सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

मधुमालती छंद लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कतका झन देखे हें-

ये गांव ए (मधुमालती छंद)

सुन गोठ ला, ये गांव के। ये देश के, आें ठांव के जे देश के, अभिमान हे । संस्कार के पहिचान हे परिवार कस, सब संग मा, हर बात मा, हर रंग मा बड़ छोट सब, हा एक हे । हर आदमी, बड़ नेक हे दुख आन के, जब देखथें । निज जान के, सब भोगथे जब देखथे, सुख आन के । तब नाचथे, ओ तान के हर रीत ला, सब जानथें । मिल संग मा, सब मानथें हर पर्व के, हर ढंग ला । रग राखथे, हर रंग ला ओ खेत मा, अउ खार मा । ओ मेढ़ मा, अउ पार मा बस काम ला, ओ जानथे । भगवान कस, तो मानथे संबंध ला, सब बांध के । अउ प्रीत ला, तो छांद के निक बात ला, सब मानथे । सब नीत ला, भल जानथे चल खेत मा, ये बेटवा । मत घूम तैं, बन लेठवा कह बाप हा, धर हाथ ला । तैं छोड़ झन, गा साथ ला ये देश के, बड़ शान हे । जेखर इहां तो मान हे ये गांव ए, ये गांव ए । ए स्वर्ग ले, निक ठांव ए

गांव

मधुमालती छंद सुन गोठ ला, ये धाम के। पहिचान हे, जे काम के हम आन के, खाये सुता । धर खांध ला, करथन बुता छोटे बड़े, देथे मया । सब आदमी,  करथे दया सुख आन के, मन मा धरे । दुख आन के, सब झन भरे काकी कका, भइया कहे । दाई बबा, सब बर सहे हर बात ला, सब मानथे । सब नीत ला, भल जानथे चल खेत मा, हँसिया धरे । हे धान मा, निंदा भरे दाई कहे, चल बेटवा ।  मत घूम तै, बन लेठवा ये देष के, बड़ शान हे । जेखर इहां तो मान हे जेला कहे, सब गांव हे । जे स्वर्ग ले निक ठांव हे

मोर दूसर ब्लॉग