सुन गोठ ला, ये गांव के। ये देश के, आें ठांव के जे देश के, अभिमान हे । संस्कार के पहिचान हे परिवार कस, सब संग मा, हर बात मा, हर रंग मा बड़ छोट सब, हा एक हे । हर आदमी, बड़ नेक हे दुख आन के, जब देखथें । निज जान के, सब भोगथे जब देखथे, सुख आन के । तब नाचथे, ओ तान के हर रीत ला, सब जानथें । मिल संग मा, सब मानथें हर पर्व के, हर ढंग ला । रग राखथे, हर रंग ला ओ खेत मा, अउ खार मा । ओ मेढ़ मा, अउ पार मा बस काम ला, ओ जानथे । भगवान कस, तो मानथे संबंध ला, सब बांध के । अउ प्रीत ला, तो छांद के निक बात ला, सब मानथे । सब नीत ला, भल जानथे चल खेत मा, ये बेटवा । मत घूम तैं, बन लेठवा कह बाप हा, धर हाथ ला । तैं छोड़ झन, गा साथ ला ये देश के, बड़ शान हे । जेखर इहां तो मान हे ये गांव ए, ये गांव ए । ए स्वर्ग ले, निक ठांव ए
पुस्तक: मानसिक शक्ति-स्वामी शिवानंद
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मानसिक शक्ति THOUGHT POWER का अविकल रूपान्तर लेखक श्री स्वामी शिवानन्द
सरस्वती
1 माह पहले