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संदेश

कतका झन देखे हें-

डहत सुवारी मोर हे..

डहत सुवारी मोर हे, मइके मा तो जाय । पांव परे मा गा घलो, ससुरे ना तो आय ।। मोर गांव मा पूछ लव, सीधा साधा आॅव । दारू मंद ला छोड़ दे, मैं ना पान चबाॅव ।। अपन काम ले काम हा, मोला बने सुहाय । डहत सुवारी मोर हे.. काबर करे बिहाव हे, जाने ना भगवान । कतको बेरा देख ले, मारे केवल शान ।। देखय ना बोलय कभू, मोला मया लगाय । डहत सुवारी मोर हे .. केवल एके मांग हे, दाई ददा ल छोड़ । मोरे मइके मा चलव, ऐती नाता तोड़ । देख लेंव मैं जाय के, तभो ना तो भाय । डहत सुवारी मोर हे.. पढ़े लिखे के साध मा, माथा अपन ठठाॅव । धर डंडा कानून के, करे ओ काॅव-काॅव । कानून हवय अंधरा, कोन भला समझाय । डहत सुवारी मोर हे.. दुनिया दारी मा अभे, मोर लगे ना चेत । मरना जीना काय हे, जस नदिया के रेत ।। अपन खुदे के छाॅव हा, चाबे बर दउडाय । डहत सुवारी मोर हे..

देख देख ये फोटु ला

देख देख ये फोटु ला, पारत हे गोहार । बीता भर लइका इहां, गढ़त हवय संसार ।। लादे अपने पीठ मा, नान्हे भाई छांध । राखे दूनो हाथ मा, पाने ठेला बांध।। दूनो झन के पेट बर, बोहे जम्मा भार । देख देख ये फोटु ला... अइसन का पीरा हवय, ओखर आंखी देख । कहां ददा दाई हवय, दिखे भाग के लेख ।। आंसु धरे अनाथ मनन, होय आज लाचार । देख देख ये फोटु ला... मात देत हे काल ला, लइका के ये सोच । करम बड़े अधिकार ले, दूसर ला झन नोच ।। भीख कटोरा ना धरय, जांगर लय सम्हार । देख देख ये फोटु ला... लइका के तजबीज ला, कोरा अपन उठाव । बनके अब दाई ददा, लव बचपना बचाव ।। धरम करम के देष मा, होही बड़ उपकार । देख देख ये फोटु ला...

हम छत्तीसगढि़या आन रे

हम छत्तीसगढि़या आन रे, छाती मा चढ़ जाबो । जेन हमर हक लूटय तेला, जुरमिल नगद ठठाबो ।। सीधा-सादा बर हम सीधा, घर अॅगना तो ओखर । जम्मो दुनिया हा जाने हे, हमरे संगत चोखर । नंगरा बनय जेन हमर बर, हमू नंगरा बन जाबो ।। जेन हमर हक लूटय तेला, जुरमिल नगद ठठाबो ।। छत्तीसगढ़ी बोली भाखा, हमर करेजा-चानी। कइसे कोनो कर लेही अब, इहां अपन मनमानी ।। अपन आन-बान शान बर हम, जिनगी दांव लगाबो । जेन हमर हक लूटय तेला, जुरमिल नगद ठठाबो ।। महानदी के निरमल पानी, जहर जेन हे घोरे । हमर चार तेंदु जबरदस्ती, आके जेने टोरे । अइसन बैरी के टोटा धर, गली गली घूमाबो । जेन हमर हक लूटय तेला, जुरमिल नगद ठठाबो ।।

छत्तीसगढिया

दाई के गोरस असन, छत्तीसगढी बोल । तोर मोर रग मा भरे, देखव ऑखी खोल ।। हमरे भाखा मा घुरे, दया मया भरपूर । मनखे मनखे मन रहय, मनखेपन मा चूर ।। चाउर पिसान घोर के, लई बना ले फेट । गरम चिला हाथ मा, चटनी संग लपेट ।। धनिया मिरचा संग ले, शील लोढिया घीस । बंगाला ला डार के, मन लगा के पीस ।। गुल गुल भजिया छान ले, दे करईहा तेल । गरम गरम धर हाथ मा, गबर गबर तैं झेल ।। -रमेश चौहान

अब तो बैरी ला मार गिरावव जी

फोकट फोकट झन गोठियाव संगी काम के बात बतावव जी कइसे आतंक के नाम बुताही बने फोर के समझावव जी कोन परदा के पाछू बइठे आतंकी पिला जनमावय जी कोन ओला चारा पानी दे रुखवा कस सिरजावय जी कोन जयचंद विभषण बनके अपने भाई ला मरवावय जी कबतक हम लेसावत रहिबो रद्दा कोनो देखावव जी दूसर मा अतका दम कहां हे अपने घर संभालव जी जुंवा-लिख काहेक पट्टा गे हे अपने मुडी मिंजवावव जी कबतक हम केवल कहत रहिबो अब तो बैरी ला मार गिरावव जी

चार ठन दोहा

मनखे लीला तोर तो, जाने ना भगवान । बन गे दानव देवता, बने नही इंसान ।। गाली अपने आप ला. कब तक देहू आप । चाल ढाल अपने बदल. काबर करथस पाप ॥ करथे सब झन गोठ भर. काम करय ना कोय । काम कहू सब झन करय. गोठे काबर होय ॥ बदलव अपने आप ला. बदल जही संसार । देख देख संसार ला. काबर बदले झार ॥ तहूँ बने गुरु अउ महूँ. चेला बनही कोन । पूछ पूछ ओखर डहर. काबर ब इठे मोन ॥ -रमेश चौहान

कहय शहिद के बेटवा

बादर करिया छाय, कुलुप लागे घर कुरिया । कब तक रहि धंधाय, खड़े आतंकी ओ करिया ।। केवल छाती तान, शहिद सैनिक मन होये । हम मारे हन चार, बीस सैनिक ला खोये ।। कहय शहिद के बेटवा, बैरी के अब घर घुसर । बिला म घुसरे साप के, मुड ला पथरा मा कुचर ।।

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