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कतका झन देखे हें-

कहमुकरिया

1. अपन बाँह मा भरथंव जेला । जेन खुशी बड़ देथे मोला ।। मन हरियर तन लाली भूरी । का सखि ? भाटो ! नहि रे चूरी ।। 2. बिन ओखर जेवन नई चुरय । सांय-सांय घर कुरिया घुरय ।। जेन कहाथे घर के दूल्हा । का सखि ? भाटो ! नहि रे, चूल्हा ।। 3. दुनिया दारी जेन बताथे । रिगबिग ले आँखी देखाथे । जेखर आघू बइठवं ‘सीवी‘ का सखि ? भाटो ! नहि रे, टीवी ।।

कहमुकरिया

1. मोरे कान जेन हा धरथे। आॅंखी उघार उज्जर करथे ।। दुनिया देखा करे करिश्मा । का सखि ? जोही । नहि रे चश्मा । 2. बइला भइसा जेखर संगी । खेत जोत जे करे मतंगी । काम करे ले थके न जांगर । का सखी ? किसान नही रे, नांगर ।

कहमुकरिया

1. जेखर आघू  मा मैं जाके । देखंव अपने रूप लजा के । अपने तन ला करके अर्पण । का सखि ? जोही ।़ नहि रे दर्पण । 2. जेखर खुषबू तन मन छाये । जेला पा के मन हरियाये । मगन करय ओ, जेखर रूआब का सखि ? जोही ।़ नहि रे गुलाब । 3. तोर मांग सब पूरा करहू। कहय जेन हा बिपत ल हरहू । कर न सकय कुछु, बने चहेता का सखि ? जोही ।़ नहि रे नेता ।

कहमुकरी

1. चुन्दी मोरे ओ सहलाथे । वोही मोरे मांघ बनाथे ।। रूप सजाथे जेने संगी । का सखि ? जोही ! ना सखि कंघी । 2. ओ हर अइसे करे कमाल । चमकत हवे मोर चोच लाल । लाज म जावत हे मोर जान । का सखि ? जोही ! नहीं रे पान । 3. कान मेर आके जेने बोले । परे नींद मा आॅखी खोले ।। गुस्सा आथे मोला अक्सर का सखि ? जोही ! नहि रे मच्छर ।

कहमुकरिया

कहमुकरिया (कहमुकरिया एक छंद होथे, जेमा 16, 16 मात्रा के चार चरण होथे, ये एक अइसन विधा आय जेमा एक सहेली अपन प्रियतम के वर्णन करथे अउ अपन सखी ले पूछथे, जब ओखर सखी हा, उत्तर मा साजन कहिथे तो ओ हा मुकर जाथे अउ आने उत्तर बता देथे, ये विधा मा रचनाकार अउ पाठक के बीच एक जनउला हो जथे) 1. रहिथे दिन रात संग मोरे, गोठ बात मा राखे बोरे । संग ओखरे करथव स्माइल । का सखि ? साजन ! ना सखि मोबाइल ।। 2. मोर अकेल्ला के संगी हे, ज्ञान जेखरे सतरंगी हे । जेखर आघू मैं नतमस्तक । का सखि ? साजन ! ना सखि पुस्तक ।

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