अपन सबो संस्कार ला, मान अंध विश्वास ।
संस्कृति ला कुरीति कहे, मालिक बनके दास ।
पढ़े लिखे के चोचला, मान सके ना रीति ।
कहय ददा अढ़हा हवय, अउ संस्कार कुरीति ।।
रीति रीति कुरीति हवय, का बाचे संस्कृति ।
साफ-साफ अंतर धरव , छोड़-छाड़ अपकृति ।।
दाना-दाना अलहोर के, कचरा मन ला फेक ।
दाना कचरा संग मा, जात हवय का देख ।।
धरे आड़ संस्कार के, जेन करे हे खेल ।
दोषी ओही हा हवय, संस्कृति काबर फेल ।।
दोषी दोषी ला दण्ड दे, संस्कृति ला मत मार ।
काली के गलती हवय, आज ल भला उबार ।।
संस्कृति ला कुरीति कहे, मालिक बनके दास ।
पढ़े लिखे के चोचला, मान सके ना रीति ।
कहय ददा अढ़हा हवय, अउ संस्कार कुरीति ।।
रीति रीति कुरीति हवय, का बाचे संस्कृति ।
साफ-साफ अंतर धरव , छोड़-छाड़ अपकृति ।।
दाना-दाना अलहोर के, कचरा मन ला फेक ।
दाना कचरा संग मा, जात हवय का देख ।।
धरे आड़ संस्कार के, जेन करे हे खेल ।
दोषी ओही हा हवय, संस्कृति काबर फेल ।।
दोषी दोषी ला दण्ड दे, संस्कृति ला मत मार ।
काली के गलती हवय, आज ल भला उबार ।।
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