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कतका झन देखे हें-

होथे कइसे संत हा (कुण्डलिया)

काला कहि अब संत रे, आसा गे सब  टूट । ढोंगी ढ़ोंगी साधु हे, धरम करम के लूट ।। धरम करम के लूट, लूट गे राम कबीरा । ढ़ोंगी मन के खेल, देख होवत हे पीरा ।। जानी कइसे संत, लगे अक्कल मा ताला । चाल ढाल हे एक, संत कहि अब हम काला ।। होथे कइसे संत हा, हमला कोन बताय । रूखवा डारा नाच के, संत ला जिबराय ।। संत ला जिबराय, फूल फर डारा लहसे । दीया के अंजोर, भेद खोलय गा बिहसे ।। कह ‘रमेष‘ समझाय, जेन सुख शांति ल बोथे । पर बर जिथे ग जेन, संत ओही हा होथे । -रमेश चौहान 099770695454

पढ़ई लिखई

पढ़ई लिखई सीख के, अपन बदल ले सोच । ज्ञान बाह भर समेट के, माथा कलगी खोच ।। माथा कलगी खोच, दया उपकार अहिंसा । तोर मोर ला छोड़, मया कर ले हरहिंछा ।। मया आय गा नेह, चलव ऐमा घर बनई । ऊंच नीच के भेद, मेटथे पढ़ई लिखई ।।

बिलवा (कुण्डलियां)

1. बिलवा तोरेे ये मया, होगे जी जंजाल । पढ़ई लिखई छूट गे, होगे बारा हाल ।। होगे बारा हाल, परीक्षा म फेल होके । जेल बने घर द्वार, ददा हा रद्दा रोके ।। पहरा चारो पहर, अंगना लागे डिलवा । कइसे होही मेल, संग तोरे रे बिलवा ।। 2. मना दुनो दाई ददा, करबो हमन बिहाव देखाबो दिल खोल के, अपन मया अउ भाव । अपन मया अउ भाव, कहव हम कइसे रहिबो । कहव मया ला देख, कहे तुहरे हम करबो।। सुन के हमरे बात, ददा दाई कहे ह ना। करबो तुहार बिहाव, करय कोनो न अब मना ।। -रमेश चौहान

आज देवउठनी हवय

छोटे देवारी देवउठनी एकादशी के अब्बड़ अब्बड़ बधाई आज देवउठनी हवय, चुहकबो कुसीयार । रतिहा छितका तापबो, जुर मिल के परिवार ।। लक्ष्मी ह कुसीयार बन, जोहे हे भगवान । कातिक महिना जाड़ के, छितका ले सम्मान ।। बिंदा तुलसी हे बने, बिष्णु ह सालिक राम । तुलसी बिहाव गांव मा, देखत छोड़े काम ।। उपास हे मनखे बहुत, ले श्रद्धा विश्वास । अंध विश्वास झन कहव, डाइटिंग ल उपास ।। हमर लोक संस्कृति हवय, हमरे गा पहिचान । ईश्वर ला हर बात मा, हम तो देथन मान ।।

काम हे तोर लफंगी

अपने तै परभाव, परख ले गा दुनिया मा । कहां कदर हे तोर, हवय का घर कुरिया मा ।। फुलथे जब जब फूल, खुदे ममहाथे संगी । फूल डोहड़ी मान, काम हे तोर लफंगी ।।

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