सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

अध्यातम चिंतन लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कतका झन देखे हें-

मन के मइल (दुर्मिल सवैया)

जइसे तन धोथस तैं मल के, मन ला कब  धोथस गा तन के । तन मा जइसे बड़ रोग लगे, मन मा लगथे  बहुते छनके ।। मन देखत दूसर ला जलथे, जइसे जब देह बुखार धरे । मन के सब लालच केंसर हो, मन ला मुरदा कस खाक करे ।। मन के उपचार करे बर तो, दवई धर लौ निक सोच करे । मन के मइले तन ले बड़का, मन ला मल ले भल सोच धरे ।। मन लालच लोभ फसे रहिथे, भइसी जइसे चिखला म धसे । अपने मन सुग्घर तो कर लौ, जइसे तुहरे तन जोर कसे ।।

सरग-नरक

सरग-नरक हा मनोदशा हे, जे मन मा उपजे । बने करम हा सुख उपजाये, सरग जेन सिरजे ।। जेन करम हा दुख उपजाथे, नरक नाम धरथे । करम जगत के सार कहाथे, नाश-अमर करथे ।। बने करम तै काला कहिबे,  सोच बने धरले । दूसर ला कुछु दुख झन होवय, कुछुच काम करले ।। दूसर बर गड्ढा खनबे ता, नरक म तैं गिरबे । अपन करम ले कभू कोखरो, छाती झन चिरबे ।।

मोर दूसर ब्लॉग