सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

कतका झन देखे हें-

फोकट फोकट मा

फोकट फोकट मा धरे, कौड़ी वाले लाख । छूट-लूट अनुदान बर, करे करेजा राख ।। करे करेजा राख, आत्म सम्मान भुलाये । मनखे खासो-आम, ठेकवा ला देखाये । अपात्र होगे पात्र, पात्र के होगे चौपट । कइसन चलत रिवाज, चाहथे सब तो फोकट।।

जुन्ना तोरे गोठ ला

जुन्ना तोरे गोठ ला, बांधे रह गठियाय । हमला का करना हवय, जेन हमला बताय ।। जेन हमला बताय, हवय ओ कतका मूरख । कोनो तो ना भाय, तभो देखावय सूरत ।। नवा जमाना देख, होय सुख सुविधा दून्ना । धरे रहिस तकलीफ, जमाना तोरे जुन्ना ।। -रमेेश चौेहान

गोठ करे हे पोठ रे

गोठ करे हे पोठ रे, संत कबीरा दास । आंखी रहिके अंधरा, देखे कहां उजास ।। देखे कहां उजास, अंधियारे हा भाथे । आंखी कान मूंद, जेन अपने ला गाथे ।। देखय ओ संसार, जेन जग छोड़ खड़े हे । परे जगत के फेर, आत्म के गोठ करे हे ।। -रमेश चौहान

माटी लोंदा आदमी

माटी लोंदा आदमी, गुरू हे जस कुम्हार । करसी मरकी जे मढ़य, ठोक-ठठा सम्हार ।। ठोक-ठठा सम्हार, गढ़य सुनार कस गहना । गुरू हे जस भगवान, संत मन के हे कहना ।। गोहार करे ‘रमेश‘, हवय गुरू के परिपाटी । रउंद ही गुरू पांव, होय मा कच्चा माटी ।।

आजा बादर झूम के

आजा बादर झूम के, हवय अगोरा तोर । खेत खार अउ अंगना, मया बंधना छोर ।। मया बंधना छोर, बरस रद-रद झर-झर के । धरती प्यासे घात, जुड़ावय ओ जी भर के ।। नाचही गा ‘रमेष‘, बजा के अपने बाजा । देखत हे सब निटोर, झूम केअब तै आजा ।

समय बावत के होगे

होगे किसान व्यस्त अब, असाढ़ आवत देख । कांटा-खूटी चतवार अउ, खातू-माटी फेक । खातू-माटी फेक, खेत ला बने बनावय । टपकत पानी देख, मने मन मा हरसावय ।। ‘ पागा बांध रमेश‘, बहुत अब तक तै सोगे । हवय करे बर काम, समय बावत के होगे ।।

पूछथें दाई माई

खाय हवस का साग तै, पूछ करय शुरूवात । आ हमरो घर बइठ लव, कहां तुमन या जात ।। कहां तुमन या जात, पूछथें दाई माई । आनी बानी गोठ, फेर फूटय जस लाई ।। घात खुले ये हार, नवा मंगाय हवस का । बने हे देह पान, जड़ी-बुटि खाय हवस का ।।

मोर दूसर ब्लॉग