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संदेश

कतका झन देखे हें-

भाखा गुरतुर बोल तै

भाखा गुरतुर बोल तै, जेन सबो ल सुहाय । छत्तीसगढ़ी मन भरे, भाव बने फरिआय ।। भाव बने फरिआय, लगय हित-मीत समागे । बगरावव संसार, गीत तै सुघ्घर गाके । झन गावव अश्लील, बेच के तै तो पागा । अपन मान सम्मान, ददा दाई ये भाखा ।।

फागुनवा

फागुनवा तन-मन चढ़य, जभे सुनावय फाग । कोयलिया कुहके तभे, आमा मउरे बाग ।। आमा मउरे बाग, सजे हे दुल्हा जइसे । गमके हे अंगूर, बाचबे तै हर कइसे ।। ढोल नगाड़ा ताश, जगावय गा जोश नवा । लइका संग सियान, मनावय गा फागुनवा ।। -रमेश चौहान

राजा मुन्ना

मुन्ना राजा मोर तै, कान्हा कृष्णा आस । खिल खिल ये तोरे हसी, सबला लेथे फास ।। सबला लेथे फास,  पाय पोटारे बर गा । हला हला के हाथ, बलाथस अपन डहर गा ।। देख ऐला ‘रमेश‘, बात थोकिन तै गुन ना। बालक रूप भगवान, आय गा राजा मुन्ना ।।

कविता

कविता तो कलपना दिल के, मन के गुंथे भाव । नो हय निच्चट कल्पना, आवय सुख दुख के घाव ।। आवय सुख दुख के घाव, जेन दुनिया ले आथे । गुरतुर नुनछुर स्वाद, सबो झन ला जनवाथे ।। अनुभव करे ‘रमेष‘, लिखे करू कस्सा सुभिता । आखर आखर जोर, गढ़े जाथे कविता ।।

छत्तीसगढ़ी

छत्तीसगढ़ी हे हमर, भाखा अउ पहिचान । छोड़व जी हिन भावना, करलव गरब गुमान ।। करलव गरब गुमान, राज भाषा होगे हे । देखव आंखी खोल, उठे के बेरा होगे हे ।। अड़बड़ गुरतुर गोठ, मया के रद्दा ल गढ़ी । बोलव दिल ला खोल, अपन ये छत्तीसगढ़ी ।।

चंदा बानी चेहरा

चंदा बानी चेहरा, कोयली असन बोल । जादू आंखी मा भरे, काया हे अनमोल ।। काया हे अनमोल, मया ले सुघ्घर पागे । कामदेव के बाण, हृदय मा जेखर लागे । बाचे कहां ‘रमेश‘, मया के अइसन फंदा । अपने ला बिसराय, देख पुन्नी के चंदा ।।

मोर जिनगी हे तोरे

मोर जिनगी हे तोरे (कुण्‍डलियां)  तोरे गुरतुर बोल ले, होते मोरे भोर ।। हासी मुच मुच तोर ओ, टानिक आवय मोर । टानिक आवय मोर, मया हर तोरे गोरी । जब ले होय बिहाव, मनावत हन हम होरी ।। रखबे तै हर ध्यान, मया झन होवय थोरे । सिरतुन के हे बात, मोर जिनगी हे तोरे ।।

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