कुकुभ छंद
जेन पेड़ के जर हे सुध्घर, ओही पेड़ ह लहराथे।
जर मा पानी डारे ले तो, डारा पाना हरियाथे ।।
नेह पोठ होथे जे घर के, ओही घर बहुत खटाथे ।
उथही होय म नदिया तरिया, मांघे फागुन म अटाथे ।।
ढेला पथरा ला ठोके मा, राईं-झाईं हो जाथे ।
कच्चा माटी के लोंदा ले, करसी मरकी बन जाथे ।
जेन पेड़ ठांढ़ खड़े रहिथे, झोखा पाये गिर जाथे ।
लहर लहर हवा संग करके, नान्हे झांड़ी इतराथे ।।
करू कस्सा कस बोली बतरस, जहर महूरा कस होथे ।
मीठ गोठ के बोली भाखा, सिरतुन अमरित रस बोथे।
जिहां चार ठन भड़वा बरतन, धोये मांजे मा चिल्लाथे ।
संगे जुरमिल एक होय के, रंधहनी कुरिया मा जाथे ।।
जेन खेत के मेढ़ साफ हे, ओही हा खेत कहाथे ।
मनखे ला जे मनखे मानय, मनखे ओही बन जाथे ।।
जेन पेड़ के जर हे सुध्घर, ओही पेड़ ह लहराथे।
जर मा पानी डारे ले तो, डारा पाना हरियाथे ।।
नेह पोठ होथे जे घर के, ओही घर बहुत खटाथे ।
उथही होय म नदिया तरिया, मांघे फागुन म अटाथे ।।
ढेला पथरा ला ठोके मा, राईं-झाईं हो जाथे ।
कच्चा माटी के लोंदा ले, करसी मरकी बन जाथे ।
जेन पेड़ ठांढ़ खड़े रहिथे, झोखा पाये गिर जाथे ।
लहर लहर हवा संग करके, नान्हे झांड़ी इतराथे ।।
करू कस्सा कस बोली बतरस, जहर महूरा कस होथे ।
मीठ गोठ के बोली भाखा, सिरतुन अमरित रस बोथे।
जिहां चार ठन भड़वा बरतन, धोये मांजे मा चिल्लाथे ।
संगे जुरमिल एक होय के, रंधहनी कुरिया मा जाथे ।।
जेन खेत के मेढ़ साफ हे, ओही हा खेत कहाथे ।
मनखे ला जे मनखे मानय, मनखे ओही बन जाथे ।।
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