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कतका झन देखे हें-

कहमुकरिया

कहमुकरिया (कहमुकरिया एक छंद होथे, जेमा 16, 16 मात्रा के चार चरण होथे, ये एक अइसन विधा आय जेमा एक सहेली अपन प्रियतम के वर्णन करथे अउ अपन सखी ले पूछथे, जब ओखर सखी हा, उत्तर मा साजन कहिथे तो ओ हा मुकर जाथे अउ आने उत्तर बता देथे, ये विधा मा रचनाकार अउ पाठक के बीच एक जनउला हो जथे) 1. रहिथे दिन रात संग मोरे, गोठ बात मा राखे बोरे । संग ओखरे करथव स्माइल । का सखि ? साजन ! ना सखि मोबाइल ।। 2. मोर अकेल्ला के संगी हे, ज्ञान जेखरे सतरंगी हे । जेखर आघू मैं नतमस्तक । का सखि ? साजन ! ना सखि पुस्तक ।

चमकत रेंगय टूरी

टाॅठ टाॅठ जिन्स पेंट पहिरे, अउ हल हल ले चूरी । बादर कस चुन्दी बगराये, चमकत रेंगय टूरी ।। पुन्नी के चंदा कस मुहरन, गली गली देखाये । अपन देह के रूआब गोरी, डहर डहर बगराये । काजर आंजे आंखी कारी, टूरा मन बर छूरी । बादर कस चुन्दी बगराये, चमकत रेंगय टूरी ।। तन के चुनरी पाछू टांगे, बेग हाथ लटकाये । गली गली हरहिंछा घूमे, कनिहा ला मटकाये । धरे जवानी बरखा आगे, छम छम नाचे मयूरी । बादर कस चुन्दी बगराये, चमकत रेंगय टूरी ।। टाॅठ टाॅठ जिन्स पेंट पहिरे, अउ हल हल ले चूरी । बादर कस चुन्दी बगराये, चमकत रेंगय टूरी ।।

अपन फरज निभाबो

रोला छ़द अपन देश के फर्ज. हमू मन आज निभाबो । कामबुता के संग. देश के गीत ल गाबो । देशभक्त ला देख. फूल कस बिछ जाबो । आघू बैरी देख. हमन बघवा बन जाबो ।। -रमेश चौहान

जय हिन्द बोल, हरषावव

झंड़ा लहरावव, जनमन गावव, गणतंत्र परब, हे मान बने।  घर कुरिया झारव, दीया बारव, देवारी जस, मगन बने ।।  हिन्दू ईसाई, मुस्लिम भाई, जय हिन्द बोल, बोल  बने । हे पावन माटी, अउ परिपाटी,  जुरमिल देखा, जग ल बने ।।

छेरछेरा

गीतिका छंद छेरछेरा के परब हे, धान कोदो हेर दौ । अन्न देके अन्न पाबे, छेरछेरा मान लौ ।। मान होथे दान दे ले, दान ले हे मान गा । होय ना उन्ना कभू गा, तोर कोठी जान गा ।।

दो मुक्तक

1- एक बेटा होके दाई बर शेर होगे । बहिनी बर कइसे तै ह गेर होगे ।। एक अनचिनहार नोनी ला पाये तैं बघवा होके आज ढेर होगे ।। 2- ददा दाई के खूब सुने भाई भौजी ला घला गुने सास ससुरार ला पाये काबर अपन माथा धुने ।। -रमेश चौहान

डहत सुवारी मोर हे..

डहत सुवारी मोर हे, मइके मा तो जाय । पांव परे मा गा घलो, ससुरे ना तो आय ।। मोर गांव मा पूछ लव, सीधा साधा आॅव । दारू मंद ला छोड़ दे, मैं ना पान चबाॅव ।। अपन काम ले काम हा, मोला बने सुहाय । डहत सुवारी मोर हे.. काबर करे बिहाव हे, जाने ना भगवान । कतको बेरा देख ले, मारे केवल शान ।। देखय ना बोलय कभू, मोला मया लगाय । डहत सुवारी मोर हे .. केवल एके मांग हे, दाई ददा ल छोड़ । मोरे मइके मा चलव, ऐती नाता तोड़ । देख लेंव मैं जाय के, तभो ना तो भाय । डहत सुवारी मोर हे.. पढ़े लिखे के साध मा, माथा अपन ठठाॅव । धर डंडा कानून के, करे ओ काॅव-काॅव । कानून हवय अंधरा, कोन भला समझाय । डहत सुवारी मोर हे.. दुनिया दारी मा अभे, मोर लगे ना चेत । मरना जीना काय हे, जस नदिया के रेत ।। अपन खुदे के छाॅव हा, चाबे बर दउडाय । डहत सुवारी मोर हे..

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