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संदेश

कतका झन देखे हें-

दिल गे मोरे हार

कनिहा डोले तोर ओ, जइसे पीपर पान । जिंस पेंट तोला फभत, जइसे कंसा धान ।। जइसे कंसा धान, पियर काया तोरे हे । मुॅहरंगी हा तोर, सुरूज ला मुॅह मा बोरे हे ।। तोर तन के रूआब, लगय मोला जस धनिया । दिल गे मोरे हार, देख के तोरे कनिहा ।।

रखे कहां कुछु देह के

रखे कहां कुछु देह के, कब काहीं हो जाय । ना जाने कब देह मा, रोग राई समाय । रोग राई समाय, नाम कोनो रखाय के ।। सड़क म कतका भीड़, रखे कबतक बचाय के ।। कोनो देही ठोक, मंदहा मन तो घात दिखे । बचे भला रे कोन, जीव अपने देह रखे ।।

बाबू पैरी तोर

झुन झुन बाजय गोड़ मा, बाबू पैरी तोर । ठुमक ठुमक के रेंगना, दिल ला भाते मोर । दिल ला भाते मोर, तोर गिरना अउ उठना । रेंगइ माड़ी भार, रेंग के खुल-खुल हॅसना ।। बलि-बलि जाय ‘रमेष‘, हॅंसी ला तोरे सुन सुन । देखय तोला जेन, तेन हर बोलय झुन झुन ।।

आखर

आखर के दू भेद हे, स्वर व्यंजन हे नाम । ‘अ‘, ‘इ‘, ‘उ‘ कहाथे हास्व स्वर, बाकी ल गुरू जान । बाकी ल गुरू जान, भार लघु के हे दुगना । व्यंजन हास्व कहाय, लगे जेमा लघु स्वर ना ।। व्यंजन गुरू कहाय, गुरू स्वर ले हो साचर । आघू के ला गुरू, बनाथे आधा आखर ।।

जमाना हा लगय नवा

नवा जमाना आय हे, सोच नवा हे लाय । सुने बात ला छोड़ के, खाय तभे पतिआय । खाय तभे पतिआय, फेर रस ला नइ जाने । करू-कस्सा के लाभ, बिमरहा नइ तो माने ।। किरवा परथे मीठ, बात अब ले हवय जवा । अपन सुवारथ काज, जमाना हा लगय नवा।।

बोलबो छत्तीसगढ़ी

छत्तीसगढ़ी हा हवय, लोक भासा हमार । परबुधिया अउ सेखिया, कहे हमला गवार । कहे हमला गवार, उतर हमरे कोरा गा। दू आखर ला जान, होय पर के छोरा गा ।। बेर्रा मन ला छोड़, अपन भासा हमन गढ़ी । छाती हम तो तान, बोलबो छत्तीसगढ़ी ।।

तरिया मा किरकेट

लइका मन खेलत हवय, तरिया मा किरकेट । जोहत पनिहारिन मन ल, कुॅआ खोये विकेट ।। कुॅआ खोये विकेट, बावली झिरिया के बादे । हैण्ड़ पंप के बाद, बोर मोटर हा आगे ।। चैका छक्का मार, करत हे पानी खइता । पाछू के तकलीफ, कहां जाने हे लइका ।।

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