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कतका झन देखे हें-

सास बहू के झगरा

आँखी तोरे फूट गे, दिखत नई हे काम । गोबर-कचरा छोड़ के, करत हवस आराम ।। करत हवस आ-राम दोखई, बइठे-बइठे । सुनत सास के, गारी-गल्ला, बहू ह अइठे ।। नई करँव जा, का करबे कर, मरजी मोरे । बइठे रहिहँव, चाहे फूटय, आँखी तोरे ।।

हवय बिमारी शुगर के

कटय बिमारी शुगर के, करू करेला रांध । रोटी भर खाना हवय, अपन पेट ला बांध ।। अपन पेट ला,  बांध रखे हँव, लालच छोड़े । गुरतुर-गुरतुर, स्वाद चिखे बर, मुँह ला मोड़े ।। नीम बेल अउ, तुलसी पत्ता, हे गुणकारी । रोज बिहनिया, दउड़े ले तो, कटय बिमारी ।। -रमेश चौहान

पइसा के पाछू बइहा झन तो होव

पइसे के पाछू कभू, बइहा झन तो होव । चलय हमर परिवार हा, अतका धाने बोव । अतका धाने, बोव सबो झन,  भूख मरी मत । पइसा पाछू, होके बइहा, हम अति करि मत ।। दुनिया ले तो, हमला जाना, नगरा जइसे । आखिर बेरा, काम न आवय, तोरे पइसे ।।

करना चाही

करना चाही सब कहे, करथे के झन देख । नियम-धियम सिद्धांत मा, खोजत हे मिन-मेख ।। खोजत हे मिन-मेख इहां सब, जी चोराये । चलत हवय जब, चंदा-सूरज, सब बंधाये ।। चिरई-चिरगुन, मानत हावे, हाही-माही । सोचत हावे, कहि-कहि मनखे, करना चाही ।

आगी झन बारँव इहां

आगी झन बारँव इहाँ, इहाँ सरग के ठाँव । छत्तीसगढ़ नाम हवय, सरग दुवारी छाँव ।। सरग दुवारी, छाँव निहारत, दुनिया आथे । आथे जेने,  इही ठउर मा, बड़ सुख पाथे । हमरे माटी, चुपरय छाती, कहि पालागी । अपन पराया,  कहि कहि के झन, बारँव आगी ।।

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