महिना आगे पूस के, दिन भर लागय जाड़ ।
हाथ-पाव हा कापथे, जइसे डोले झाड़ ।।
हू हू मुॅह हा तो करय, जइसे सिसरी बोल ।
परे जाड़ जब पूस के, मुक्का होजय ढोल ।।
महिना आगे पूस के, लेही मोर परान ।
ना कदरी ना गोदरी, ना परछी रेगान ।।
कांटा न झिटी गांव मा, दिखे न कोनो खार ।
कहय डहत ये पूस हा, अब तो भूरी बार ।
जानय ना धनवान हा, कइसे होथे पूस ।
कांपत हम बिन चेंदरा, ओ पहिरे हे ठूस ।।
हाथ-पाव हा कापथे, जइसे डोले झाड़ ।।
हू हू मुॅह हा तो करय, जइसे सिसरी बोल ।
परे जाड़ जब पूस के, मुक्का होजय ढोल ।।
महिना आगे पूस के, लेही मोर परान ।
ना कदरी ना गोदरी, ना परछी रेगान ।।
कांटा न झिटी गांव मा, दिखे न कोनो खार ।
कहय डहत ये पूस हा, अब तो भूरी बार ।
जानय ना धनवान हा, कइसे होथे पूस ।
कांपत हम बिन चेंदरा, ओ पहिरे हे ठूस ।।
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