर आदमी, काबर टांग अड़ाय ।। काबर टांग अड़ाय, बेसुरा राग तै छेड़े । गुजरे दिन के बात, फेर काबर तै हेरे ।। करना बहुते काम, बात मत कर जहर सने । हिन्दू मुस्लिम साथ, काल रहिहीं बने बने ।।

ताॅंका

ताॅंका 1.   घेरत हवे सुरूर सुरूर रे ऊपर नीचे बरसत हवे ना सीत अउ कुहरा । 2.   कमरा ओढ़े गोड़ हाथ लमाय गोरसी तीर मुह कान सेकय चाय पियत बबा । 3.   मुड़ गोड़ ले ओढ़े कथरी सुते मजा पावत काम बुता ला छोड़ बाढ़े बाढ़े छोकरा । -रमेश चौहान

जाड़ (बिना तुक के कविता)

सुत उठ के बिहनिया ले, बारी बखरी ला जब देखेंव, मुहझुंझूल कुहासा रहय चारो कोती परदा असन डारा-डारा, पाना-पाना मा चमकत रहय दग दग ले झक सफेद मोती कस ओस के बूंद करा बानी । हाथ गोठ कॅंपत रहय पहिली ले अपने अपन जेला तोपे रहंव सेटर के चोंगा मा साल ला ढाके रहंव मुडभर फेर कइसे के दांत बाजय हू हू मुह बोलय हाथ जोरे रगरत रहिगेंव । पानी मा लगे हे आगी कुहरे कुहरा भर दिखत हे तीर मा खड़े होय मा हाडा टघलय कोन बुतावय । उत्ती ले लाल लाल गोड़ के पुक असन आवत दिखीस एक ठन गोला कुनकुन कुनकुन बेरा के चढत छर छर ले बगरिस घाम जी जुड़ाइस ।   -रमेश चौहान

बाढ़े बहुते जाड़

कथरी कमरा ओढ ले, सेखी मत तो झाड़ । हाथ गोड़ कापत हवे, बाढ़े बहुते जाड़ ।। बाढ़े बहुते जाड़, पूस के सीत लहर मा । हू हू मनखे करय, रगड़ के हाथ कहर मा ।। नोनी बिना नहाय, दिखत हे कइसन झिथरी । बइठे आगी तीर, बबा ओढ़े हे कथरी ।

घासी दास के अमर संदेस

घासीदास जयंती के गाड़ा -गाड़ा बधाई .............................................. सतगुरू घासी दास के, हवय अमर संदेस । सत्य अहिंसा धैर्य ले, मेटव मन के क्लेस ।। मनखे मनखे एक हे, ईश्वर के सब पूत । ऊॅंच नीच मत मान तै, मत मान छुवा छूत ।। काम लगन ले सब करव, तन मन ले औजार । जीवन मा रख सादगी, करूणामय व्यवहार ।। -रमेश चौहान

आदमी मन डहत हवे

डहत हवे गा कंस कस, आतंकी करतूत । खुदा बने खुद आदमी, खुदा खड़े बन बूत ।। खुदा खड़े बन बूत, अंधरा अउ भैरा होके । आतंकी करतूत, भला अब कोन ह रोके ।। मनखे हो असहाय, जुलुम ला तो सहत हवे । मानवता ला छोड़, आदमी मन डहत हवे ।

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