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कतका झन देखे हें-

जाके बेटा खेत डहर

जाके बेटा खेत डहर, कांटा ला सकेल । आवत हावे मानसून, खातू ला ढकेल ।। बोना हावय धान-पान, खेत-खार निढाल । बीज-भात ला साफ करत, नांगर ला निकाल ।।

लोकतंत्र मा छूट हवे

आजादी हे बोलब के, तभे फूटत बोल । सहिष्णुता के ढाल धऱे, बजावत हस ढोल ।। देश तोरे राज तोरे, अपन अक्कल खोल । बैरी कोन काखर हवे, तहुँ थोकिन टटोल ।। जतका कर सकस कर बने, सत्ता के विरोध । लोकतंत्र मा छूट हवे, कोनो डहर ओध ।। दाई असन हवय धरती, देश ला मत बाँट । आनी-बानी बक बक के, माथा ल झन चाट ।।

तोर गुस्सा

तोर गुस्सा तोर आगी, करय तोला खाक । तोर मन हा बरत रहिही, देह होही राख ।। सोच संगी फायदा का, आन के अउ तोर । हाथ दूनो रोज उलचव,  मया मन मा जोर ।। -रमेश चौहान

बिहनिया के राम-राम

आज के बिहनिया सुग्घर, कहत हंव जय राम । बने तन मन रहय तोरे, बने तोरे काम । मया तोला पठोवत हंव, अपन गोठ म घोर । मया मोला घला चाही,  संगवारी तोर ।

रद्दा जोहत हे तोरे

शोभान-सिंहिका गाड़ी बने चलावव गा, चारो डहर देख । डेरी बाजू रहे रहव, छोड़व मीन-मेख ।। दारु मंद पीयव मत तुम, हेंडिल धरे हाथ । ओवरटेक करव मत गा, तुम कोखरो साथ ।। जीवन अनमोल हे, येखर समझ मोल । हाथ-पाँव तब सड़क थरव, मन मा नाप-तोल । फिरना हे अपने घर मा, चारो खूट घूम । रद्दा जोहत हे तोरे, लइका करत धूम । -रमेश चौहान

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