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कतका झन देखे हें-

गणेश चालीसा

-दोहा-  सबले पहिले होय ना, गणपति पूजा तोर ।  परथ हवं मैं पांव गा, विनती सुन ले मोर ।।  जय गणपति गणराज जय, जय गौरी के लाल ।  बाधा मेटनहार तैं, हे प्रभु दीनदयाल ।।  चौपाई   हे गौरा-गौरी के लाला । हे प्रभू तैं दीन दयाला  सबले पहिली तोला सुमरँव । तोरे गुण ला गा के झुमरँव  तही बुद्धि के देवइया प्रभु । तही विघन के मेटइया प्रभु  तोरे महिमा दुनिया गावय । तोरे जस ला वेद सुनावय  देह रूप गुणगान बखानय । तोर पॉंव मा मुड़ी नवावय  चार हाथ तो तोर सुहावय । हाथी जइसे मुड़ हा भावय  मुड़े सूंड़ मा लड्डू खाथस । लइका मन ला खूबे भाथस  सूपा जइसे कान हलावस । सबला तैं हा अपन बनावस  चाकर माथा चंदन सोहय । एक दांत हा मन ला मोहय  मुड़ी मुकुट के साज सजे हे । हीरा-मोती घात मजे हे  भारी-भरकम पेट जनाथे । हाथ जोड़ सब देव मनाथे  तोर जनम के कथा अचंभा ।अपन देह ले गढ़ जगदम्‍बा  सुघर रूप अउ देके चोला । अपन शक्ति सब देवय तोला  कहय दुवारी पहरा देबे । कोनो आवय डंडा लेबे  गौरी तोरे हे महतारी । करत रहे जेखर रखवारी  देवन आवय तोला जांचे । तोरे ले एको ना बाचे  तोर संग सब हारत जावय । आखिर मा शिव शंकर आवय  होवन लागे घोर लड़ाई । करय सब

अरुण निगम

अरुण निगमजी भेट हे, जनम दिन उपहार । गुँथत छंद माला अपन, भेट छंद दू चार ।। नाम जइसे आपके हे, काम हमला भाय । छंद साधक छंद गुरु बन, छंद बदरा बन छाय ।। मोठ पानी धार जइसे, छंद ला बरसाय । छंद चेला घात सुख मा, मान गुरु हर्षाय ।। छंद के साध ला छंद के बात ला, छंद के नेह ला जे रचे पोठ के । बाप से बाचगे काम ओ हाथ ले, बाप के पाँव के छाप ला रोठ के ।। गाँव के प्रांत के मान ला बोहिके, रेंग के वो गढ़े हे गली मोठ के । आप ला देख के आप ला लेख के, गोठ तो हे करे प्रांत के गाेठ के ।। बादर हे साहित्य, अरुण सूरज हे ओखर । चमकत हे आकाश, छंद कारज हा चोखर ।। गाँव-गाँव मा आज, छंद के डंका बाजय । छंद छपे साहित्य, आज बहुते के साजय ।। दिन बहुरहि सिरतुन हमर, कटही करिया रात गा । भाखा छत्तीसगढ़ के, करहीं लोगन बात गा ।। कोदूराम "दलित" मोर, गुरु मन के माने । छंद के उजास देख, अउ अंतस जाने ।। अरुण निगम मोर आज, छंद कलम स्याही । जोड़ के "रमेश" हाथ, साधक बन जाही ।।

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