कर मान बने धरती के (खरारी छंद) कर मान बने, धरती के, देश प्रेम ला, निज धर्म बनाये । रख मान बने, धरती के, जइसे खुद ला, सम्मान सुहाये ।। उपहास करे, काबर तैं, अपन देश के, पहिचान भुलाये । जब मान मरे, मनखे के, जिंदा रहिके, वो लाश कहाये ।। -रमेशकुमार सिंह चौहान
पुस्तक: मानसिक शक्ति-स्वामी शिवानंद
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मानसिक शक्ति THOUGHT POWER का अविकल रूपान्तर लेखक श्री स्वामी शिवानन्द
सरस्वती
2 माह पहले