रहत-रहत हमला, परगे आदत, हरदम रहत गुलाम ।
रहिस हमर जीवन, काम-बुता सब, मुगल आंग्ल के नाम ।।
बड़ अचरज लगथे, सुनत-गुनत सब, सोच आन के लाद ।
कहिथन अब हम सब, होगे हन गा, तन मन ले आजाद ।।
तुलसी चौरा अंगना, पीपर तरिया पार । लहर लहर खेती करय, अइसन गांव हमार ।। गोबर खातू डार ले, खेती होही पोठ । लइका बच्चा मन घला, करही तोरे गोठ ।। गउचर परिया छोड़ दे, खड़े रहन दे पेड़ । चारा चरही ससन भर, गाय पठरू अउ भेड़ ।। गली खोर अउ अंगना, राखव लीप बहार । रहिही चंगा देह हा, होय नही बीमार ।। मोटर गाड़ी के धुॅंवा, करय हाल बेहाल । रूख राई मन हे कहां, जंगल हे बदहाल ।। -रमेश चौहान
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