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कतका झन देखे हें-

काम चाही

काम चाही काम चाही, काम चाही काम । काम बिन बेकार हन हम, देह हे बस नाम ।। वाह रे सरकार तैं हा, तोर कइसन काम । काम छोड़े बांट सबकुछ, फोकटे के नाम ।। -रमेश चौहान

जांघ अपने काट के हम, बनावत हन साख

धर्म अउ संस्कार मा तो, करे शंका आज । आंग्ल शिक्षा नीति पाले, ओखरे ये राज ।। देख शिक्षा नीति अइसन, आय बड़का रोग । दासता हे आज जिंदा, देश भोगत भोग ।। देख कतका देश हावे, विश्व मा घनघोर । जेन कहिथे जांघ ठोके, धर्म आवय मोर ।। लाख मुस्लिम देश हावय, लाख क्रिश्चन देश । धर्म शिक्षा नीति मानय, राख अपने वेष ।। हिन्द हिन्दू धर्म बर तो, लाख पूछत प्रश्न । आन शिक्षा नीति देखव, मनावत हे जश्न ।। आज हिन्दू पूत होके, प्रश्न करके लाख । जांघ अपने काट के हम, बनावत हन साख ।।

भाव

भाव में दुख भाव मेॆं सुख, भाव में भगवान । भाव  जग व्यवहार से ही, संत है इंसान । भाव चेतन और जड़ में,  भाव से ही धर्म । भाव तन मन ओढ़ कर ही, करें अपना कर्म ।।

नानपन ले काम करव

आज करबे काल पाबे, जानथे सब कोय । डोलथे जब हाथ गोड़े, जिंदगी तब होय ।। काम सुग्घर दाम सुग्घर, मांग लौ दमदार । काम घिनहा दाम घिनहा, हाथ धर मन मार ।। डोकरापन पोठ होथे, ढोय पहिली काम । नानपन ले काम करके, पोठ राखे चाम ।। नानपन मा जेन मनखे, लात राखे तान । भोगही ओ काल जूहर, बात पक्का मान ।। नानपन ले काम कर लौ, देह होही पोठ । आज के ये तोर सुख मा, काल दिखही खोट ।। कान अपने खोल सुन लौ, आज दाई बाप । खेल खेलय तोर लइका, मेहनत ला नाप ।। देह बर तो काम जरुरी, बात पक्का मान । खेल हा तो काम ओखर, गोठ सिरतुन जान ।। तोर पढ़ई काम भर ले, बुद्धि होही पोठ । काम बिन ये देह तोरे, होहि कइसे रोठ ।। खेल मन भर नानपन मा, खोर अँगना झाक । रात दिन तैं फोर आँखी, स्क्रीन ला मत ताक ।। नानपन ले जेन जानय, होय कइसे काम । झेल पीरा आज ओ तो, काल करथे नाम ।। -रमेश चौहान

सहे अत्याचार (रूपमाला छंद)

शत्रु मारे देश के तैं, लांघ सीमा पार । हमर ताकत हवय कतका, जानगे संसार ।। नोटबंदी झेल जनता, खड़े रहिगे संग । देश बर हे मया कतका, शत्रु देखे दंग ।। हमर सैनिक हमर धरती, हमर ये पहिचान । मान अउ सम्मान इंखर, हमर तैं हा जान । झेल पथरा शत्रु के तै, सहे अत्याचार । हमर सैनिक मार खावय, बने तै लाचार ।। फैसला तैं खूब लेथस, मौन काबर आज । सहत हस अपमान काबर, हवय तोरे राज ।।

पढ़े काबर चार आखर,

रूपमाला छंद पढ़े काबर चार आखर, इहां सोचे कोन । डालडा के बने गहना, होय चांदी सोन ।। पेट पूजा करे भर हे, बने ज्ञानी पोठ । सबो पढ़ लिख नई जाने, गाँव के कुछु गोठ ।। मोर लइका मोर बीबी, मोर ये घर द्वार । छोड़ दाई ददा भाई, करे हे अत्याचार ।। सोंध माटी नई जाने, डगर के चिखला देख । पढ़े अइसन दिखे ओला, गांव मा मिन मेख । ज्ञान दीया कहाथे जब, कहां हे अंजोर । नौकरी बर लगे लाइन, अपन गठरी जोर ।।

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