//नवगीत//
दुख के हाथी मुड़ मा बइठे
कइसे बिताववं रात
टुकुर-टुकुर बादर ला देखत
ढलगे हवं चुपचाप
न रोग-राई हे न प्रेम रोग हे
मैं तो बेटी के बाप
कोन सुनही काला सुनावंव
अपन मन के बात
जतका मोरे चद्दर रहिस हे
ततका पांव मारेंव
चिरई कस चुन-चुन दाना
ओखर मुह मा डारेंव
बेटी-बेटा एक मान के
पढाय लिखाय हंव घात
कइसे कहंव अपन पीरा ल
मिलय न लइका अइसे
पढ़े-लिखे गुणवान होय
मोरे नोनी हे जइसे
पढ़ई-लिखई छोड़-छोड़ के
टुरा दारू म गे मात
जांवर-जीयर बिन बिरथा हे
नोनी के बुता काम
दूनो चक्का एक होय म
चलथे गाड़ी तमाम
आंगा-भारू कइसे फांदवं
लाके कोनो बरात
दुख के हाथी मुड़ मा बइठे
कइसे बिताववं रात
टुकुर-टुकुर बादर ला देखत
ढलगे हवं चुपचाप
न रोग-राई हे न प्रेम रोग हे
मैं तो बेटी के बाप
कोन सुनही काला सुनावंव
अपन मन के बात
जतका मोरे चद्दर रहिस हे
ततका पांव मारेंव
चिरई कस चुन-चुन दाना
ओखर मुह मा डारेंव
बेटी-बेटा एक मान के
पढाय लिखाय हंव घात
कइसे कहंव अपन पीरा ल
मिलय न लइका अइसे
पढ़े-लिखे गुणवान होय
मोरे नोनी हे जइसे
पढ़ई-लिखई छोड़-छोड़ के
टुरा दारू म गे मात
जांवर-जीयर बिन बिरथा हे
नोनी के बुता काम
दूनो चक्का एक होय म
चलथे गाड़ी तमाम
आंगा-भारू कइसे फांदवं
लाके कोनो बरात
टूरा अउ टूरा के ददा
थोकिन गुनव सोचव
पढ़ई लिखई पूरा करके
काम बुता सरीखव
नोनी बाबू एक बरोबर
बाढ़त रहल दिन रात
-रमेश चौहान
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