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कतका झन देखे हें-

भौतिकवाद के फेर मनखे मन करय ढेर

भौतिकवाद के फेर । मनखे मन करय ढेर सुख सुविधा हे अपार । मनखे मन लाचार मालिक बने विज्ञान । मनखे लगे नादान सबो काम बर मशीन । मनखे मन लगय हीन हमर गौटिया किसान । ओ बैरी ये मितान जांगर के बुता छोड़ । बइठे पालथी मोड़ बइठे बइठे ग दिन रात । हम लमाय हवन लात अइसन हे चमत्कार । देखत मरगेन यार पढ़े लिखे हवे झार । नोनी बाबू हमार जोहत हे बुता काम । कइसे के मिलय दाम लूटे बांटा हमार । ये मशीन मन ह झार मशीन हा करय काम । मनखे मन भरय दाम सुख सुविधा बरबादी । जेखर हवन हम आदि करना हे तालमेल । छोड़ सुविधा के खेल बड़े काम बर मशीन । छोट-मोट हम करीन मशीन ल करबो दास । नई रहन हम उदास

मया मा मिले भगवान

भाखा तै अपन तोल । सोच समझ फेर बोल एक गोठ करे घाव । दूसर जगाये चाव कोयली के हे नाम । कउवा हवे बदनाम करू कस्सा तैं छोड़ । मीठ ले नाता जोड़ गोठ सुन बैरी होय । संगी कहाये जोय अनचिन्हार हे गांव । काबर तैं करे कांव तैं गुरतुर बने बोल । अपने करेजा खोल रूख राई घला तोर । बोले जब मया घोर खोजे मया इंसान । मया म मिले भगवान मया बनाये महान । मया बिन तै शैतान

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