दारू म छठ्ठी छकत हवय गा, दारू म होय बिहाव ।
दारू म मरनी-हरनी होवय, मनखे करे हियाव ।।
दरूहा-दरूहा के रेम लगे, सजे रहय दरबार ।
दारू चुनावी दंगल गढ़थे, अउ गढ़थे सरकार ।।
गली-गली मा शोर परत हे, भठ्ठी ल करव बंद ।
पीयब छोड़ब कहय न कोनो, कहय रमेशानंद ।।
दारू म मरनी-हरनी होवय, मनखे करे हियाव ।।
दरूहा-दरूहा के रेम लगे, सजे रहय दरबार ।
दारू चुनावी दंगल गढ़थे, अउ गढ़थे सरकार ।।
गली-गली मा शोर परत हे, भठ्ठी ल करव बंद ।
पीयब छोड़ब कहय न कोनो, कहय रमेशानंद ।।
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