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संदेश

कतका झन देखे हें-

दूसर के दरद मा रोना रोना होथे

आगी मा तिपे ले सोना सोना होथे । मन के सब मइल ला धोना धोना होथे । अपने के दरद मा जम्मा मनखे रोथे । दूसर के दरद मा रोना रोना होथे ।

अपन ददा के आज तै

तोरे सेती जेन हा, सहे रात दिन घाम । अपन ददा के आज तै, रखे डोकरा नाम । जर मा पानी छींच के, तोला झाड़ बनाय । पथरा मा मूरत असन, तोला जेन सजाय ।। आज ओखरे जीनगी, काबर हवे हराम । अपन ददा के आज तै... बर पीपर के छांव बन, देखे घर परिवार । खून छींच के आज तक, रखे जेन सम्हार । काम बुता ले ओखरे, सकला गे हे चाम ।। अपन ददा के आज तै... घूम घूम के खोज ले, ददे हे भगवान । ब्रम्हा कस ओ रचे, पाले बिष्णु समान ।। अइसन पालन हार के, कर सेवा के काम । अपन ददा के आज तै...

बैरी ला हम मारबो

फूॅक ले उड़ा जई अइसन धुररा नो हन । जाड़ मा जड़ा जई अइसन मुररा नो हन ।। हाथ मा कफन धरे बैरी ला हम मारबो । मौत ले डरा जई अइसन सुररा नो हन ।।

पढई ले का फायदा

पढई ले का फायदा, अउ का हे नुकसान । तउल तराजू देख ले, अनपढ अउ विद्वान ।। कुवर गोफरी कस कुवर, पढ़ के मनखे होय । आखर आखर बूॅद ले, अपन केरवछ धोय । विद्या ले आथे विनय, विनय बनाथे योग्य । योग्य बने धन आय हे, धन ले धरमी भोग्य । सही गलत के फैसला, करथे सोच विचार । दुनिया-दारी जान के, करथे सद् व्यवहार ।। शिक्षा के ये लक्ष्य हा, लगथे आज गवाय । पाये बर तो नौकरी, लोगन सबो पढ़ाय ।। जेला देखव तेन हा, कहय एक ठन बात । पढ़े लिखे मा काम के, मिलथे भल सौगात ।। काबर कोनो ना कहय, पाये बर संस्कार । नीत-रीत ला जान लय, लइका पढ़े हमार । पढ़े लिखे मनखे इहां, बिसराये संस्कार । अंग्रेजी के चोचला, चारो कोती झार । हिरदय मा धर हाथ तै, एक बार तो सोच । चलन घूस के देश मा, कइसे आये नोच । कोन अंगूठा छाप हा, काला दे हे घूस । पढ़े-लिखे बाबू मनन, पढ-लिख ले हे चूस । अपने दाई अउ ददा, करे निकाला कोन । पढ़े-लिखे ले पूछ ले, कइसे साधे मोन ।। खेत खार ला बेच के, जेला ददा पढ़ाय । साहब होके बेटवा, ओही ला भूलाय ।। पढ़े लिखे के चोचला, अपन रौब देखाय । पार्टी-सार्टी ओ करय, दारू-मंद बोहाय ।। पढ़े ल

धनी मया हा तोर

तन मन मा तो छाय हे, धनी मया हा तोर । मोर हाल ला देख के, मचे गांव मा शोर ।। महर महर करथे मया, चारो कोती छाय  । मोरे मन के हाल हा, छूपय नही छुपाय।। तोर मया बिन रात हे, होत नई हे भोर । तन मन मा ... आंखी खोजे रात दिन, चारो डहर निहार । मन फंसे आठो पहर, तोरे करत बिचार ।। निंद भूख लागय नही, आथे सपना घोर । तन मन मा ... ये दुनिया के बंधना, लागे हे जंजीर । तोर बिना बेकार हे, जिनगी मोरे हीर ।। तोर मया के छांव बर, रेंगव कोरे कोर । तन मन मा ...

दरुहा

का निरधन धनवान का, दारू पिये सब ठाठ । का कुरिया अउ का महल, का रद्दा अउ बाट ।। का सुख अउ दुख के बखत, का दिन अउ का रात । जेती पावव देख लव, बइठे चार जमात ।। दारु पिये ले आदमी, दरुहा नई कहाय । दारु पिये इंसान ला, तब दरुहा बन जाय ।। दरुहा होथे कुकुर अस, लहके जीभ लमाय । दारु पाय बर जेन हा, पूछी अपन हलाय ।। दारु पिये ओ कोलिहा, बघवा कस नरिआय । बघवा ले बधिया बनय, लद्दी मा धस जाय ।।

बिना काम के आदमी

लात परे जब पीठ मा, पीरा कमे जनाय । लात पेट मा जब परय, पीरा सहे न जाय ।। काम बुता ले हे बने, पूरा घर परिवार । काम छुटे मा हे लगे, अपने तन हा भार ।। लगे काम ला कोखरो, काबर तैं छोड़ाय । मारे बर तैं मार ले, अब कोने जीआय ।। काम बुता के नाम हा, जीवन इहां कहाय । बिना काम के आदमी, जीयत मा मर जाय ।।

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