होथे गा पढ़ई जिहां, काबर चूरे भात ।
पढ़ई लिखई छोड़ के, करे खाय के बात ।
बस्ता मा थारी हवय, लइका जाये स्कूल ।
गुरूजी के का काम हे, रंधवाय म मसगूल ।।
मन हा तो काहीं रहय, बने रहय गा देह ।
बने रहय बस हाजरी, येही पढ़ई के नेह ।।
अइसन शिक्षा नीति हे, काला हे परवाह ।
राजनीति के फेर मा, करत हें वाह-वाह ।।
प्रायवेट वो स्कूल मा, कतका लूट-घसोट ।
गुरूजी हे पातर दुबर, कोन धरे हे नोट ।।
करथें केवल चोचला, आन देश के देख ।
अपन देश के का हवय, पढ़व आन के लेख ।
हवय कमई जेखरे, पढ़ई म देत फूक ।
छोड़-छाड़ संस्कार ला, देखय केवल ‘लूक‘ ।
-रमेश चैहान
पढ़ई लिखई छोड़ के, करे खाय के बात ।
बस्ता मा थारी हवय, लइका जाये स्कूल ।
गुरूजी के का काम हे, रंधवाय म मसगूल ।।
मन हा तो काहीं रहय, बने रहय गा देह ।
बने रहय बस हाजरी, येही पढ़ई के नेह ।।
अइसन शिक्षा नीति हे, काला हे परवाह ।
राजनीति के फेर मा, करत हें वाह-वाह ।।
प्रायवेट वो स्कूल मा, कतका लूट-घसोट ।
गुरूजी हे पातर दुबर, कोन धरे हे नोट ।।
करथें केवल चोचला, आन देश के देख ।
अपन देश के का हवय, पढ़व आन के लेख ।
हवय कमई जेखरे, पढ़ई म देत फूक ।
छोड़-छाड़ संस्कार ला, देखय केवल ‘लूक‘ ।
-रमेश चैहान
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें