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जुलाई, 2016 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कतका झन देखे हें-

मोर गांव हे सुख्खा

चारो कोती पूरा पानी, मोर गांव हे सुख्खा । सबके मरकी भरे भरे हे, मोरे मरकी दुच्छा।। खेत खार के गोठ छोड़ दे, मरत हवन पीये बर । पानी पानी बर तरसत हन, घिर्रत हन जीये बर ।। नरवा तरिया सुख्खा हावे, सब्बो कुॅआ पटागे । हेण्ड़ पम्प मोटर सुते हवय, जम्मो बोर अटागे ।। घर के बाहिर जे ना जाने, भरत हवय ओ पानी । पानी टैंकर जोहत रहिथे, मोरे घर के रानी ।। धुर्रा गली उड़ावत हावे, सावन के ये महिना । घाम जेठ जइसे लागे हे, मुड़ धर के सहिना ।। काबर गुस्साये हे बादर, लइका कस ललचाथे । कभू टिपिर टापर नई करय, बस आथे अउ जाथे ।। सोचव सोचव जुरमिल सोचव, काबर अइसन होथे । काबर सावन भादो महिना, घाम उमस ला बोथे ।। बेजाकब्जा चारो कोती, रूख राई ला काटे । परिया चरिया घेरे हावस, कुॅआ बावली पाटे ।। भरे हवय लालच के हण्ड़ा, पानी मांगे काबर । अपन अपन अब हण्ड़ा फोरव,  लेके हाथे साबर ।।

हरेली

सुख के बीजा बिरवा होके, संसो फिकर ल मेटय । धनहा डोली हरियर हरियर, मनखे मन जब देखय ।। धरती दाई रूप सजावय, जब आये चउमासा । हरियर हरियर चारो कोती, बगरावत हे आसा ।। सावन अम्मावस हा लावय, अपने संग हरेली । हॅसी खुशी ला बांटत हावय, घर घर मा बरपेली । कुदरी रपली हॅसिया नागर, खेती के हथियारे । आज देव धामी कस होये, हमरे भाग सवारे ।। नोनी बाबू गेड़ी मच-मच, कूद-कूद के नाचय ।। बबा खोर मा बइठे बइठे, देख देख के हाॅसय ।।

बरस बरस ओ बरखा रानी

धान पान के सुघ्घर बिरवा, लइका जस हरषाावय । जब सावन के बरखा दाई, गोरस अपन पियावय । ठुमुक ठुमुक लइका कस रेंगय, धान पान के बिरवा । लहर लहर हवा संग खेलय, जइसे लइका हिरवा ।। खेत खार हे हरियर हरियर, हरियर हरियर परिया । झरर झरर जब बरसे पानी, भरे लबालब तरिया ।। नदिया नरवा छमछम नाचय, गीत मेचका गावय । राग झिुंगुरा छेड़े हावय, रूखवा ताल मिलावय ।। भरे भरे हे बारी बखरी, नार बियारे छाये । तुमा कोहड़ा छानही चढ़य, भाजी पाला लाये ।। जानय नही महल वाले हा, कइसे गिरते पानी । गरीबहा मन के जिनगी के, कइसन राम कहानी ।। घात डहे हवय बेंदरा हा, परवा खपरा फोरे । कूद कूद के नाचत रहिथे, कभू न रेंगे कोरे ।। झरे ओरवाती झिमिर झिमिर, घर कुरिया बड़ चूहे । हवय गाय कोठा मा पानी, तभो पहटिया दूहे ।। परछी अॅंगना एके लागे, ओधे भले झिपारी । घर कुरिया हे तरई आंजन, सिढ़ ले परे किनारी ।। मन के पीरा मन मा राखे, गावय गीत ददरिया । बरस बरस ओ बरखा रानी, बरसव बादर करिया ।। दाई परसे मेघा बरसे, तभे पेट हा भरथे । कभू कहूं ओ गुस्सा होवय, सबके जियरा जरथे ।।

मनखे ओही बन जाथे

कुकुभ छंद जेन पेड़ के जर हे सुध्घर, ओही पेड़ ह लहराथे। जर मा पानी डारे ले तो, डारा पाना हरियाथे ।। नेह पोठ होथे जे घर के, ओही घर बहुत खटाथे । उथही होय म नदिया तरिया, मांघे फागुन म अटाथे ।। ढेला पथरा ला ठोके मा, राईं-झाईं हो जाथे । कच्चा माटी के लोंदा ले, करसी मरकी बन जाथे । जेन पेड़ ठांढ़ खड़े रहिथे, झोखा पाये गिर जाथे । लहर लहर हवा संग करके, नान्हे झांड़ी इतराथे ।। करू कस्सा कस बोली बतरस, जहर महूरा कस होथे । मीठ गोठ के बोली भाखा, सिरतुन अमरित रस बोथे। जिहां चार ठन भड़वा बरतन, धोये मांजे मा चिल्लाथे । संगे जुरमिल एक होय के, रंधहनी कुरिया मा जाथे ।। जेन खेत के मेढ़ साफ हे, ओही हा खेत कहाथे । मनखे ला जे मनखे मानय, मनखे ओही बन जाथे ।।

कब तक हम सब झेलत रहिबो

कब तक हम सब झेलत रहिबो, बिखहर सांप गला लपेट । कभू जैष अलकायदा कभू, कभू नवा इस्लामिक स्टेट ।। मार काट करना हे जेखर, धरम करम तो केवल एक । गोला बारूद बंदूक धरे, सबके रसता राखे छेक ।। मनखे मनखे जेती देखय, गोला बारूद देथे फोड़ । अपन जुनुन मा बइहा होके, उधम मचावत हें घनघोर ।। चिख पुकार अउ रोना धोना, मचे हवय गा हाहाकार । बिना मौत कतको मरत हंवय, देखव इन्खर अत्याचार ।। नाम धरम के बदनाम करत, खेले केवल खूनी खेल । मनखे होके राक्षस होगे, मनखेपन ला घुरवा मेल ।।

पढ़ई के नेह

होथे गा पढ़ई जिहां, काबर चूरे भात । पढ़ई लिखई छोड़ के, करे खाय के बात । बस्ता मा थारी हवय, लइका जाये स्कूल । गुरूजी के का काम हे, रंधवाय म मसगूल ।। मन हा तो काहीं रहय, बने रहय गा देह । बने रहय बस हाजरी, येही पढ़ई के नेह ।। अइसन शिक्षा नीति हे, काला हे परवाह । राजनीति के फेर मा, करत हें वाह-वाह ।। प्रायवेट वो स्कूल मा, कतका लूट-घसोट । गुरूजी हे पातर दुबर, कोन धरे हे नोट ।। करथें केवल चोचला, आन देश के देख । अपन देश के का हवय, पढ़व आन के लेख । हवय कमई जेखरे, पढ़ई म देत फूक । छोड़-छाड़ संस्कार ला, देखय केवल ‘लूक‘ । -रमेश चैहान

राग द्वेष ला छोड़ दे

राग द्वेष ला छोड़ दे, जेन नरक के राह । कोनो ला खुश देख के, मन मा मत भर आह ।। त्याग प्रेम के हे परख, करव प्रेम मा त्याग । स्वार्थ मोह के रंग ले, रंगव मत अनुराग ।। जनम जनम के पुण्य ले, पाये मनखे देह । करले ये जीवन सफल, मनखे ले कर नेह ।। अमर होय ना देह हा, अमर हवे बस जीव । करे करम जब देह हा, होय तभे संजीव ।। रोक छेक मन हा करय, पूरा करत मुराद । मजा मजा बस खोज के, करय बखत बरबाद ।।

नोनी बाबू एक हे

चंडिका छंद 13 मात्रा पदांत 212 नोनी बाबू एक हे । नारा हा बड़ नेक हे करके जग के काम ला । नोनी करथे नाम ला काम होय छोटे बड़े । हर काम म नोनी अड़े घर अउ बाहिर के बुता । नोनी हा देथे़ कुता येमा का परहेज हे । नोनी खुदे दहेज हे नोनी ला बड़ मान दौ । आघू ओला आन दौ नोनी नोनी के षोर मा । नवा चलन के जाोर मा बाबू मन पछुवाय हे । नोनी मन अघुवाय हे बाबू होगे छोट रे । जइसे सिक्का खोट रे नोनी बहुते हे पढ़े । बाबू बहुते हे कढ़े ताना बाना देश के । हर समाज परिवेश के तार तार झन होय गा । सोचव मन धोय गा

कहमुकरिया

1. मोरे कान जेन हा धरथे। आॅंखी उघार उज्जर करथे ।। दुनिया देखा करे करिश्मा । का सखि ? जोही । नहि रे चश्मा । 2. बइला भइसा जेखर संगी । खेत जोत जे करे मतंगी । काम करे ले थके न जांगर । का सखी ? किसान नही रे, नांगर ।

बरसात

चढ़ बादर के पीठ मा, बरसत हवय असाढ़ । धरती के सिंगार हा, अब तो गे हे बाढ़ ।। रद-रद-रद बरसत हवय, घर कुरिया सम्हार । बांध झिपारी टांग दे, मारत हवय झिपार ।। चिखला हे तोरे गोड़ मा, धोके आना गोड़ । चिला फरा घर मा बने, खाव पालथी मोड़ ।। सिटिर सिटिर सावन करय, झिमिर झिमिर बरसात । हरियर लुगरा ला पहिर, धरती गे हे मात ।।

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