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कतका झन देखे हें-

//काम के अधिकार चाही//

छाती ठोक के, मांग करव अब, काम के अधिकार । हर हाथ मा तो, काम होवय, रहब न हम लचार ।। हर काम के तो, दाम चाही, नई लन खैरात । हो दाम अतका, पेट भर के, मिलय हमला भात ।। खुद गुदा खाथे, देत हमला, फोकला ला फेक । सरकार या, कंपनी हा, कहां कोने नेक ।। अब काम के अउ, दाम के तो, मिलय गा अधिकार । कानून गढ़ दौ, एक अइसन, देश के सरकार ।।

फोकट मा झन बाँट

फोकट मा झन बाँट तैं, हमर चुने सरकार । देना हे ता काम दे, जेन हमर अधिकार ।। जेन हमर अधिकार,  तोर कर्तव्य कहाये । स्वाभिमान ला मार, सबो ला ढोर बनाये  ।। पैरा-भूसा डार, अपन बरदी मा ठोकत ।  लालच हमर जगाय, लोभ मा बाँटत फोकट ।। फोकट फोकट खाृय के, मनखे होत अलाल । स्वाभिमान हा मरत हे, काला होत मलाल ।। काला होत मलाल, निठल्ला हवय जवानी । काम-बुता ना हाथ, करत शेखी शैतानी । पइसा पावय चार, अपन जांगर ला झोकत । अइसे करव उपाय, बाँट मत अब कुछु फोकट ।। -रमेशकुमार सिंह चौहान

मया बिना जीवन कइसे

बिना तेल के दीया-बाती, हे मुरझाय परे । बिना प्राण के काया जइसे, मुरदा नाम धरे ।। मया बिना जीवन कइसे, अपने दम्भ भरे । घाम-छाँव जीवन के जतका, सब ला मया हरे ।।

नीत-रीत दूसर बर काबर

निंद अपन आँखी मा आथे, अपन मुँह मा स्वाद । सुख ला बोहे हाँस-हाँस के, दुख ला घला लाद ।। अपने कोठी अपने होथे, आन के हर भीख । नीत-रीत दूसर बर काबर, खुदे येला सीख ।। -रमेश चौहान

करत हवँव गोहार दाई

जय जय दाई नवागढ़ के, जय जय महामाय करत हवँव गोहार दाई, सुन लेबे पुकार । एक आसरा तोर हावे, पूरा कर दुलार ।। दुनिया वाले कहँव काला, मारत हवय लात । पइसा मा ये जगत हावे, जगत के ये बात ।। लगे काम हा छूट गे हे, परय पेट म लात । बिना बुंता के एक पइसा, आवय नही हाथ ।। काम बुता देवय न कोनो,  देत हे दुत्कार । करत हवँव गोहार दाई, सुन लेबे पुकार । नान्हे-नान्हे मोर लइका, भरँव कइसे पेट । लइकामन हा करय रिबि-रिबि, करँव कइसे चेत ।। मोर पाप ला क्षमा करदौं, क्षमा कर दौ श्राप । काम-बुता अब हाथ दे दौ, कहय लइका बाप ।। काम-बुता अउ बिना पइसा, हवय जग बेकार । करत हवँव गोहार दाई, सुन लेबे पुकार । करत हवँव गोहार दाई, सुन लेबे पुकार । एक आसरा तोर हावे, पूरा कर दुलार ।।

नवा जमाना आगे

मिलत नई हे गाँव मा, टेक्टर एको खोजे । खेत जोतवाना हवय, खोजत हँव मैं रोजे ।। बोवाई हे संघरा, नांगर हा नंदागे । नवा जमाना खेती नवा, नवा जमाना आगे ।।

हमर किसानी, बनत न थेगहा

मिलत हवय ना हमर गांव मा, अब बनिहार गा । कहँव कोन ला सुझत न कूछु हे, सब सुखियार गा ।। दिखय न अधिया लेवइया अब, धरय न रेगहा । अइसइ दिन मा हमर किसानी, बनय न थेगहा ।।

जब कुछु आही

बुता काम बिना दाम, मिलय नही ये दुनिया । लिखे पढ़े जेन कढ़े, ओही तो हे गुनिया ।। बने पढ़व बने कढ़व, शान-मान यदि चाही । पूछ परख तोर सरख, होही जब कुछु आही ।

अरे बेटा, गोठ सुन तो,

अरे बेटा, गोठ सुन तो, चलय काम कइसे । घूमत हवस, चारो डहर, घूमय मन जइसे ।। चारो डहर, नौकरी ला, खोजत हस दुनिया । आसा छोड़, अब येखरे, ये हे बैगुनिया ।। जांगर पेर, काम करथे, घर के ये भइसा । खेत जाबो, हम कमाबो, पाबो दू पइसा ।। तोर अक्कल, येमा लगा, कर खेती बढ़िया । ठलहा होय, बइठ मत तैं, बन मत कोढ़िया ।।

‘चलायमान कोन हे‘

गुमान मन करथे, मैं हा हवँव चलायमान । स्वभाव काया के, का हे देखव तो मितान ।। बिना टुहुल-टाहल, काया हे मुरदा समान । जभेच तन ठलहा, मन हा तो घूमे जहाँन ।। जहान घूमे बर, मन हा तो देथे फरमान । चुपे बइठ काया, गोड़-हाथ ला अपन तान ।। निटोर देखत हस, कुछ तो अब अक्कल लगाव । विचार के देखव, ये काखर हावे स्वभाव ।।

जाके बेटा खेत डहर

जाके बेटा खेत डहर, कांटा ला सकेल । आवत हावे मानसून, खातू ला ढकेल ।। बोना हावय धान-पान, खेत-खार निढाल । बीज-भात ला साफ करत, नांगर ला निकाल ।।

जांघ अपने काट के हम, बनावत हन साख

धर्म अउ संस्कार मा तो, करे शंका आज । आंग्ल शिक्षा नीति पाले, ओखरे ये राज ।। देख शिक्षा नीति अइसन, आय बड़का रोग । दासता हे आज जिंदा, देश भोगत भोग ।। देख कतका देश हावे, विश्व मा घनघोर । जेन कहिथे जांघ ठोके, धर्म आवय मोर ।। लाख मुस्लिम देश हावय, लाख क्रिश्चन देश । धर्म शिक्षा नीति मानय, राख अपने वेष ।। हिन्द हिन्दू धर्म बर तो, लाख पूछत प्रश्न । आन शिक्षा नीति देखव, मनावत हे जश्न ।। आज हिन्दू पूत होके, प्रश्न करके लाख । जांघ अपने काट के हम, बनावत हन साख ।।

समय हृदय के साफ

समय हृदय के साफ, दुवाभेदी ना जानय । चाल-ढाल रख एक, सबो ला एके मानय । पानी रहय न लोट, कमल पतरी मा जइसे । ओला होय न भान, हवय सुख-दुख हा कइसे । ओही बेरा एक, जनम कोनो तो लेथे । मरके कोनो एक, सगा ला पीरा देथे ।। अपन करम के भोग, भोगथे मनखे मनखे । कोनो बइठे रोय, हाँसथे कोनो तनके ।।

अरे जवानी

अरे जवानी भटकत काबर, रद्दा छोड़ । परे नशा पानी के चक्कर, मुँह ला मोड़ ।। धरती के सेवा करना हे, होय सपूत । प्यार-व्यार के चक्कर पर के, हवस कपूत ।।

बेजाकब्जा गाँव-गाँव

बेजाकब्जा गाँव-गाँव, लगत हवय कोढ़ । अपन बिमारी रखे तोप, कमरा ला ओढ़ ।। अंधरा-भैरा साधु चोर, हवय एक रंग । बचही कइसे एक गाँव, दिखय नहीं ढंग ।। -रमेश चौहान

भाव

भाव में दुख भाव मेॆं सुख, भाव में भगवान । भाव  जग व्यवहार से ही, संत है इंसान । भाव चेतन और जड़ में,  भाव से ही धर्म । भाव तन मन ओढ़ कर ही, करें अपना कर्म ।।

दोष देत सरकार ला, सब पिसत दांत हे

दोष देत सरकार ला, सब पिसत दांत हे । ओखर भीतर झाक तो, ओ बने जात हे । जनता देखय नही, खुद अपन दोष ला । अपन स्वार्थ मा तो परे, बांटथे  रोष ला ।। वो लबरा हे कहूॅं, तैं सही होय हस ? गंगा जल अउ दूध ले, तैं कहां धोय हस ?? तैं सरकारी योजना, का सही पात हस ? होके तैं हर गौटिया, गरीब कहात हस ?? बेजाकब्जा छोड़ दे, तैं अपन गांव के । चरिया परिया छोड़ तैं, रूख पेड़ छांव के । लालच बिन तैं वोट कर, आदमी छांट के । नेता नौकर तोर हे, तैं राख हांक के ।।

दाई के गोरस सही, धरती के पानी

दाई के गोरस सही, धरती के पानी । दाई ले बड़का हवय, धरती हा दानी ।। सहत हवय दूनो मनन, तोरे मनमानी । रख गोरस के लाज ला, कर मत नादानी ।। होगे छेदाछेद अब, धरती के छाती । कइसे बरही तेल बिन, जीवन के बाती ।। परत हवय गोहार सुन, अंतस मा तोरे । पानी ला खोजत हवस, गाँव-गली खोरे ।। रहिही जब जल स्रोत हा, रहिही तब पानी । तरिया नरवा बावली, नदिया बरदानी ।। पइसा के का टेस हे, पइसा ला पीबे । पइसा मा मिलही नही, तब कइसे जीबे ।।

हे स्वाभिमान के,दरकार

जचकी ले मरनी, लाख योजना, हे यार । फोकट-सस्ता मा, बाँटत तो हे, सरकार ।। ढिठ होगे तब ले, हमर गरीबी, के बात । सुरसा के मुँह कस, बाढ़त हावे, दिन रात ।। गाँव-गाँव घर-घर, दिखे कंगला, भरमार । कागज के घोड़ा, भागत दउड़त, हे झार ।। दोषी जनता हे, या दोषी हे, सरकार । दूनो मा ता हे, स्वाभिमान के, दरकार ।।

मनखे तैं नेक हो

जात-धरम, सबके हे, दुनिया के जीव मा । रंग-रूप, अलग-अलग, सब निर्जीव मा ।। जोड़ रखे, अपन धरम, धरती बर एक हो । देश एक, अपने कर, मनखे तैं नेक हो ।। 

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