घाट सुन्ना बाट सुन्ना, खार सुन्ना गांव मा ।
झांझ झोला झेल झर झर, छांव मिलय न छांव मा ।।
गाय गरूवा होय मछरी, रोय तड़पत पार मा ।
आदमी बेहाल होगे, घाम के ये मार मा ।।
बूॅंद भर पानी नई हे, बोर नल सुख्खा परे ।
ओ कुॅआ अउ बावली हा, का पता कबके मरे ।
छोड़ मनखे गोठ तैं हर,जीव जोनी ले तरय ।
पेड़ रूख के जर घला हा, भोमरा मा जर मरय ।
झांझ झोला झेल झर झर, छांव मिलय न छांव मा ।।
गाय गरूवा होय मछरी, रोय तड़पत पार मा ।
आदमी बेहाल होगे, घाम के ये मार मा ।।
बूॅंद भर पानी नई हे, बोर नल सुख्खा परे ।
ओ कुॅआ अउ बावली हा, का पता कबके मरे ।
छोड़ मनखे गोठ तैं हर,जीव जोनी ले तरय ।
पेड़ रूख के जर घला हा, भोमरा मा जर मरय ।
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