माटी दीया हा कहय, काखर मेरा जांव । कोनो फटकय ना इहां, काला दरद बतांव । खाथें मोरे अन्न ला, सोथे मोरे छांव । मोरे कोरा छोड़ के, कहां करे हे ठांव ।। दीया बाती हा हवय, जस पानी मा मीन । रिगबिग ले बिजली बरे, फुटे फटाका चीन ।। पढ़े लिखे लइका इहां, बइठे आलू छील । काम करय ना चीन कस, देखत रहिथे झील ।। दर दर मांगय नौकरी, कागज ला देखाय । काम बुता जानय नही, कोने हुनर बताय ।। स्वाभिमान हा कति सुते, देश प्रेम बिसराय । माटी दीया बार लव, अपने मान जगाय ।।
पुस्तक: मानसिक शक्ति-स्वामी शिवानंद
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मानसिक शक्ति THOUGHT POWER का अविकल रूपान्तर लेखक श्री स्वामी शिवानन्द
सरस्वती
2 माह पहले