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कतका झन देखे हें-

तोर बिना रे जोही (छत्तीसगढ़ी माहिया)

चित्र गुगल से साभार लुहुर-तुहुर मन तरसे सावन के बदरी झिमिर-झिमिर जब बरसे सपना मोला भाथे खुल्ला आँखी जब मुहरन तोर समाथे खोले मन के पाँखी सपना के बादर खोजय तोला आँखी चलय देह मा  स्वासा मन मा जबतक हे तोर मिलन के आसा जोहत तोर अगोरा आँखी पथरागे तोर मया के बोरा तोर बिना रे जोही जीवन नइया के कोन जनी का होही

मया ल ओ अनवासय

मुचुर-मुचुर जब हासय ओ मोटीयारी मया ल तो अनवासय बिहनिया असन छाये चुक लाली-लाली सबके मन ला भाये चिरई कस ओ चहकय खोल अपन पांखी मन बादर मा गमकय फूल डोहड़ी फूले झुमर-झुमर डारा चारो-कोती झूले अंतस मा मया धरे आँखी गढियाये बिन बोले गोठ करे

//छत्तीसगढ़ी माहिया//

तोर मया ला पाके मोर करेजा मा धड़कन  फेरे जागे तोर बिना रे जोही सुन्ना हे अँगना जिनगी के का होही देत मिले बर किरया मन मा तैं बइठे तैं हस कहां दूरिहा जिनगी के हर दुख मा ये मन ह थिराथे तोर मया के रूख मा सपना देखय आँखी तीर म मन मोरे जावंव खोले पाँखी

मोर दूसर ब्लॉग