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कतका झन देखे हें-

एक रही हम मनखे जात

तोर मोर हे एके जात, दूनों हन मनखे प्राणी । नेक सोच ला अंतस राख, करबो गा हमन सियानी ।। तोर मोर ले बड़का देश, राखब हम एला एके । नो हन कोनो बड़का छोट, बुरा सोच देथन फेके ।। अगड़ी-पिछड़ी कइसन जात, अउ ये दलित आदिवासी । बांट रखे  हमरे सरकार, इही काम हे बदमासी ।। वोट बैंक पर राखे छांट, नेता के ये शैतानी । एक रही हम मनखे जात, छोड़-छाड़ अब नादानी ।। -रमेश चौहान

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