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कतका झन देखे हें-

नीति के दोहा

नीति के दोहा करना धरना कुछ नहीं, काँव-काँव चिल्लाय । खिंचे दूसर के पाँव ला, हक भर अपन जताय ।। अपन काम सहि काम नहीं, नाम जेखरे कर्म । छोड़ बात अधिकार के, काम करब हे धर्म ।। कहां कोन छोटे बड़े, सबके अपने मान । अपन हाथ के काम बिन, फोकट हे सब ज्ञान ।। जीये बर तैं काम कर, कामे बर मत जीय । पइसा ले तो हे बडे, अपन मया अउ हीय ।। ए हक अउ अधिकार मा, कोन बड़े हे देख । जान बचावब मारना, अइसन बात सरेख ।। -रमेश चौहान

नीति के दोहा

 नीति के दोहा धरम करम के सार हे, जिये मरे के नेंग । जीयत भर करले करम, नेकी रद्दा रेंग ।। करम तोर पहिचान हे, करम तोर अभिमान । जइसे करबे तैं करम, तइसे पाबे मान ।। करे बुराई आन के, अपनो अवगुण देख । धर्म जाति के आदमी, गलती अपने सरेख ।। पथरा लकड़ी चेंदरा, अउ पोथी गुरू नाम । आस्था के सब बिम्ब हे, माने से हे काम ।। आस्था टोरे आन के, डफली अपन बजाय । तोरो तो कुछु हे कमी, ओला कोन बताय ।। मनखे ला माने कहाँ, मनखे मनखे एक । ऊँच-नीच घिनहा बने, सोच धरे हस टेक ।। बदला ले के भाव ले, ओखी जाथे बाढ़ । भुले-बिसरे भूल के, ओखी झन तैं काढ़  ।। -रमेश चौहान

गणेश चालीसा

-दोहा-  सबले पहिले होय ना, गणपति पूजा तोर ।  परथ हवं मैं पांव गा, विनती सुन ले मोर ।।  जय गणपति गणराज जय, जय गौरी के लाल ।  बाधा मेटनहार तैं, हे प्रभु दीनदयाल ।।  चौपाई   हे गौरा-गौरी के लाला । हे प्रभू तैं दीन दयाला  सबले पहिली तोला सुमरँव । तोरे गुण ला गा के झुमरँव  तही बुद्धि के देवइया प्रभु । तही विघन के मेटइया प्रभु  तोरे महिमा दुनिया गावय । तोरे जस ला वेद सुनावय  देह रूप गुणगान बखानय । तोर पॉंव मा मुड़ी नवावय  चार हाथ तो तोर सुहावय । हाथी जइसे मुड़ हा भावय  मुड़े सूंड़ मा लड्डू खाथस । लइका मन ला खूबे भाथस  सूपा जइसे कान हलावस । सबला तैं हा अपन बनावस  चाकर माथा चंदन सोहय । एक दांत हा मन ला मोहय  मुड़ी मुकुट के साज सजे हे । हीरा-मोती घात मजे हे  भारी-भरकम पेट जनाथे । हाथ जोड़ सब देव मनाथे  तोर जनम के कथा अचंभा ।अपन देह ले गढ़ जगदम्‍बा  सुघर रूप अउ देके चोला । अपन शक्ति सब देवय तोला  कहय दुवारी पहरा देबे । कोनो आवय डंडा लेबे  गौरी तोरे हे महतारी । करत रहे जेखर रखवारी  देवन आवय तोला जांचे । तोरे ले एको ना बाचे  तोर संग सब हारत जावय । आखिर मा शिव शंकर आवय  होवन लागे घोर लड़ाई । करय सब

छत्तीसगढ़ी दोहे

काल रहिस आजो हवय, बात-बात मा भेद । चलनी एके एक हे, भले हवय कुछ छेद ।। मइल कहाथे हाथ के, पइसा जेखर नाम । ज्ञान लगन के खेल ले, करे हाथ हा काम ।। काम-बुता पहिचान हे, अउ जीवन के नाम । करम नाम ले धरम ये, मानवता के काम ।। छत्तीसगढ़ी दिन भर बोले, घर संगी के संग । फेर पढ़े बर तैं हर ऐला, होथस काबर जंग ।। माँ-बापे ला मार के, जेने करे बिहाव । कतका कोने हे सुखी, थोकिन करव हियाव ।। बिना निमारे दाई पाये, बिना निमारे बाप । जावर-जीयर छांट निमारे, तभो दुखी हव आप । सुरता ओखर मैंं करँव, जेन रहय ना तीर । तोर मया दिल मा बसय, काबर होय अधीर ।। नेता फूल गुलाब के, चमचा कांटा झार । बिना चढ़े तो निशयनी, पहुँचे का दरबार ।। मोरे देह कुरूप हे, कहिथे कोन कुरूप । अपन खदर के छाँव ला, कहिथे कोने धूप ।। कहिथे कोने धूप, अपन जेने ला माने । अपन सबो संस्कार, फेर घटिया वो जाने ।। अपने पुरखा गोठ, कोन रखथे मन घोरे । अपन ददा के धर्म, कोन कहिथे ये मोरे ।। केवल एक मयान अउ, दूठन तो तलवार हे । हमर नगर के हाल के, नेता खेवनहार हे ।। नेता फूल गुलाब के, चमचा कांटा झार । बिना चढ़े तो निशयनी, पहुँचे

लोकतंत्र के देवता

रोजी-रोटी के प्रश्न के, मिलय न एक जवाब । भिखमंगा तो जान के, मुफत बांटथे जनाब ।। फोकट अउ ये छूट के, चलन करय सरकार । जेला देखव तेन हा, बोहावत हे लार । सिरतुन जेन गरीब हे, जानय ना कुछु एक । जेन बने धनवान हे, मजा करत हे नेक । काबर कोनो ना कहय, येला भ्रष्टाचार । जनता अउ सरकार के, लगथे एक विचार ।। हर सरकारी योजना, मंडल के रखवार । चिंता कहां गरीब के, मरजय धारे धार । फोकट बांटे छोड़ के, केवल देवय काम । काम बुता हर हाथ मा, मनखे सुखी तमाम । लोकतंत्र के देवता, माने खुद ला आन । चढ़े चढ़ावा देख के,  बने रहय अनजान ।। -रमेशचौहान

दू-चारठन दोहा

अपन हाथ के मइल तो, नेता मन ला जान । नेता मन के खोट ला, अपने तैं हा मान ।। दोष निकालब कोखरो, सबले सस्ता काम । अपन दोष ला देखना, जग के दुश्कर काम ।। नियम-धियम कानून ला, गरीबहा बर तान । हाथ गोड़ ला बांध ले, दिखगय अब धनवान ।। दे हस सामाजिक भवन, जात-पात के नाम । वोट बैंक के छोड़ के, आही कोने काम ।। अपन मया दुलार भरे, धरे हँवव मैं रंग । तोर मया ला पाय बर, मन मा मोर उमंग ।। बोरे बासी छोड़ के, अदर-कचर तैं खात । दूध-दही छोड़ के, भठ्ठी कोती जात ।। आँखी आँखी के गोठ मा, आँखी के हे दोष । दोष करेजा के नही, तभो हरागे होश ।। मन मा कुछु जब ठानबे, तब तो होही काम । मन मा भुसभुस होय ले, मिलथे कहां मुकाम ।। सारी-सारा साढ़हू, आज सरग के धाम । कका-बड़ा परिवार ले, हमला कोने काम ।।

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