सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

जून, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कतका झन देखे हें-

देश भले बोहावय, धारे-धार बाट मा

जात-पात भाषा-बोली, अउ मजहबी गोठ राजनीति के चारा ले, पोठ होगे देश मा । टोटा-टोटा बांधे पट्टा, जस कुकुर पोसवा देश भर बगरे हे, आनी-बानी बेश मा । कोनो अगड़ी-पिछड़ी, कोनो हिन्दू-मुस्लिम कोनो-कोनो दलित हे, ये बंदर बाट मा । सब छावत हवय, बस अपने कुरिया देश भले बोहावय, धारे-धार बाट मा ।।

ये सरकारी चाउर

ये सरकारी चाउर, सरकारी शौचालय त परे-परे बनगे,  कोड़िया-अलाल के । जेला देखव कंगला, अपने ल बतावय गोठ उन्खर लगय, हमला कमाल के ।। फोकट म पाय बर, ओ ठेकवा देखावय । कसेली के दूध घीव, हउला म डार के । मन भर छेके हवे, गांव के गली परिया सड़क म बसे हवय, महल उजार के ।।

सभ्य बने के चक्कर मा

लइका दाई के दूध पिये, दाई-दाई चिल्लाथे । आया डब्बा के दूध पिये, अपने दाई बिसराथे।। जेने दाई अपने लइका, गोरस ला नई पियाये। घेरी-घेरी लालत ओला, जेने ये मान गिराये ।। सभ्य बने के चक्कर मा जे, अपन करेजा बिसराये । बोलव दुनिया वाले कइसे, ओही हा सम्य कहाये ।। दाई के गोरस कस होथे, देश राज के भाखा । पर के भाखा ओदर जाही, जइसे के छबना पाखा ।। म्याऊ-म्याऊ बोल-बोल के,  बिलई बनय नही तोता। छेरी पठरू संग रही के, बघवा होय नही थोथा ।। अपने गोरस अपने भाखा, अपने लइका ला दे दौ । देखा-सेखी छोड़-छाड़ के, संस्कारी बीजा बो दौ ।

पियासे ठाड़े जोहय, रद्दा एको बूंद के

करिया-करिया घटा, बड़ इतरावत बड़ मेछरावत, करत हवे ठठ्ठा । लुहुर-तुहुर कर, ठगनी कस ठगत बइठारत हवे, हमरे तो भठ्ठा ।। नदिया-तरिया कुँआ, घर के बोर बोरिंग पियासे ठाड़े जोहय, रद्दा एको बूंद के । कोन डहर बरसे, कोन डहर सोर हे बैरी हमरे गांव ला, छोड़े हवे कूंद के ।।

खोज खोज के मारव

कहाँ ले पाथे आतंकी, बैरी नकसली मन पेट भर भात अउ, हथियार हाथ मा । येमन तो मोहरा ये, असली बैरी होही हे जेन ह पइसा देके, खड़े हवे साथ मा ।। कोन धनवान अउ, कोन विदवान हवे पोषत हे जेन बैरी, अपनेच देश के । खोज खोज के मारव, मुँहलुकना मन ला येही असली बैरी हे, हमरेच देश के ।।

मोर दूसर ब्लॉग