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कतका झन देखे हें-

मनखे होय म शक हे

नवगीत चाल-चलन ला तोरे देखे  मनखे होय म शक हे टंगिया के डर मा थर-थर काँपे धरती के रूख-राई कभू कान दे के सुने हवस रूख राई के करलाई टंगिया के मार सही के रूखवा के तन धक हे नदिया-नरवा रोवत रहिथे अपने मुँड़ ला ढांके मोरे कोरा सुन्ना काबर तीर-तार ला झांके मोर देह मा चिखला पाटे ओखर कुरिया झक हे मौनी बाबा जइसे पर्वत चुपे-चाप तो बइठे हे ओखर छाती कोदो दरत मनखे काबर अइठे हे फोड़ फटाका टोर रचाका ओखर छाती फक हे हवा घला हा तड़फत हावे करिया कुहरा मा फँस के कोने ओखर पीरा देखय करिया कुहरा मा धँस के पाप कोखरो भोगय कोनो ये कइसन के लक हे -रमेशकुमार सिंह चौहान

कब जाही दूरदिन

गुगल से सौजन्य झक सफेद खरगोश असन आही का कोनो दिन घेरी-घेरी साबुन ले धोवत हँव सपना कोन जनी येहू हा होही के नहीं अपना आँखी के पाँखी दउड़-दउड़ करत हे खोजबिन खरे मझनिया के सूरूज ठाढ़े-ठाढ़े सोचय ढलती जवानी मा लइकापन हा नोचय चाउर-दार के झमेला गड़ावत हे आलपिन धरती ले अगास तक उत्ती ले बुडती सपना समाये वाह रे मोरे मन कोनो मेर नई अघाये सिखौना मिठ्ठू कस रटत हवय कब जाही दूरदिन -रमेश चौहान

सब संग हमारी मितानी हे

धनिया जइसे हर हाथ म गमकत सब संग हमारी मितानी हे छत्तीस राग के संगत खैरागढ़ चिन्हारी हे महानदी शिवनाथ खारून अरपा पैरी मनीहारी हे उदभट रद्दा कांटा-खुटी भरे हमर जवानी हे देह पसीना के नदिया नरवा मन धरम-करम के गंगा जमुना चाहे सुरूज टघलय के बादर फूटय थिर-थिरावट हा हमर पहुना चाल-चलन पइसा ले बड़का अइसे गोठ सियानी हे -रमेश चौहान

नवगीत-चुनाव के बाद का बदलाही ?

चुनाव के बाद का बदलाही ? तुहला का लगथे संगी चुनाव के बाद का बदलाही डारा-पाना ले झरे रूखवा ठुड़गा कस मोरे गाँव काम-बुता के रद्दा खोजत, लइका भटके आने ठाँव लहुट के आही चूमे बर माटी का ठुड़गा उलहाही नदिया-नरवा बांझ बरोबर तरिया-परिया के छूटे पागी गली-गली गाँव-शहर मा बेजाकब्जा के लगे आगी सिरतुन कोनो हवुला-गईली लेके लगे आगी बुतवाही बघवा जइसे रहिस शिकारी अपन दमखम देखावय बंद पिंजरा मा बइठे-बइठे कइसे के अब मेछरावय धरे हाथ मा भीख के कटोरा का गरीबी छूटजाही -रमेशकुमार सिंह चौहान

मैं माटी के दीया

नवगीत मैं माटी के दीया वाह रे देवारी तिहार मनखे कस दगा देवत हस जीयत भर संग देहूँ कहिके सात वचन खाये रहेय । जब-जब आहूँ, तोर संग आहूँ कहिके मोला रद्दा देखाय रहेय कइसे कहँव तही सोच मोर अवरदा तेही लेवत हस मैं माटी के दीया अबला प्राणी का तोर बिगाड़ लेहूँ सउत दोखही रिगबिग लाइट ओखरो संताप अंतस गाड़ लेहूँ मजा करत तैं दुनिया मा अपने ढोंगा खेवत हस

मया करे हिलोर

तोर आँखी के दहरा, मया करे हिलोर बिना बोले बोलत रहिथस बिना मुँह खोले । बिना देखे देखत रहिथस आँखी मूंदे होले-होले मोर देह के छाया तैं प्राण घला तैं मोर रूप रंग ला कोने देखय तोर अंतस हे उजयारी मोरे सेती रात दिन तैं खावत रहिथस गारी बिना छांदे छंदाय हँव तोर मया के डोर मोर देह मा घाव होथे पीरा तोला जनाथे अइसन मयारू ला छोड़े देवता कोने मनाथे तोर करेजा बसरी बानी मया तोर जस चितचोर

खून पसीना मा झगरा हे

खून पसीना मा झगरा हे, परे जगत के फेर बने-बुनाये सड़क एक बर, सरपट-सरपट दउड़े । एक पैयडगरी गढ़त हवे अपन भाग ला डउडे़ ।। (डउड़ना-सवारना) केवल अधिकार एक जानय, एक करम के टेर जेन खून के जाये होथे, ओखर चस्मा हरियर । जेन पसीना ला बोहाथे, ओखर मन हा फरियर ।। एक धरे हे सोना चांदी, दूसर कासा नेर ।।

बरखा ला फोन करे हे

नवगीत मोर गांव के धनहा-डोली, बरखा ला फोन करे हे । तोर ठिठोली देखत-देखत, छाती हा मोर जरे हे ।। रोंवा-रोंवा पथरा होगे, परवत होगे काया । पानी-माटी के तन हा मोरे समझय कइसे माया धान-पान के बाढ़त बिरवा, मुरछा खाय परे हे एको लोटा पानी भेजव, मुँह म छिटा मारे बर कोरा के लइका चिहरत हे, येला पुचकारे बर अब जिनगी के भार भरोसा ऊपर तोर धरे हे फूदक-फुदक के गाही गाना, तोर दरस ला पाके घेरी-घेरी माथ नवाही तोर पाँव मा जाके कतका दिन के बिसरे हावस सुन्ना इहां परे हे ।

अरे दुख-पीरा तैं मोला का डेरुहाबे

अरे दुख पीरा, तैं  मोला का डेरूहाबे मैं  पर्वत के पथरा जइसे, ठाढ़े रहिहूँव । हाले-डोले बिना, एक जगह माढ़े रहिहूँव जब तैं  चारो कोती ले बडोरा बनके आबे अरे दुख पीरा, तैं मोला का डेरूहाबे मैं लोहा फौलादी हीरा बन जाहूँ तोर सबो ताप, चुन्दी मा सह जाहूँ जब तैं दहक-दहक के आगी-अंगरा बरसाबे अरे दुख पीरा, तैं  मोला का डेरूहाबे बन अगस्त के हाथ पसेरी अपन हाथ लमाहूँ सागर के जतका पानी चूल्लू मा पी जाहूँ, जब तैं इंद्र कस पूरा-पानी तै बरसाबे अरे दुख पीरा, तैं  मोला का डेरूहाबे

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