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जून, 2016 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कतका झन देखे हें-

मान सियानी गोठ

झेल घाम बरसात ला, चमड़ी होगे पोठ । नाती ले कहिथे बबा, मान सियानी गोठ ।। चमक दमक ला देख के, बाबू झन तैं मात । चमक दमक धोखा हवय, मानव मोरे बात ।। मान अपन संस्कार ला, मान अपन परिवार । झूठ लबारी छोड़ के, अपने अंतस झार ।। मनखे अउ भगवान के, हवय एक ठन रीत । सबला तैं हर मोह ले, देके अपन पिरीत ।। बाबू मोरे बात मा, देबे तैं हर ध्यान । सोच समझ के हे कहत, तोरे अपन सियान ।। कहि दे छाती तान के, हम तोरे ले पोठ । चाहे कतको होय रे, कठिनाई हा रोठ ।।

भौतिकवाद के फेर मनखे मन करय ढेर

भौतिकवाद के फेर । मनखे मन करय ढेर सुख सुविधा हे अपार । मनखे मन लाचार मालिक बने विज्ञान । मनखे लगे नादान सबो काम बर मशीन । मनखे मन लगय हीन हमर गौटिया किसान । ओ बैरी ये मितान जांगर के बुता छोड़ । बइठे पालथी मोड़ बइठे बइठे ग दिन रात । हम लमाय हवन लात अइसन हे चमत्कार । देखत मरगेन यार पढ़े लिखे हवे झार । नोनी बाबू हमार जोहत हे बुता काम । कइसे के मिलय दाम लूटे बांटा हमार । ये मशीन मन ह झार मशीन हा करय काम । मनखे मन भरय दाम सुख सुविधा बरबादी । जेखर हवन हम आदि करना हे तालमेल । छोड़ सुविधा के खेल बड़े काम बर मशीन । छोट-मोट हम करीन मशीन ल करबो दास । नई रहन हम उदास

काठी के नेवता

काठी के नेवता कोने जानय जिंनगी, जाही कतका दूर तक । बेरा उत्ते बुड़ जही, के ये जाही नूर तक ।। टुकना तोपत ले जिये, कोनो कोनो ठोकरी । मोला आये ना समझ, कइसे मरगे छोकरी ।। अभी अभी तो जेन हा, करत रहिस हे बात गा । हाथ करेजा मा धरे, सुते लमाये लात गा ।। रेंगत रेंगत छूट गे, डहर म ओखर प्राण गा । सजे धजे मटकत रहिस, मारत ओहर शान गा ।। देख देख ये बात ला, मैं हा सोचॅव बात गा । मोर मौत पक्का हवय, जिनगी के सौगात गा । मोला जब मरने हवय, मरहूॅ मैं हा शान ले । जइसे मैं जीयत हॅवव, तुहर मया के मान ले ।। भेजत हवॅव मैं हा अपन, अब काठी के नेवता । दिन बादर ला जान के, आहू बनके देवता ।। अपने काठी के खबर मैं हा आज पठोत हंव। जरहूं सब ला देख के , सपना अपन सजोत हंव ।।

छोड़ नशा पानी के चक्कर

छोड़ नशा पानी के चक्कर, नशा नाश के जड़ हे । माखुर बिड़ी दारू गांजा के, नुकसानी अड़बड़ हे ।। रिकिम-रिकिम के रोगे-राई, नशा देह मा बोथे । मानय नही जेन बेरा मा, पाछू मुड़ धर रोथे ।। उठ छैमसी निंद ले जल्दी, अपने आंखी खोलव । सोच समझ के पानी धरके, अपने मुॅह ला धोलव ।। नही त टूट जही रे संगी, जतका तोर अकड़ हे । छोड़ नशा पानी के चक्कर, नशा नाश के जड़ हे । धन जाही अउ धरम नशाही, देह खाख हो जाही । मन बउराही बइहा बानी, कोने तोला भाही । संगी साथी छोड़ भगाही, तोर कुकुर गति करके । जादा होही घर पहुॅंचाही, मुरदा जइसे धरके ।। तोर हाथ ले छूट जही रे, जतका तोर पकड़ हे । छोड़ नशा पानी के चक्कर, नशा नाश के जड़ हे । छेरी पठरू जइसे तैं हर, चाबत रहिथस गुटका। गांजा के भरे चिलम धर के, मारत रहिथस हुक्का । फुकुर-फुकुर तैं बिड़ी सिजर के, लेवत रहिथस कस ला । देशी महुॅवा दारू विदेशी, चुहकत रहिथस रस ला ।। कभू नई तो सोचे तैं हर,  ये लत हा गड़बड़ हे । छोड़ नशा पानी के चक्कर, नशा नाश के जड़ हे ।

रीत-नीत के दोहावली

जीयत भर खाये हवन, अपन देश के नून । छूटे बर कर्जा अपन, दांव लगाबो खून ।। जीवन चक्का जाम हे, डार हॅसी के तेल । सुख-दुख हे दिन रात कस, हॅसी-खुशी ले झेल ।। चल ना गोई खाय बर, चुर गे हे ना भात । रांधे हंव मैं मुनगा बरी, जेला तैं हा खात ।। महर महर ममहात हे, चुरे राहेर दार । खाव पेट भर भात जी, घीव दार मा डार ।। परोसीन हा पूछथे, रांधे हस का साग । हमर गांव के ये चलन, रखे मया ला पाग ।। दाई ढाकय मुड़ अपन, देखत अपने जेठ । धरे हवय संस्कार ला, हे देहाती ठेठ ।। खेती-पाती बीजहा, लेवव संगी काढ़ । करिया बादर छाय हे, आगे हवय असाढ़ ।। बइठे पानी तीर मा, टेर करय भिंदोल । अगन-मगन बरसात मा, बोलय अंतस खोल ।। बइला नांगर फांद के, जोतय किसान खेत । टुकना मा धर बीजहा,  बावत करय सचेत ।। मुंधरहा ले जाग के, जावय खेत किसान । हॅसी-खुशी बावत करत, छिछत हवय गा धान ।। झम झम बिजली हा करय, करिया बादर घूप । कारी चुन्दी बगराय हे, धरे परी के रूप ।। आज काल के छोकरा, एती तेती ताक । अपन गांव परिवार के, काट खाय हे नाक ।। मोरे बेटा कोढ़िया, घूमत मारय शान । काम-बुता के गोठ ला, एको धरय न कान ।। जानय न

करिया बादर (घनाक्षरी छंद)

करिया करिया घटा, उमड़त घुमड़त बिलवा बनवारी के, रूप देखावत हे । सरर-सरर हवा, चारो कोती झूम झूम, मन मोहना के हॅसी, ला बगरावत  हे । चम चम चमकत, घेरी बेरी बिजली हा, हाॅसत ठाड़े कृश्णा के, मुॅह देखावत हे । घड़र-घड़र कर, कारी कारी बदरी हा, मोहना के मुख परे, बंषी सुनावत हे ।

सुमुखी सवैया

मया बिन ये जिनगी मछरी जइसे तड़पे दिन रात गियां । मया बिन ये तन हा लगथे जइसे ठुड़गा रूख ठाड़ गियां।। मया बरखा बन के बरसे तब ये मन नाचय मोर गियां । मया अब सावन के बरखा अउ राज बसंत बयार गियां

का करबे आखर ला जान के

का करबे आखर ला जान के का करबे दुनिया पहिचान के । घर के पोथी धुर्रा खात हे, पढ़थस तैं अंग्रेजीस्तान के । मिलथे शिक्षा ले संस्कार हा, देखव हे का हिन्दूस्तान के । सपना देखे मिल जय नौकरी चिंता छोड़े निज पहिचान के । पइसा के डारा मा तैं चढ़े ले ना संदेशा खलिहान के जाती-पाती हा आरक्षण बर शादी बर देखे ना छान के । मुॅह मा आने अंतस आन हे कोने जानय करतब ज्ञान के ।

बेटी ला शिक्षा संस्कार दौ

गजल बहर-212, 212, 212 बेटी ला शिक्षा संस्कार दौ । जिनगी जीये के अधिकार दौ ।। बेटी होथे बोझा जे कहे, मन के ये सोचे ला टार दौ । दुनिया होथे जेखर गर्भ ले, अइसन नोनी ला उपहार दौ । मन भर के उड़ लय आकाश मा, ओखर डेना पांखी झार दौ । बेटी के बैरी कोने हवे, पहिचानय अइसन अंगार दौ । बैरी मानय मत ससुरार ला अतका जादा ओला प्यार दौ । टोरय मत फइका मरजाद के, अइसन बेटी ला आधार दौ । ताना बाना हर परिवार के, बाचय अइसन के संस्कार दौ ।

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