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कतका झन देखे हें-

दू-चारठन मुक्‍तक -नवा जनरेशन

दू-चारठन मुक्‍तक -नवा जनरेशन 1. लइका कुछ बात मानय नहीं (बहर-212 212 212) लइका कुछ बात मानय नहीं काम कुछु वो ह जानय नहीं मैं ददा का करॅंव सोच के कुछु करे बर कभू ठानय नहीं 2.तोर पूछी टेड़गा हे, मोर हा तो सोझ हे (बहर-2122 2122 21222 212) तोर पूछी टेड़गा हे, मोर हा तो सोझ हे गोठ गुरतुर मोर हे, तोर हा नुनझुर डोझ हे ये उखेनी आय तोरे, बात ला अब समझ सोच येही हा हमर बर, आज भारी बोझ हे 3.. संस्कृति हा नवा जनरेशन म मरगे टूरा मन नशा के टेशन म मरगे टूरी मन नवा के फेशन म मरगे काला का कही रे अपने ह बैरी संस्कृति हा नवा जनरेशन म मरगे

मुक्तक

नेता मन के देख खजाना,  वोटर कहय चोर हे नेता  वोटर ले पूछत हे, का ये देश तोर हे वोट दारु पइसा मा बेचस, बेचस लोभ फेर मा सोच समझ के कोनो कहि दै,  कोन हराम खोर हे बंद दारु भठ्ठी होही कहिके, महिला हमर गाँव के वोट अपन सब जुरमिल डारिन, खोजत खुशी छाँव के रेट दारु  के उल्टा  बाढ़े,  झगरा आज बाढ़  गे गोठ लबारी लबरा हावय, नेता  हमर ठाँव के बिजली बिल हाँफ कहत कहत, बिजली ये हा हाँफ  होगे करजा माफ होइस के नहीँ, बेईमानी हा माफ होगे भाग जागीस तेखर जागीस, बाकी मन हा करम छढ़हा करजा अउ ये बिल  के चक्कर, अंजोरे हा साफ होगे फोकट के हा फोकट होथे सुख ले जादा  दुख ला बोथे जेन समय मा समझ ना पावय पाछू बेरा  मुड़  धर रोथे फोकट पाये के  लालच देखे, नेता पहिली  ले हुसियार  होगे । कोरी-खइखा मुसवा  ला देखे, नेता मन ह बनबिलार होगे लालच के घानी बइला फांदे, गुड़ के भेली बनावत मन भर वोटर एकोकन गम नई पाइस, कब ठाढ़े ठाढ़े  कुसियार होगे

मुक्तक -मया

सिलाये ओठ ला कइसे खोलंव । सुखाये  टोटा ले कइसे बोलंव । धनी के सुरता के ये नदिया मा ढरे आँखी ला तो पहिली धोलंव

भेड़िया धसान

212 222 221 222 12 कोन कहिथे का कहिथे भीड़ जानय नही बुद्धि  ला अपने ओही बेर तानय नही भेड़िया जइसे धसथे आघू पाछू सबो एकझन खुद ला मनखे आज मानय नही

समय म निश्चित बदलाव आथे

हर चढ़ाव के बाद फिसलाव आथे हर बहाव के बाद ठहराव आथे बंद होय चाहे चलय ये घड़ी हा हर समय म निश्चित बदलाव आथे

//मुक्तक//

सीखव सीखव बने सीखव साँव चेत होय । आशा पैदा करव खातूहार खेत होय ।। बदरा बदरा निमारव छाँट बीज भात पानी बादर सहव संगी नदी रेत होय ।। -रमेश चौहान

रदिफ, काफिया,बहर

221/ 222/ 212/ 2222 आखिर म घेरी-बेरी जउन आखर आथे । ओ हा गजल मुक्तक के रदिफ तो बन जाथे । तुक काफिया हा होथे रदिफ के आघू मा, एके असन मात्रा क्रम बहर बन इतराथे  । -रमेश चौहान

हमर इज्जत ला लूटत हवे

122 222 212 कुकुर माकर कस भूकत हवे । शिकारी कस तो टूटत हवे ।। बने छैला टूरा मन इहां हमर इज्जत ला लूटत हवे ।

मुक्तक

मुक्तक 122 222, 221 121 2 सुते मनखे ला तै, झकझोर उठाय हस । गुलामी के भिथिया, तैं टोर गिराय हस ।। उमा सुत लंबोदर, वो देश ल देख तो । भरे बैरी मन हे, तैं आज भुलाय हस । -रमेश चौहान

मुक्तक

मुक्तक 222 212, 211 2221 आखर के देवता, ज्ञान भरव महराज । बाधा के हरइया, कष्ट हरव महराज ।। जग के गण राज तैं, राख हमर गा मान । हम सब तोरे शरण, हाथ धरव महराज ।। -रमेश चौहान

मुक्तक

डगर मा पांव अउ मंजिल मा आँखी होवय । सरग ला पाय बर तोरे मन पाँखी होवय ।। कले चुप हाथ धर के बइठे मा का होही । बुता अउ काम हा तुहरे अब साँखी होवय ।।

कोन बड़े बात हे

1- हरियर हरियर दिखथे दुनिया अपन चश्मा के रंग ले । लाली पीला घलो हवय बाबू देख तो दंग दंग ले । कर्तव्य हा शेष नाग कस बोहे हे ये धरती ला, काबर अपन बोझा घालहे राखे आने के संग ले ।। 2- मन के हारे ले, थिराय बर छांव चाही । मन ला कर पोठ, जीते बर दांव चाही ।। बैरी कहू सुरूज बनय त, तैं हनुमान बन, हर हालत मा अपन देश अउ गांव चाही ।। 3- पथरा ले रस्सी टूटय कोन बड़े बात हे । पथरा मारय टोरय, येही ओखर जात हे ।। रस्सी के आय जाय ले, पथरा मा निशान हे, रस्सी बर एखर ले अउ कोन बड़े बात हे ।

दो मुक्तक

1- एक बेटा होके दाई बर शेर होगे । बहिनी बर कइसे तै ह गेर होगे ।। एक अनचिनहार नोनी ला पाये तैं बघवा होके आज ढेर होगे ।। 2- ददा दाई के खूब सुने भाई भौजी ला घला गुने सास ससुरार ला पाये काबर अपन माथा धुने ।। -रमेश चौहान

आतंकी के धरम कहां होथे

मुक्तक बहर 222 212 1222 आतंकी के धरम कहां होथे । बहिया मन के करम कहां होथे ।। गोली मारव कुकर ल जब चाबय अइसन बेरा शरम कहां होथे ।। -रमेश चौहान

मनखे के बांटा

कांटा मा पांव परय के पांव मा परय कांटा चाहे तो डांट परय के गाल मा परय चांटा पथरा लोहा म करेजा के धधक कहां होथे पीरा अउ आंसु परय मनखे के रात दिन बांटा ।

दूसर के दरद मा रोना रोना होथे

आगी मा तिपे ले सोना सोना होथे । मन के सब मइल ला धोना धोना होथे । अपने के दरद मा जम्मा मनखे रोथे । दूसर के दरद मा रोना रोना होथे ।

बैरी ला हम मारबो

फूॅक ले उड़ा जई अइसन धुररा नो हन । जाड़ मा जड़ा जई अइसन मुररा नो हन ।। हाथ मा कफन धरे बैरी ला हम मारबो । मौत ले डरा जई अइसन सुररा नो हन ।।

अपन भाखा

बासी मा मही ला घोर के तो देख । रोटी ला दूध मा बोर के तो देख । पावन हो जाही ना कंठ हा तो तोरे, भाखा ला अपन तैं बोल के तो देख ।।

देवारी

चिरई चिरगुन कस चहकय लइका । पाके आमा कस गमकय लइका । आगे    आगे      देवारी       आगे, कहि के बिजली कस दमकय लइका । खोर अंगना मा रंगोली पुरय लइका । ले सखी सहेली देखे बर जुरय लइका । रंग रंग के हे रंगोली सुघर अतका, देख फूल कस भवरा बन घुरय लइका ।। दीया म बाती ला बोरय लइका । बाती म आगी ला जोरय लइका ।। देवारी के अंजोरे बगरावय, देखव फटाका ला फोरय लइका । खोरे मा जब सिगबिग सिगबिग आगे लइका । चंदैनी कस रिगबिग रिगबिग छागे लइका । ऐती ओती चारो कोती कूदत नाचत, मुचमुच हासत सौंहे देवारी लागे लइका ।

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