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कतका झन देखे हें-

कइसे कहँव किसान ला भुइया के भगवान

कइसे कहँव किसान ला, भुइया के भगवान । लालच के आगी बरय, जेखर छतिया तान ।। जेखर छतिया तान, भरे लालच झांकत हे । खातू माटी डार, रोग हमला बांटत हे ।। खेत म पैरा बार, करे मनमानी जइसे । अपने भर ला देख, करत हे ओमन कइसे ।। घुरवा अउ कोठार बर, परिया राखँय छेक । अब घर बनगे हे इहाँ, थोकिन जाके देख ।। थोकिन जाके देख, खेत होगे चरिया-परिया । बचे कहाँ हे गाँव, बने अस एको तरिया ।। ना कोठा ना गाय, दूध ना एको चुरवा । पैरा बारय खेत, गाय ला फेकय घुरवा ।। नैतिक अउ तकनीक के, कर लौ संगी मेल । मनखे हवय समाज के, खुद ला तैं झन पेल ।। खुद ला तैं झन पेल, अकेल्‍ला के झन सोचव । रहव चार के बीच, समाजे ला झन नोचव । सुनलव कहय ’रमेश’, देश के येही रैतिक । सब बर तैं हर जीय, कहाथे येही नैतिक ।। -रमेश चौहान

सुरहोत्‍ती

सुरहोत्‍ती ये गॉंव के, हवय सरग ले नीक । मंदिर-मंदिर मा जले, रिगबिग दीया टीक ।। रिगबिग दीया टीक, खेत धनहा डोली मा । घुरवा अउ शमशान, बरत दीया टोली मा । सुनलव कहय रमेश, देख तैं चारों कोती । हवय सरग ले नीक, गॉंव के ये सुरहोत्‍ती ।।

पीरा होथे देख के

पीरा होथे देख के, टूरा मन ला आज । कतको टूरा गाँव के, मरय न एको लाज । मरय न एको लाज, छोड़ के पढ़ई-लिखई । मानय बड़का काम, मात्र हीरो कस दिखई ।। काटय ओला आज, एक फेशन के कीरा । पाछू हे हर बात, ऐखरे हे बड़ पीरा ।।

अइसन हे पढ़ई

पास फेल के स्कूल मा, होगे खेल तमाम । जम्मा जम्मा पास हे, कहां फेल के काम ।। कहां फेल के काम, आज के अइसन पढ़ई । कागज ले हे काम, करब का अब हम कढ़ई ।। अव्वल हवय "रमेश", पढ़े ना कभू ठेल के । फरक कहां हे आज, इहां तो पास फेल के ।। -रमेश चौहान

गाय अब केती जाही

टेक्टर चाही खेत बर, झट्टे होही काम । नांगर बइला छोड़ दे, कहत हवय विज्ञान । कहत हवय विज्ञान, धरम प्रगती के बाधक । देवय कोन जवाब, मौन हे धरमी साधक । पूछत हवे "रमेश", गाय अब केती जाही । बइला ला सब छोड़, कहय जब टेक्टर चाही ।। -रमेश चौहान

करम बड़े के भाग

फांदा मा चिरई फसे, काखर हावे दोष । भूख मिटाये के करम, या किस्मत के रोष ।। या किस्मत के रोष, काल बनके हे आये । करम बड़े के भाग, समझ मोला कुछु ना आये ।। सोचत हवे ‘रमेश‘, अरझ दुनिया के थांघा । काखर हावे दोष, फसे चिरई हा फांदा ।।

पहा जथे हर रात, पहाती बेरा देखत

देखत कारी रात ला, मन मा आथे सोच । कुलुप अंधियारी हवय, खाही हमला नोच । खाही हमला नोच, हमन बाचन नहिं अब रे । पता नही भगवान, रात ये कटही कब रे ।। धर ले गोठ ‘रमेश‘, अपन मन ला तैं सेकत । पहा जथे हर रात, पहाती बेरा देखत ।

लंबा लबरा जीभ

खाये भर बर तो हस नही, लंबा लबरा जीभ । बोली बतरस मा घला, गुरतुर-गुरतुर नीभ ।। गुरतुर-गुरतुर नीभ, स्वाद दूनों तैं जाने । करू-करू के मीठ,  बने कोने ला तैं माने ।। पूछत हवय ‘रमेश‘,  मजा कामा तैं पाये । गुरतुर बोली छोड़, मीठ कतका तैं खाये ।।

कविता

उभरे जब प्रतिबिम्ब हा, धर आखर के रूप । देखावत दरपण असन, दुनिया के प्रतिरूप ।। दुनिया के प्रतिरूप, दोष गुण ला देखाये । कइसे हवय समाज, समाजे ला बतलाये ।। सुनलव कहय ‘रमेश‘, शब्द जब घाते निखरे । मन के उपजे भाव, तभे कविता बन उभरे ।।2।।

कलाम ला सलाम

सुनले आज कलाम के, थोकिन तैं हर गोठ । जेन करे हे देश बर, काम बने तो पोठ ।। काम बने तो पोठ, करे हे ओ हमरे बर । बने मिसाइल मेन, बने ओ हमरे रहबर ।। षिक्षक बने महान,  ओखरे शिक्षा चुनले । हमरे भारत रत्न, रहिस शिक्षाविद सुुनले ।।         -रमेश चौहान

सुन सुन ओ पगुराय

धर मांदर संस्कार के, तैं हर ताल बजाय । भइसा आघू बीन कस, सुन सुन ओ पगुराय ।। सुन सुन ओ पगुराय, निकाले बोजे चारा । दूसर बाचा मान, खाय हे ओ हर झारा ।। परदेषिया भगाय, हमर पुरखा हा मर मर । ओमन मेछरावत, ऊंखरे बाचा ला धर ।।

ना नर गरू ना नार

नारी ले नर होत हे, नर ले होये नार । नर नारी के मेल ले, बसे हवे संसार ।। बसे हवे संसार, कदर हे एक बराबर । ना नर गरू ना नार, अहम के झगरा काबर ।। अहम वहम तैं मेट, मया ला करके भारी । नारी बिन ना मर्द, मर्द बिन ना नारी ।। 

दाई बेटा ले कहे

दाई बेटा ले कहे, तैं करेजा हस मोर । जब बेटा हा बाढ़ गे, सपना ला दिस टोर ।। सपना ला दिस टोर, आन ला जिगर बसाये । छोड़े घर परिवार, जवानी अपन देखाये ।। सुन लव कहे ‘रमेश‘, सोच के करव सफाई । दुनिया के भगवान, तोर बर तोरे दाई ।।

बिचारा हा अनाथ बन

लइकापन ओ छोड़ के, बनगे हवय सियान । करय काम ओ पेट बर, देवय कोने ध्यान ।। देवय कोने ध्यान, बुता ओ काबर करथे । लइकामन ला छोड़, ददा हा काबर मरथे ।। सहय समय के मार, बिचारा हा अनाथ बन । करत करत काम, छुटे ओखर लइकापन ।।

वाह रे तैं तो मनखे

मनखे काबर तैं करे, अइसन कोनो काम । जगह जगह ला छेक के, अपन बिगाड़े धाम ।। अपन बिगाड़े धाम, कोन ला हे गा भाये । चाकर रद्दा छोड़, कोलकी जउन बसाये ।। रोके तोला जेन, ओखरे बर तैं सनके । मनखे मनखे कहय, वाह रे तैं तो मनखे ।। कइसे ये दुनिया हवय, बनथे खुद निरदोस । अपन आप ला छोड़ के, दे दूसर ला दोस ।। दे दूसर ला दोस, दोस ला अपन लुकावै घेरी बेरी दोस, जमाना के बतलावै ।। होवत दुरगति गांव, बनेे सब पथरा जइसे । पथरा के भगवान, देख मनखे हे कइसे ।।

अंधा हे कानून हा

अंधा हे कानून हा, कहिथे मनखे झार । धरे तराजू हाथ मा, खड़े हवय दरबार ।। खड़े हवय दरबार, बांध आंखी मा पट्टी । धनी गुणी के खेल, बने हे जइसे बट्टी ।। समझय कहां गरीब, हवय ये कइसन धंधा । मनखे मनखे देख, जेन बन जाथे अंधा ।। -रमेश चौहान

जगत अच्छा हे कइसे

जइसे दुनिया  हे बने, ओइसने हे आज । अपन सोच अनुसार तैं, करथस अपने काज ।। करथस अपने काज, सही ओही ला माने । दूसर के ओ सोच, कहां तैं हर पहिचाने ।। अंतस अपने झांक, जगत अच्छा हे कइसे । जगत दिखे हे साफ, सोच हे तोरे जइसे ।।

पइसा धरे खरीद

दुनिया के हर चीज ला, पइसा धरे खरीद । कहिथे गा धनवान मन, हाथे धरे रसीद ।। हाथ धरे रसीद, कहे मनखे तक बिकथे । नैतिकता ला आज, जगत मा कोने रखथे ।। सुनलव कहय ‘रमेश‘, मया तो हे बैगुनिया । दया मया भगवान, बिके ना कोनो  दुनिया ।। -रमेश चौहान

आंसू ढारे देख

जबतक बिहाव होय ना, बेटा तबतक तोर । आय सुवारी ओखरे, बिसरे तोरे सोर ।। बिसरे तोरे सोर, अपन ओ मया भुलाये । रीत जगत के जान , ददा काबर झल्लाये । देखव जगत ‘रमेश‘, तोर बेटी हे कबतक । आंसू ढारे देख, चले स्वासा हे जबतक ।।

कब बोवाही धान

हवय अहंदा खेत हा, कब बोवाही धान । रोज रोज पानी गिरे, मुड़ धर कहे किसान । मुड़ धर कहे किसान, रगी अब तो कब होही । बता ददा भगवान, धान किसान कब बोही ।। कइसन लीला तोर, लगे काहेक छदंहा । बरसे पानी रोज, खेत हा हवय अहंदा ।।

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