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कतका झन देखे हें-

छत्तीसगढ़ी श्लोक (अनुष्टुप छंद)

1. दुनिया ला बनाये तैं, कहाये भगवान गा । दुनिया ला चलाये तैं, मनखे बदनाम गा ।। 2. पत्ता डोलय ना एको, मरजी बिन तोर तो । अपन मन के धुर्रा, उड़ावय न थोरको ।। 3. तहीं हवस काया के, सब मा एक प्राण गा । तहीं हवस माया के, अकेल्ला सुजान गा ।। 4. सबकुछ ह तो तोरे, हमर एक तो तहीं । तैं पतंग के डोरी, हम पतंग के सहीं ।। 5. सब मा तोर माया हे, तोला जउन भात हे । कहां हमर ये बेरा, कुछु अवकात हे ।। 6. मनखे मनखे माने, मनखे मनखे सबो । मनखेपन के देदे, प्रभु तैं वरदान गो ।।

धरे उदासी बोलय जमुना घाट

धरे उदासी बोलय जमुना घाट । कती हवय अब छलिया तोरे बाट ।। नाग कालिया कई-कई ठन आज । मोरे पानी मा करत हवय राज ।। कहां लुका गे बासुरीवाला मोर । कहां लुका गे तैं मोहन चितचोर ।। घाट घठौंदा मोर भटत हे जात । काबर अब तैं इहां नई तो आत ।।

ददा (भुजंगप्रयात छंद, अतुकांत)

कहां देवता हे इहां कोन जाने । न जाने दिखे ओ ह कोने प्रकारे ।। इहां देवता हा करे का बुता हे । सबो प्रश्न के तो जवाबे ददा हे ।। ददा मोरे ब्रम्हा देह मोरे बनाये । मुँहे डार कौरा ददा बिष्णु मोरे ।। शिवे होय के दोष ला मोर मांजे । ददा हा धरा के त्रिदेवा कहाये ।। कभू देख पाये न आँसू ल मोरे । मने मोर चाहे जऊने ददा दै ।। खुदे के मने ला ददा हा दबाये । जिये हे मरे हे ददा मोर सेती ।। भरे हाथ कोरा  दिने रात मोला । खुदे संग खवाये धरे हाथ कौरा ।। खुदे पीठ चढ़ाये ददा होय घोड़ा । धरे हाथ संगी बने हे ददा हा  ।।

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