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कतका झन देखे हें-

छत्तीसगढ़ी बरवै

छत्तीसगढ़ी बरवै छत्तीसगढ़ी अड़बड़, गुरतुर बोल । बोलव संगी जुरमिल, अंतस खोल ।। कहाँ आन ले कमतर, हवय मितान ।। अपने बोली-बतरस, हम गठियान ।। छोड़ चोचला अब तो, बन हुशियार । अपन गोठ हा अपने, हे कुशियार ।। पर के हा पर के हे, अपन न मान । अपने भाखा पढ़-लिख, हम गुठियान ।। अंग्रेजी मा फस के, हवस गुलाम । अपने भाखा बोलत, करलव काम ।।

बरवै छंद

1. हमर गाँव के धरती, सबले पोठ । गुरतुर भाखा बोली, गुरतुर गोठ ।। 2. तुँहर पेट ला भरथे, हमर किसान । मन ले कर लौ संगी, ओखर मान ।। 3. झूठ लबारी के हे, दिन तो चार । सत के सत्ता होथे, बरस हजार ।। 4. सत के रद्दा मा तो  हे भगवान । मोर गोठ ला संगी, सिरतुन जान ।। 5.जइसन बीजा होथे, तइसन झाड़ । सोच-समझ के संगी,  रद्दा बाढ़ ।। 6. सुख-दुख हा तो होथे, जस दिन रात । एक-एक कर आथे, सिरतुन बात ।। 7. धरम करम मा बड़का, होथे कोन । करम धरम ला गढ़थे, होके मोन ।। 8. बेजाकब्जा छाये, जम्मो गाँव । तोपा गे रूख-राई, बर के छाँव ।। 9.शिक्षा मा तो चाही, अब संस्कार । तब ना तो मिटही गा, भ्रष्टाचार ।। 10 घुसखोरी ले बड़का, भ्रष्टाचार । येला छोड़े बर तो, देश लचार ।

कतका दिन ले सहिबो

जे चोरी लुका करय, अड़बड़ घात । अइसन बैरी ला अब, मारव लात ।। कतका दिन ले सहिबो, अइसन बात । कब तक बिरबिट करिया, रहिही रात ।। नई भुलाये हन हम, पठान कोट । फेर उरी मा कइसे, होगे चोट ।। बीस मार के बैरी, मरथे एक । अब तो बैरी के सब, रद्दा छेक । कठपुतली के डोरी, काखर हाथ । कोन-कोन देवत हे, उनखर साथ ।। छोलव चाचव अब तो , कचरा कांद । बैरी हा घुसरे हे, जेने मांद ।।

//मया//

मन हा मया खोजथे, चारो खूंट । पाये बिना घूटके, महुरा घूंट ।। बने मया बर तन मन, मया म रंग । मनखे जीव जीव हा, होय न तंग ।। कइसन रंग मया के, कइसन रूप । खोजत हे गरीब मन, खोजय भूप ।। देखे मया कोन हा, छूये कोन । रग रग मा हवय घुरे, बन गुड़ गोन ।। मया हवय धरती मा, जस भगवान । देखय ना तो आंखी, सुने न कान । मया हमर सुभाव हे, घुसरे साॅस । मनखे मनखे ला ये, राखे फाॅस ।।

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