चारो कोती पूरा पानी, मोर गांव हे सुख्खा ।
सबके मरकी भरे भरे हे, मोरे मरकी दुच्छा।।
खेत खार के गोठ छोड़ दे, मरत हवन पीये बर ।
पानी पानी बर तरसत हन, घिर्रत हन जीये बर ।।
नरवा तरिया सुख्खा हावे, सब्बो कुॅआ पटागे ।
हेण्ड़ पम्प मोटर सुते हवय, जम्मो बोर अटागे ।।
घर के बाहिर जे ना जाने, भरत हवय ओ पानी ।
पानी टैंकर जोहत रहिथे, मोरे घर के रानी ।।
धुर्रा गली उड़ावत हावे, सावन के ये महिना ।
घाम जेठ जइसे लागे हे, मुड़ धर के सहिना ।।
काबर गुस्साये हे बादर, लइका कस ललचाथे ।
कभू टिपिर टापर नई करय, बस आथे अउ जाथे ।।
सोचव सोचव जुरमिल सोचव, काबर अइसन होथे ।
काबर सावन भादो महिना, घाम उमस ला बोथे ।।
बेजाकब्जा चारो कोती, रूख राई ला काटे ।
परिया चरिया घेरे हावस, कुॅआ बावली पाटे ।।
भरे हवय लालच के हण्ड़ा, पानी मांगे काबर ।
अपन अपन अब हण्ड़ा फोरव, लेके हाथे साबर ।।
सबके मरकी भरे भरे हे, मोरे मरकी दुच्छा।।
खेत खार के गोठ छोड़ दे, मरत हवन पीये बर ।
पानी पानी बर तरसत हन, घिर्रत हन जीये बर ।।
नरवा तरिया सुख्खा हावे, सब्बो कुॅआ पटागे ।
हेण्ड़ पम्प मोटर सुते हवय, जम्मो बोर अटागे ।।
घर के बाहिर जे ना जाने, भरत हवय ओ पानी ।
पानी टैंकर जोहत रहिथे, मोरे घर के रानी ।।
धुर्रा गली उड़ावत हावे, सावन के ये महिना ।
घाम जेठ जइसे लागे हे, मुड़ धर के सहिना ।।
काबर गुस्साये हे बादर, लइका कस ललचाथे ।
कभू टिपिर टापर नई करय, बस आथे अउ जाथे ।।
सोचव सोचव जुरमिल सोचव, काबर अइसन होथे ।
काबर सावन भादो महिना, घाम उमस ला बोथे ।।
बेजाकब्जा चारो कोती, रूख राई ला काटे ।
परिया चरिया घेरे हावस, कुॅआ बावली पाटे ।।
भरे हवय लालच के हण्ड़ा, पानी मांगे काबर ।
अपन अपन अब हण्ड़ा फोरव, लेके हाथे साबर ।।
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