मन के अंधियारी मेट ले
(सरसी छंद)
मन के अंधियारी मेट ले, अंतस दीया बार ।
मनखे मनखे एके होथे, ऊंच-नीच ला टार ।।
घर अँगना हे चिक्कन चांदन, चिक्कन-चिक्कन खोर ।
मइल करेजा के तैं धो ले, बांध मया के डोर ।
मन के दीया बाती धर के, तेल मया के डार।।
मन के अंधियारी मेट ले, अंतस दीया बार ।
जनम भूमि के दाना पानी, हवय तोर ये देह ।
अपन देष अउ धरम-करम मा, करले थोकिन नेह ।।
अपने पुरखा अउ माटी के, मन मा रख संस्कार ।
मन के अंधियारी मेट ले, अंतस दीया बार ।
नवा जमाना हे भौतिक युग, यंत्र तंत्र ला मान ।
येमा का परहेज हवय गा, रखव समय के ध्यान ।
भौतिक बाहिर दिखवा होथे, अंतस के संस्कार ।
मन के अंधियारी मेट ले, अंतस दीया बार ।
(सरसी छंद)
मन के अंधियारी मेट ले, अंतस दीया बार ।
मनखे मनखे एके होथे, ऊंच-नीच ला टार ।।
घर अँगना हे चिक्कन चांदन, चिक्कन-चिक्कन खोर ।
मइल करेजा के तैं धो ले, बांध मया के डोर ।
मन के दीया बाती धर के, तेल मया के डार।।
मन के अंधियारी मेट ले, अंतस दीया बार ।
जनम भूमि के दाना पानी, हवय तोर ये देह ।
अपन देष अउ धरम-करम मा, करले थोकिन नेह ।।
अपने पुरखा अउ माटी के, मन मा रख संस्कार ।
मन के अंधियारी मेट ले, अंतस दीया बार ।
नवा जमाना हे भौतिक युग, यंत्र तंत्र ला मान ।
येमा का परहेज हवय गा, रखव समय के ध्यान ।
भौतिक बाहिर दिखवा होथे, अंतस के संस्कार ।
मन के अंधियारी मेट ले, अंतस दीया बार ।
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