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मई, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कतका झन देखे हें-

लगही-लगही तब तो, गाँव हमर बढ़िया

//उड़ियाना-पद// लगही-लगही तब तो, गाँव हमर बढ़िया कान धरव ध्यान धरव, गोठ-बात मने भरव रखव-रखव साफ रखव, गाँव-गाँव तरिया ।। पानी के स्रोत रखव, माटी ला पोठ रखव जइसे के रखे रहिस, नंदलाल करिया ।। गाँव-गली चातर कर, लोभ-मोह ला झन धर बेजा कब्जा छोड़व, गाँव खार परिया ।। माथा ‘रमेश‘ हा धर, कहय दया अब तो कर गाय गरूवा बर दौ, थोड़-बहुत चरिया ।।

तीन छंद-कुण्डल-कुण्डलनि-कुण्डलियां

//कुण्डल// काम-बुता करव अपन, जांगर ला टोरे । देह-पान रखव बने, हाथ-गोड़ ला मोड़े ।। प्रकृति संग जुड़े रहव, प्रकृति पुरूष होके । बुता करब प्रकृति हमर, बइठव मत सोके ।। //कुण्डलनि // जांगर अपने टोर के, काम-बुता ला साज । देह-पान सुग्हर रहय, येही येखर राज ।। येही येखर राज, खेत मा फांदव नांगर । अन्न-धन्न अउ मान, बांटथे हमरे जांगर ।। //कुण्डलियां// अइठे-अइठे रहव मत, अपन पसीना ढार । लाख बिमारी के हवय, एकेठन उपचार ।। एकेठन उपचार, बनाही हमला मनखे । सुग्घर होही देह, काम करबो जब तनके ।। साहब बाबू होय, रहव मत बइठे-बइठे । अपने जांगर पेर, रहव मत अइठे-अइठे ।।

पानी जीवन आधार, जिंनगी पानी

पानी जीवन आधार, जिंनगी पानी । पानी हमरे बर आय, करेजा चानी ।। पानी बिन जग बेकार, जीव ना बाचे । जानत हे सब आदमी, बात हे साचे ।। बचा-बचा पानी कहत, चिहुर चिल्लाये । वाह वाहरे आदमी, कुछ ना  बचाये ।। काबर करथे आदमी, रोज नादानी । शहर-ष्श्हर अउ हर गाँव, एके कहानी ।। स्रोत बचाये ले इहां, बाचही पानी । कान खोल के गठियाव, गोठे सियानी ।। नदिया नरवा के रहे, बाचही पानी । तरिया खनवावव फेर, कर लौ सियानी ।। बोर भरोसा अब काम, चलय ना एको । भुइया सुख्खा हे आज, निटोरत देखो ।। बोर खने धुर्रा उड़य, मिलय ना पानी । हाल हवे बड़ बेहाल   कर लौ सियानी ।। -रमेश चौहान

दुई ढंग ले, होथे जग मा, काम-बुता

दुई ढंग ले, होथे जग मा, काम-बुता । हाथ-गोड़ ले, अउ माथा ले, मिले कुता ।। माथा चलथे, बइठे-बइठे, जेभ भरे । हाथ-गोड़ हा, देह-पान ला, स्वस्थ करे ।। दूनों मिल के, मनखे ला तो, पोठ करे । काया बनही, माया मिलही, गोड़ धरे । बइठइया मन, जांगर पेरव, एक घड़ी । जांगर वाले, धरव बुद्वि ला, जोड़ कड़ी ।।

सम्राट पृथ्‍वीराज चौहान (आल्‍हा धुन म गौरव गाथा)

सबले पहिली माथ नवावय, हाथ जोर के तोर गणेश । अपन वंश के गौरव गाथा, फेर सुनावत हवय ‘रमेश‘ ।। अपन देश अउ अपन धरम बर, जीना मरना जेखर काम । जब तक सूरज चंदा रहिथे, रहिथे अमर ओखरे नाम ।। पराक्रमी योद्धा बलिदानी, भारत के आखरी सम्राट । पृथ्वीराज अमर हावे जग, ऊँचा राखे अपन ललाट ।। जय हिन्दूपति जय दिल्लीपति, जय हो जय हो पृथ्वीराज । अद्भूत योद्धा तैं भारत के, तोरे ऊँपर सबला नाज ।। स्वाभिमान बर जीना मरना, जाने जेने एके काम । क्षत्रीय वर्ण चौहान कहाये, अग्नी वंशी जेखर नाम ।। आगी जइसे जेठ तिपे जब, अउ रहिस अंधियारी पाख । रहिस द्वादशी के तिथि जब, जनमे बालक पृथ्वीराज ।। कर्पूर देवी दाई जेखर, ददा रहिस सोमेश्वर राय । रहिस घात सुग्घर ओ लइका, सबके मन ला लेवय भाय ।। लइकापन मा शेर हराये, धरे बिना एको हथियार । बघवा जइसे तोरे ताकत, जाने तभे सकल संसार ।। रहे बछर ग्यारा के जब तैं, हाथ ददा के सिर ले जाय । अजमेर राज के ओ गद्दी, नान्हेपन ले तैं सिरजाय ।। अंगपाल दिल्ली के राजा, रिश्ता मा तो नाना तोर । ओखर पाछू दिल्ली गद्दी, अपन हाथ धर करे सजोर ।। एक संघरा दू-दू गद्दी, गढ़ दिल्ली अउ गढ़

हम बनबो, मनखे

भानु छंद हम बनबो, मनखे होके मनखे आज । हम जानब, कइसन हावय येखर राज । कहिथे गा, सबो देव-धामी येखर दास । सब तरसय, मनखे तन पाये बर खास ।।

सिन्धु छंद

नवा रद्दा चलव संगी हमन गढ़बो । डगर रेंगत सबो ढिलवा हमन चढ़बो ।। परता हवय जउन खेती हमन करबो । जउन कोठी हवय खाली हमन भरबो ।।

सही उमर मा बिहाव कर ले

भूख लगे मा खाना चाही, प्यास लगे  मा तो पानी । सही उमर मा बिहाव करले, जागे जब तोर जवानी ।। सही समय मा खातू-माटी, धान-पान ला तो चाही । खेत जरे मा बरसे पानी,  कइसे के सुकाल लाही । अपन गोड़ मा खड़ा होत ले,  आधा उमर पहागे गा। तोर जवानी ये चक्कर मा,  अपने अपन सिरागे गा ।। नवा जमाना के फेशन मा, लइका अपने ला माने । धरे जवानी सपना देखे, तभो उमर ला तैं ताने ।। दू पइसा हे तोर कमाई,  अउ-अउ के लालच जागे । येही चक्कर मा तो संगी,  तोर जवानी हा भागे ।। कुँवर-बोड़का बइठे-बइठे, कोन कहाये  सन्यासी । भीष्म प्रतिज्ञा कर राखे का, देखाथे जेन उदासी ।। -रमेश चौहान

कतका दुकला हे परे

अमृतध्वनि-कुण्डलियां कतका दुकला हे परे, दुल्हा मन के आज । पढ़े लिखे बाबू खिरत, आवत मोला लाज ।। आवत मोला, लाज बहुत हे, आज बतावत । दस नोनी मा, एके बाबू, पढ़ इतरावत ।। बाबू मन हा, पढ़े नई हे, नोनी अतका । बाबू मन ला, काम-बुता के, चिंता कतका ।। चिंता कतका आज हे, देखव सोच बिचार । टूरा पढ़ई छोड़थे, बारहवी के पार । बारहवी के पार, पढ़य ना टूरा जादा । पढ़े-लिखे बेगार, आज आधा ले जादा । मन मा अइसे सोच, पढ़य ना बाबू अतका । करथे कुछु भी काम, धरे हे चिंता कतका ।।

आज सुधरबो, भूल-चूक सब छोड़ के

देखा-देखी, अनदेखी सब जानथे । जी ले जांगर, बरपेली सब तानथे ।। होके मनखे, चलत हवे जस भेड़िया । मे-मे दिनभर, नरियाथे जस छेरिया । अंग्रेजी के, बोली-बतरस बोलथें । छत्तीसगढ़ी, हिन्दी ला बड़ ठोलथें ।। इज्जत अपने, अपन हाथ धर खोत हें । का अब कहिबे, काँटा ला खुद बोत हें ।। गाँव देश के, गलती केवल देखथें । बैरी बानिक, आँखी निटोर सेकथें ।। दूसर सुधरय, इच्छा सबझन राखथें । गोठ अपन के, अधरे अधर म फाँकथें ।। चाट-चाट के, खावय दूसर के जुठा । झूठ-मूठ के, शान-शौकत धरे मुठा ।। जागव-जागव, देखव-देखव गाँव ला । स्वाभिमान के, अपने सुग्घर छाँव ला ।। आज सुधरबो, भूल-चूक सब छोड़ के । बंधे खूँटा, सकरी-साकर तोड़ के । देश गाँव के, रहन-सहन सब पोठ हे । गाँठ बाँधबो, येही सिरतुन गोठ हे ं।।

बोरे-बासी छोड़ के

बोरे-बासी छोड़ के, अदर-कचर तैं खात । दूध-दही ला छोड़ के, भठ्ठी कोती जात ।। भठ्ठी कोती जात, धरे चखना तैं बोजे । नो हय कभूू कभार, होत रहिथे ये रोजे । सुन तो अरे रमेश, काम ए सत्‍यानाशी । सुनस नहीं कुछ गोठ, खाय बर बोरे-बासी ।।

अंग्रेजी

अंग्रेजी के स्कूल हे, गली-गली मा आज । अइसन अतका स्कूल तो, रहिस न उन्खर राज । रहिस न उन्थर राज, चोचला ये भाषा मा । फँसे हवे सब आज, नौकरी के झासा मा । रोजगार के नाम, पढ़े लइका अंग्रेजी । तभो बेरोजगार, बढ़त हावे अंग्रेजी ।। -रमेशकुमार सिंह चौहान

नानपन ले काम करव

आज करबे काल पाबे, जानथे सब कोय । डोलथे जब हाथ गोड़े, जिंदगी तब होय ।। काम सुग्घर दाम सुग्घर, मांग लौ दमदार । काम घिनहा दाम घिनहा, हाथ धर मन मार ।। डोकरापन पोठ होथे, ढोय पहिली काम । नानपन ले काम करके, पोठ राखे चाम ।। नानपन मा जेन मनखे, लात राखे तान । भोगही ओ काल जूहर, बात पक्का मान ।। नानपन ले काम कर लौ, देह होही पोठ । आज के ये तोर सुख मा, काल दिखही खोट ।। कान अपने खोल सुन लौ, आज दाई बाप । खेल खेलय तोर लइका, मेहनत ला नाप ।। देह बर तो काम जरुरी, बात पक्का मान । खेल हा तो काम ओखर, गोठ सिरतुन जान ।। तोर पढ़ई काम भर ले, बुद्धि होही पोठ । काम बिन ये देह तोरे, होहि कइसे रोठ ।। खेल मन भर नानपन मा, खोर अँगना झाक । रात दिन तैं फोर आँखी, स्क्रीन ला मत ताक ।। नानपन ले जेन जानय, होय कइसे काम । झेल पीरा आज ओ तो, काल करथे नाम ।। -रमेश चौहान

चल तरिया जाबो

चल तरिया जाबो, खूब नहाबो, तउड-तउड़ के संगी । खूब मजा पाबो, दम देखाबो, नो हय काम लफंगी ।। तउड़े ले होथे, काया पोठे, तबियत सुग्घर रहिथे । पाछू सुख पाथे, तउड़ नहाथे, आज झेल जे सहिथे ।। जब तरिया जाबे, संगी पाबे, चार बात बतियाबे । गोठ गोठियाबे, मया बढ़ाबे, पीरा अपन सुनाबे ।। दूसर के पीरा, सुनबे हीरा, मनखे बने कहाबे । घर छोड़ नहानी, करत सियानी, तरिया जभे नहाबे ।। हे लाख फायदा, देख कायदा, धरती बर तरिया के । धरती के पानी, धरे जवानी, बड़ झूमे छरिया के ।। पानी के केबल, वाटर लेबल, तरिया बने बनाथे । बाते ला मानव, ये गुण जानव, कहिदव तरिया भाथे ।।

जल्दी उठ ले

मुँहझुंझुल उठ ले,  जल्दी पुट ले,  खटिया छोड़े,  खुशी धरे । हे अनमोल दवा, सुबे  के हवा, पाबे फोकट, बाँह भरे ।। रेंग कोस भर गा, छोड़व डर गा, रहिही तबियत, तोर बने । डाॅक्टर के चक्कर, करथे फक्कड़, पइसा-कौड़ी, लेत हने ।। काबर रतिहा ले, तैं बतिया ले, सुते न जल्दी, लेट  करे । मोबाइल धर के, गाड़ा भर के, फोकट-फोकट, चेट करे ।। जे जल्दी सुतही, जल्दी उठही, पक्का मानव, बात खरा । जाने हे जम्मा, तभो निकम्मा, काबर रहिथे, गोठ ढरा ।। हे नवा जमाना, नवा बहाना, गोठ नवा भर, इहां हवे । हे धरती जुन्ना, बाते गुन्ना, जेखर ले तो, देह हवे ।। माटी मा माटी, बनके साथी, जेने रहिथे,  स्वस्थ हवे। करथे हैरानी, धरे जवानी, अइसन मनखे, बने हवे ।। -रमेश चौहान

सपना मा आवत हे रे

//गीत// टूरा- खुल्ला चुन्दीवाली टूरी, सपना मा आवत हे रे । मोरै तन मन के बादर मा, बदरी बन छावत हे रे ।। टूरी- लंबा चुन्दी वाले टूरा, सपना मा आवत हे रे । मोरे तन मन के बदरी मा, बादर बन छावत हे रे ।। टूरा- चढ़े खोंजरारी चुन्दी हा, माथा मा जब-जब ओखर । घेरी-बेरी हाथ हटाये, लगे चेहरा तब चोखर । झमझम बिजली चमकय जइसे, चुन्दी चमकावत हे रे । खुल्ला चुन्दीवाली टूरी, सपना मा आवत हे रे । .टूरी- फुरुर-फुरुर पुरवाही जइसे, झुलुप केस हा बोहावय । जेने देखय अइसन बैरी, ओखर बर तो मोहावय । चिक्कन-चांदन गाल गुलाबी, घात नशा बगरावत हे रे । लंबा चुन्दी वाले टूरा, सपना मा आवत हे रे । टूरा- खुल्ला चुन्दीवाली टूरी, सपना मा आवत हे रे । मोरै तन मन के बादर मा, बदरी बन छावत हे रे ।। टूरी- लंबा चुन्दी वाले टूरा, सपना मा आवत हे रे । मोरे तन मन के बदरी मा, बादर बन छावत हे रे ।।

हवय बिमारी शुगर के

कटय बिमारी शुगर के, करू करेला रांध । रोटी भर खाना हवय, अपन पेट ला बांध ।। अपन पेट ला,  बांध रखे हँव, लालच छोड़े । गुरतुर-गुरतुर, स्वाद चिखे बर, मुँह ला मोड़े ।। नीम बेल अउ, तुलसी पत्ता, हे गुणकारी । रोज बिहनिया, दउड़े ले तो, कटय बिमारी ।। -रमेश चौहान

ये राजा मोरे

//गीत// (नायिका बर एकल गीत)  नायक वर्णन ये राजा मोरे, आँखी के तोरे, करिया-करिया काजर । लागत हे मोला, आँखी मा तोरे, हवय मया के सागर ।। आँखी-आँखी के, ये वोली बतरस, लागय गुरतुर आगर ।। एक कान के, सुग्घर बाली, अउ अँगठा के छल्ला । जब-जब तोला, देखँव राजा, होथे मन मा हल्ला ।। तोरे दाढ़ी के, ये करिया चुन्दी, लागय जइसे बादर । ये राजा मोरे, तोरे आँखी के, करिया-करिया काजर ।। आधा बाही, वाले कुरता, तोला अब्बड़ सोहे । खुल्ला-खुल्ला, तोर भुजा ये, मोला अब्बड़ मोहे ।। दूनों बाँह के, तोरे गोदना, मोला जलाय काबर । ये राजा मोरे, तोरे आँखी के, करिया-करिया काजर ।।

बनिहार

//बनिहार// आज जेला  देखव तेने हा बनिहार के गुण गावत नई अघावत हे चारोकोती आँखी मा जउन कुछ दिखत हे बनिहार के पसीना मा सनाय हे काली मोर गाँव के दाऊ कहत रहिस काली जेन बनिहार हमर पाँव परत रहिस आज ओखर पाँव परे ला होगे हे सालेमन के ओहू आज लिखिस "मजदूर दिवस की शुभकामना"

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