सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

मार्च, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कतका झन देखे हें-

नंदा गे

गोड के साटी नंदा गे, हाथ के चुरी हरागे, मुड़ी के चुंदी कटागे, अब टूरी मन के । माथा के टिकली हर, नाक मा उतर गे हे, कुतर दे हे चेंदरा, मुसवा फेसन के ।। पहिने हे टिप टाप, छोटे-छोटे छांट-छांट, मोबाइल धरे हाथ, गोठ लमावत हे । तन आधा हे उघरा, मुॅह मा तोपे चेंदरा, सरर सरर कर, गाड़ी चलावत हे ।।

दिल हरागेअ

1. का होगे तोला मन लइ लागे हे काम बुता मा कोनो चोरा ले हे का मया देखा के। 2. मया के फांदा मैं हर फसे हंव आंखी ला खोले निंद मा सुते हंव देखत ओला । 3. तोर आंखी मा उतर के देखेंव थाह नइ हे डूबत हंव ओमा मया के मारे । 4. दिल हरागे मया मा सना के गा बेजान देह गारी देवा के गल्ला का मतलब ।

ओही सूरज चांद हे

ओही सूरज चांद हे, ओही हे आकाश। कहे जमाना गे बदल, कोन करे विश्वास ।। कोन करे विष्वास, बिना पाछू आघू हे। नेह बिना घर द्वार, लगे कोनो जादू हे ।। डोरी बिना पतंग, गगन मा कदर ल खोही । उलंबा तोर सोच, जगत ओही के ओही ।।

तभे गा बिहान होथे

होथे डर अउ भूत हा, छू छूवाल कस दांव। घाम अंजोर के परे, मिट जाथे गा छांव ।। मिट जाथे गा छांव, रहय जब तक घाम बने । कमी घाम के होय, लगे ओ काजर म सने ।। अंतस भीतर तोर, शक्ति के सूरज सोथे । जावय ओ जब जाग, तभे गा बिहान होथे ।।

रख अपने ले काम

रहिबे गा जब तैं बने, बने लगहि संसार । तन मन बिगड़े तोर जब, होही जग बेकार ।। होही जग बेकार, हवय दुनिया हर अइसे। फेके ले अब काम, दूध के माछी जइसे ।। सुवारथ के ‘रमेश‘, कोन ला का कहिबे । रख अपने ले काम, बने तब तै हर रहिबे ।।

दु पइसा के लोभ

बेटा मोरे बात सुन, खोल अपन तै कान । दौलत पाछू भाग झन, दौलत बड़े इमान । दौलत बड़े इमान, शांति सुख तन मन भरथे । मनखे ल कहय कोन, खुदा ला बस मा करथे ।। कर मत बिगड़े काम, परे कोखरो सपेटा । दु पइसा के लोभ, पेर ही तोला बेटा ।

फूतके आवत जावत

आवत जावत एक दिन, देखेंव एक हूर । देखत देखत बिसर गय, मोरे अपने सूर ।। मोरे अपने सूर, रात दिन देखय सपना । झूलय आंखी मोर, ओखरे मुच मुच हॅसना । फूले फूले गाल, घात सुघ्घर हे भावत । हिरणी बानी चाल, फूतके आवत जावत ।।

आॅंखी सपना तै सजा

आॅंखी सपना तै सजा, अपन भाग झन कोस । चमक दमक रख चेहरा, मन मा भर ले जोष ।। मन मा भर ले जोश, काम दम भर कर ले । भाग करम के दास, अपन तै मुठ्ठी भर ले ।। छू ले बादर आज, खोल के डेना पांखी । दुनिया होही तोर, देख ले खोले आंखी ।।

भ्रस्टाचारी

भ्रस्टाचारी हे सबो, थोर थोर हे फेर । कोनो जांगर के करे, कोनो पइसा हेर ।। कोनो पइसा हेर, काम सरकारी करथे । ले परसेंटेज, जेब अपने वो भरथे ।। हवय रे काम चोर, करमचारी सरकारी । बिना काम के दाम, लेत हें भ्रस्टाचारी ।। सरकारी सब काम मा, कागज के हे खेल । कागज के डोंगा बने, कागज के गा रेल ।। कागज के गा रेल, उड़ावत हवे हवा मा । वेंटिलेटर मरीज, जियत हे जिहां दुवा मा ।। इक पइसा के काम, होय गा जिहां हजारी । काम उही ह कहाय, हमर बर तो सरकारी ।।

कहय ददा हा रोज

ओही ओही बात ला, कहय ददा हा रोज । झन जा बेटा ओ डगर, जाना गा तैं सोज ।। जाना गा तैं सोज, छोड़ संगती के तलब । अपन काम ले काम, कोखरो से का मतलब । कहे हवय ग ‘रमेश‘, मुड़ी धर के ओ रोही । लोफड़ लम्पट संग, परे हे ओही ओही ।।

झूमत नाचत फागुन आगे (मत्तगयंद सवैया)

हे गमके महुवा जब पीयर, पाय नशा जड़ चेतन जागे । हो बहिया भवरा जब मातय, रंग बिरंग कली हर छागे ।। हे मउरे अमुवा सरसो जब, ये धरती हर दुल्हन लागे । कोयल हे कुहके जब बागन झूमत नाचत फागुन आगे ।। छाय बने परसा कलगी बन, झूम बसंत ले पगड़ी मुड बांधे । घाम न जाड़ जनावत हे जब मंद सुगंध बयार ह आगे।। पाय नवा जिनगी बुढ़वा रूख डोलत वो लइका कस लागे । झूमय रे तितली जब फूलन झूमत नाचत फागुन आगे ।। गावय फाग धरे टिमकी सब लेत बलावत मोहन राधे । हाथ गुलाल धरे मुह पोतय, मान बुरा मत बोलय साधे ।। हाथ धरे पिचका लइका हर रंग भरे अउ डारन लागे । रंग गुलाल उड़े जब बादर झूमत नाचत फागुन आगे ।।

आनी बानी गीत गा

आनी बानी गीत गा, बने रहय श्रृंगार  । गढ़व शब्द के ओढ़ना, लोक-लाज सम्हार ।। लोक-लाज सम्हार, परी कस सुघ्घर लागय । छत्तीसगढ़ी गीत, देश परदेश म छाजय ।। गुरतुर लागय गीत, होय जस आमा चानी । दू अर्थी बोल, गढ़व मत आनी बानी ।।

मोर दूसर ब्लॉग