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कतका झन देखे हें-

तुकांत गज़ल-भीतरे भीतर जरव मत

 भीतरे भीतर जरव मत (तुकांत गज़ल) भीतरे भीतर जरव मत बिन आगी के बरव मत अपन काम ले काम जरूरी फेर बीमरहा कस घर धरव मत जेला जे पूछय तेला ते पूछव राम-राम कहे बिन कोनो टरव मत चार दिन के जिंदगी चारठन गोठ  चार बरतन के ठेस लगे लडव मत काना-फुँसी कानों कान होथे दूसर के कान ला भरव मत आँखी के देखे धोखा हो सकथे अंतस के आँखी बंद करव मत -रमेश चौहान

गजल- "काम चाही काम चाही काम चाही आदमी ला"

 गजल बहर 2122 2122 2122 2122 काम चाही काम चाही काम चाही आदमी ला काम करके हाथ मा तो दाम आही आदमी ला काम ले तो आदमी के मान अउ सम्मान हे जेब खाली होय संगी कोन भाही आदमी ला कोढ़िया ला कोन भाथे कोन खाथे रोज गारी दाम मिलही जब नता मा तब सुहाही आदमी ला लोभ नो हय मोह नो हय काम जरूरी हे जिये बर  साँस बर जइसे हवा हे ये जियाही आदमी ला छोड़ फोकट के धरे के लोभ अपने काम मांगव लोभ फोकट के धरे मा लोभ खाही आदमी ला काम दे दौं काम दे दौं भीख झन दौं थोरको गा ये बुता हर पोठहर मनखे बनाही आदमी ला सिख हुनर तैं काम के गा तब न पाबे काम तैं हा लाख पोथी ले बने ये काम लाही आदमी ला -रमेश चौहान

गजल- गाँव का कम हे शहर ले

गजल- गाँव का कम हे शहर ले (बहर-2122   2122) गाँव का कम हे शहर ले देख ले चारों डहर ले ऊँहा के सुविधा इँहो हे आँनलाइन के पहर ले हे गली पक्की सड़क हा तैं हा बहिरी धर बहर ले ये कलेचुप तो अलग हे शोरगुल के ओ कहर ले खेत हरियर खार हरियर बचे हे करिया जहर ले ऊँचपुर कुरिया तने हे देख के तैं हा ठहर ले -रमेश चौहान

का करबे आखर ला जान के

का करबे आखर ला जान के का करबे दुनिया पहिचान के । घर के पोथी धुर्रा खात हे, पढ़थस तैं अंग्रेजीस्तान के । मिलथे शिक्षा ले संस्कार हा, देखव हे का हिन्दूस्तान के । सपना देखे मिल जय नौकरी चिंता छोड़े निज पहिचान के । पइसा के डारा मा तैं चढ़े ले ना संदेशा खलिहान के जाती-पाती हा आरक्षण बर शादी बर देखे ना छान के । मुॅह मा आने अंतस आन हे कोने जानय करतब ज्ञान के ।

बेटी ला शिक्षा संस्कार दौ

गजल बहर-212, 212, 212 बेटी ला शिक्षा संस्कार दौ । जिनगी जीये के अधिकार दौ ।। बेटी होथे बोझा जे कहे, मन के ये सोचे ला टार दौ । दुनिया होथे जेखर गर्भ ले, अइसन नोनी ला उपहार दौ । मन भर के उड़ लय आकाश मा, ओखर डेना पांखी झार दौ । बेटी के बैरी कोने हवे, पहिचानय अइसन अंगार दौ । बैरी मानय मत ससुरार ला अतका जादा ओला प्यार दौ । टोरय मत फइका मरजाद के, अइसन बेटी ला आधार दौ । ताना बाना हर परिवार के, बाचय अइसन के संस्कार दौ ।

गजल-नेतामन जाही अब तोर गॉंव

ग़ज़ल- नेतामन जाही अब तोर गॉंव नेतामन जाही अब तोर गांव, आवत हे चुनाव अब तो कर ही ओमन चाँव-चाँव आवत हे चुनाव आनी बानी गुरतर गोठ ले बताही जात-पात ऊँचा-नीचा के खेलत ओ दांव आवत हे चुनाव कत का दिन के भूले भटके, पूछ रद्दा जाही तोर घर-घर जाही जाही ठाँव-ठाँव, आवत हे चुनाव जादूगर कस फूंके बासुरी, अऊ घूमाय हाथ देखव गा जादू पीपर के छाँव, आवत हे चुनाव जीते बर बाटे गा दारू, बाटे पइसा थोर थोर सोचव गा काबर हे तोर भाव, आवत हे चुनाव हरहा मनखे  कुछु कर सकथे, दाँव सब हारे के बाद तब तो ओ मन पर ही तोर पाँव, आवत हे चुनाव -रमेश चौहान

चार दिन के सगा घरोधिया होगे

चार दिन के सगा घरोधिया होगे । मोर घर के मन ह, परबुधिया होगे ।।1।। का जादू करंजस, अइसन होईस रे अपन समझेव, तेन बहुरूपिया होगे ।।2।। कोनो ल सुहावत नईये मोरो भाखा कइसन मोर लईका मन शहरिया होगे ।।3।। घात फबयत रहिस भाखा के लुगरा का करबे ओही लुगरा फरिया होगे ।।4।। मोर बडका बड़का रहिस महल अटारी, आज कइसन सकला के कुरिया होगे ।।5।। जेन लईका ल पढायेंव तेने कहा अड़हा लाज म मोर मुंह करिया करिया होगे ।।6।। अपन घर ल पहिचान बाबू सपना ले जाग देख निटोर के अब तो बिहनिया हो

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