उत्ती के बेरा जइसे
सुरता तोरे जागे हे
मन के पसरे बादर म
सोना कस चमकत हे
मोरे काया के धरती म
अंग-अंग चहकत हे
दरस-परस के सपना मा
डेना-पांखी लागे हे
सुरता के खरे मझनिया
देह लकलक ले तिपे हे
अंतस के धीर अटावत
मया तोरे लिपे हे
अंग-अंग म अगन लगे
काया म मन छागे हे
तोर हंसी के पुरवाही
सुरता म जब बोहाय
आँखी के बोली बतरस
संझा जइसे जनाय
आँखी म आँखी के समाये
आँखी म रतिहा आगे हे
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