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संदेश

कतका झन देखे हें-

मोरो मन हरियर

तोर मया के छांवे म, गोरी मोरो मन हे हरियर । चंदा कस तोर बरन, देख मोरो मन हे हरियर ।। करिया हिरा कस चुन्दी, पाटी पारे लगाये फुन्दी, तोर खोपा के बगिया म, भवरा कस मन हे हरियर । तरिया म फूले कमल, ओइसने हे तोर नयन, देख कमल सरोवर ल, गावय मोर मन ये हरियर । ओट तोर गुलाब के पंखुडी, करत हे महक झड़ी, ये गुलागी महक म, झुमय मोरो मन हरियर । माथे के टिकली, टिमटिमात हे मोर अंतस भितरी, ऐखर ऐ अंजोर म, दमकत हे मोर मन हरियर । कभू कान म झुमका, कभू येमा डोलय बाली, विश्मामित्र के मेनका कस, डोलावय मोरो मन हरियर । कनिहा के करधनिया, अऊ गोडे के पैयजनिया, बोलय छुम छुम छनानना, नाचय गावय मोर मन हरियर । कोयल कस गुतुर बोली, अऊ गुतुर गुतुर तोर ठिठोली, बोली अऊ ठिठोली के, समुदर म गोता खावय मोर मन हरियर । तै कही सकथस मोला कुछु कुछु, तै तो मोरे सबे कुछु, तोर बिना नई जानव काहीं कुछु मोर मन हरियर । ..........‘‘रमेश‘‘.........................

सपना म तैं

देखत हव, कब ले गोरी तोला, आंखी पिरागे । काबर कहे, आवत हव मै ह, ले मुरझागे । हाथ के फूल, संजोय रहेव मै, बिहनीया के । होगे रे सांझ, मन मीत आबे रे, सपना म तैं । ..‘‘रमेश‘‘....

अब का देखव

मोर मन ल इही ह भाये हे कोनो परी ल अब का देखव । ओखर सिरत ले मन गदगदाये हे सुरत ल अब का देखव ।। जब ले जाने हव ओला अपन सुरता कहां हे मोला .. मोर अंतस म होही समाय हे मुहाटी ल अब का देखव ।। जइसे मोर छांव मोर संग रेंगथे सुटुर सुटुर......... मोर मन करथे धुकुर धुकुर ओखर मन ल अब का देखव ।। चंदा के संगे संग चांदनी चंदा ल देखे चकोर.... पतंगा के दिया संग जरई अपन जरई ल अब का देखव ।। मोर मया ओखर बर ओखर मया मोर बर. मया घुर गे जस शक्कर म पानी अपन पानी ल अब का देखव ।। ............‘‘रमेश‘‘.......................

मीठ -मीठ सुरता

ये मीठ -मीठ सुरता, नई बनतये कुछु कहासी रे । कभू कभू आथे मोला हासी, कभू आथे रोवासी रे ।। दाई के कोरा, गोरस पियेव अचरा के ओरा । कइसन  अब मोला आवत हे खिलखिलासी रे ।। दाई  के मया, पाये पाये खेलाय खवाय । अपन हाथ ले बोरे अऊ बासी रे ।। दाई ल छोड़के, नई भाइस मोला कहूं जवासी रे । लगत रहिस येही मथुरा अऊ येही काषी रे ।। ददा के अंगरी, धर के रेंगेंव जस ठेंगड़ी । गिरत अपटत देख ददा के छुटे हासी रे ।। ददा कभू बनय घोड़ा-घोड़ी , कभू करय हसी ठिठोली । कभू कभू संग म खेलय भौरा बाटी रे ।। कभू कभू ददा खिसयावय कभू दाई देवय गारी रे । करेव गलती अब सुरता म आथे रोवासी रे ।। निगोटिया संगी, संग चलय जस पवन सतरंगी । पानी संग पानी बन खेलेन माटी संग माटी रे ।। आनी बानी के खेल खेलेन कभू बने बने त कभू कभू झगरेन । कभू बोलन कभू कभू अनबोलना रह करेन ठिठोली रे ।। ओ लइकापन के सुरता अब तो मोला आथे मिठ मिठ हासी रे । गय जमाना लउटय नही सोच के आवत हे रोवासी रे ।। .-रमेशकुमार सिंह चैहान

छत्तीसगढ़ी हाइकु

अरे पगली, मै होगेव पगला, तोर मया म । तोर सुरता, निंद भूख हरागे, मया म तोर । रात के चंदा, चांदनी ल देखव, एकटक रे । कब होही रे, मया संग मिलाप , गुनत हव । मया नई हे, गोरी के अंतस म, सुर्रत हव । एक नजर, देख तो मोरो कोती, मया के संगी । ....‘रमेश‘...

मिलईया हे मोला पगार

गुतुर गुतुर भाखा बोलय, अंतस म मधुरस घोलय, मोर सुवारी करे सिंगार, मिलईया हे मोला पगार । कईसे लगहूं जी कहू होही, कान म खिनवा, कनिहा म करधनिया, अऊ गर म होही सोनहा हार, मिलईया हे मोला पगार । फलनिया ह बनवाय हे, मोरो मन ललचाय हे, पूरा कर दौ ना जी मोरो साध, होही तुहार बड़ उपकार, मिलईया हे मोला पगार । ददा गो कापी पेन सिरागे हे, स्कूल के फिस ह आगे हे, लइकामन करत हे पुकार, मिलईया हे मोला पगार । मोर स्कूल बस्ता ह चिरागे हे, पेंट कुरता ह जुन्नागे हे, लइकामन करत हे मनुहार, मिलईया हे मोला पगार । रंधनही कुरीया ह चिल्लावत हे, घेरी घेरी चेतावत हे, सिरागे हे चाऊर दार, मिलईया हे मोला पगार । पाछू महिना बड़ सधायेंव, अपन बर मोटर साइकिल ले आयेंव, दुवारी म खड़े हे लगवार, मिलईया हे मोला पगार । का करव कइसे करव कहिके गुनत हव, अपने माथा ल अपने हाथ म धुनत हव, काबर एतके तनखा देते सरकार, मिलईया हे मोला पगार । .......‘‘रमेश‘‘...........

अब कहां लुकागे

मया प्रित के बोली, तोर हसी अऊ ठिठोली, अब कहां लुकागे......... तोला देखे के बड़ साध, ओधा बेधा ले रहंव मै ताक, ओ तकई, अब कहां लुकागे .......... कनेखी आंखी ले तोर देखई, संग म सुघ्घर तोर मुच मुचई, ओ मुच मुचई, अब कहां लुकागे ........ ओ छुप छुप के मिलई मया मा  खिलखिलई, ओ खिलखिलई अब कहां लुकागे......... तोर संग जीना अऊ संग मरना, तोर संग रेंगना अऊ संग घुमना, ओ घुमई , अब कहां लुकागे............ तोर रूठना मोर मनाना ओ मनई अब कहां लुकागे......... बिहाव करे हन के पाप का ये होगे हे अभिषाप, हाय रे रात दिन के कमई  ओ दिन अब कहां लुकागे....... लइका मन गे हे बाढ़, चिंता मुड़ी म गे हे माढ लइकामन संग खेलई, अब कहां लुकागे.................. लइका मन ल पढ़ाना हे लिखाना हे, जिनगी ल जिये बेर कुछु बनाना हे, हमर बनई, अब कहां लुकागे ............... जिये बर जियत हन, मया घला करत हन चिंता म चिचीयावत हन, अपन गीत कहां गावत हन, हमर मया प्रित के गीत, ओ गुनगुनई, अब कहां लुकागे.......

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