खेलत कूदत नाचत गावत (मत्तगयंद सवैया)
खेलत कूदत नाचत गावत
हाथ धरे लइका जब आये ।
जा तरिया नरवा परिया अउ
खार गलीन म खेल भुलाये ।
खेलत खेलत वो लइका मन
गोकुल के मन मोहन लागे ।
गांव जिहां लइका सब खेलय
गोकुल धाम कहावन लागे ।
छत्तीसगढ़ी भाषा अउ छत्तीसगढ़ के धरोहर ल समर्पित रमेशकुमार सिंह चौहान के छत्तीसगढ़ी छंद कविता के कोठी ( rkdevendra.blogspot.com) छत्तीसगढ़ी म छंद विधा ल प्रोत्साहित करे बर बनाए गए हे । इहॉं आप मात्रिक छंद दोहा, चौपाई आदि और वार्णिक छंद के संगेसंग गजल, तुकांत अउ अतुकांत कविता पढ़ सकत हंव ।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें